प्रिय दादू,
अभी हाल में किसी ने मुझे बताया कि हमारी सरकार आंकड़ों की बाज़ीगरी कर देश की आर्थिक प्रगति को बढ़ाचढ़ा कर दिखाने का प्रयास कर रही है। क्या यह सही है? और अगर हां तो यह परीक्षा में नकल करने से किस तरह भिन्न है?
सप्रेम
सरल
प्रिय सरल,
तुम्हारे प्रश्न का उत्तर देने से पहले मैं कुछ तथ्यों को तुम्हारे सामने रखना चाहूंगा।
– हमारे पिछले प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के कार्यकाल के अंतिम वर्ष में हमारी अर्थव्यवस्था 4.7 प्रतिशत की दर से बढ़ी (उनके कार्यकाल के अंतिम दो वर्षों में आर्थिक वृद्धि दर कम रही। उसके पहले वह बेहतर थी और कुछ वर्षों में तो असाधारण वृद्धि दर दर्ज की गई थी)।
– हमारी नई सरकार आने के बाद से, अगर आर्थिक वृद्धि दर की गणना उसी तरह से की जाए, जिस तरह से मनमोहन सिंह के शासनकाल में की जाती थी, तो हमारी वृद्धि दर 5.2 प्रतिशत होगी (अर्थात पिछले वर्ष की वृद्धि दर से मात्र 0.5 प्रतिशत अधिक)।
– परंतु हमारी वर्तमान सरकार ने आर्थिक वृद्धि दर की गणना करने के तरीके को बदल दिया व नए तरीके से गणना कर यह घोषणा कर दी है कि देश की आर्थिक वृद्धि दर 7.4 प्रतिशत रही (अर्थात चीन से भी ज्यादा)। इस तरह से, हमारी वृद्धि दर, वास्तविक दर से 2.2 प्रतिशत अधिक बताई जा रही है।
अब मैं तुम्हारे प्रश्न पर आता हूं कि क्या सरकार द्वारा तथ्यों और आंकड़ों से किया जा रहा यह खेल, विद्यार्थियों द्वारा नकल करने से भिन्न है।
हम इन दोनों के बीच की विभिन्नताओं की लंबी सूची बना सकते हैं, परंतु मोटी-मोटी बात यह है कि धोखाधड़ी तो धोखाधड़ी है, चाहे वह सरकार करे या स्कूल का कोई विद्यार्थी।
कई सरकारें इस तरह का छल इसलिए करती हैं ताकि वे अपने प्रदर्शन को बढ़ाचढ़ा कर प्रस्तुत कर सकें। ठीक उसी तरह, जिस तरह विद्यार्थी परीक्षाओं में नकल इसलिए करते हैं ताकि वे जितने मेहनती और बुद्धिमान हैं, उससे अधिक नजर आएं।
धोखाधड़ी करने में क्या गलत है-चाहे वह सरकारें कर रही हों, कंपनियां, कोई समूह या कोई व्यक्ति?
इस प्रश्न के उत्तर के दो भाग हैं।
पहली बात तो यह है कि देर-सबेर सच लोगों के सामने आ जाता है और तब लोग धोखा देने वालों में विश्वास खो बैठते हैं। और यह मिनटों में हो सकता है जबकि अपने प्रति विश्वास पैदा करने में लंबा समय लगता है क्योंकि इसके लिए हमें अपेक्षाओं और मानकों के अनुरूप प्रदर्शन करना होता है।
इस तरह के छल में जो दूसरी सबसे बड़ी गलत बात है वह यह है कि आप दरअसल स्वयं से झूठ बोल रहे होते हैं और इस झूठ और यथार्थ के बीच जो अंतर होता है, उसके कारण आप तनाव में रहते हैं। यह तनाव आपके प्रदर्शन को प्रभावित करता है और आपको मानसिक और शारीरिक दृष्टि से कमजोर बनाता है। आपकी व्यक्तित्व संबंधी समस्याएं उभरने लगती हैं और यहां तक कि अपने करीबियों से आपके संबंध भी प्रभावित होते हैं। अगर मैं स्वयं शांतचित्त और तनाव-रहित नहीं रहूंगा तो जिन लोगों से मेरे रिश्ते और संबंध हैं, उनके साथ मैं तनावरहित कैसे रह पाउंगा।
आत्मावलोकन की आवश्यकता
प्रिय सरल, समस्या यह है कि हम सब कभी न कभी, किसी न किसी को धोखा देते हैं। मैं भी ऐसा कर चुका हूं और तुम भी। जो भी यह दावा करता है कि उसने कभी किसी से झूठ नहीं बोला या कभी किसी को छला नहीं, वह, दरअसल, स्वयं को छल रहा है और वह भी गहरे व ऊँचे स्तर पर। मेरे कहने का मतलब यह है कि पहले उसने छल किया और अब यह मानकर कि उसने कभी छल नहीं किया, वह स्वयं को धोखा दे रहा है।
परिवर्तन के लिए सबसे पहले जरूरी यह है कि हम यह स्वीकार करें कि हमने छल किया है, धोखाधड़ी की है। इस अभिस्वीकृति के बगैर हमारे व्यक्तित्व में सुधार संभव नहीं है। अगर हम ऐसा नहीं करेंगे तो हम पुराने रास्ते पर ही चलते रहेंगे।
परंतु यदि कोई व्यक्ति अपने मन में और दूसरों के समक्ष यह स्वीकार कर लेता है कि उसने छल किया है, कुछ गलत किया है और फिर चीजों को ठीक करने का यत्न करता है और भविष्य में कभी किसी के साथ धोखाधड़ी न करने का प्रण लेता है तब वह कम से कम स्वयं को धोखा नहीं दे रहा होता।
यह दिलचस्प है कि उम्र बढऩे के साथ, जैसे-जैसे मैंने इस तरह की अभिस्वीकृतियां कीं और जहां तक संभव था, चीजों को ठीक करने का प्रयास किया, वैसे-वैसे मुझे यह समझ में आया कि मैंने कई बार किस तरह अनजाने स्वयं को और दूसरों को धोखा दिया। बल्कि ऐसी कई चीजें हैं जो मैंने पवित्र इरादों से कीं परंतु अब मुझे समझ में आता है कि वे कार्य गलत थे या कम से कम ऐसे थे, जिनके गलत परिणाम हुए। दूसरी ओर, मैंने ऐसी कई अच्छी और सही चीजें नहीं कीं जो मैं कर सकता था या मुझे करनी चाहिए थीं।
तुम शायद पूछोगे कि क्या इस तरह का आत्मावलोकन हमें पंगु नहीं बना देगा? अगर हम बहुत गंभीरता से इस बात पर विचार करने लगेंगे कि हमने स्वयं को और दूसरों को कितना नुकसान पहुंचाया है तो क्या हम अपराधबोध और शर्म के समुद्र में डूब नहीं जायेंगे?
मैं स्वयं को पंगु होने और अपराधबोध से ग्रस्त होने से इसलिए बचा सका क्योंकि ईसा मसीह की सूली पर मृत्यु में मैं तीन चीजें देखता हूं। पहली यह कि मेरी सारी असफलताओं और गलतियों के बावजूद, ईश्वर मुझसे प्रेम करता है। दूसरी यह कि उसने मेरी सभी कमियों, गलतियों और असफलताओं की कीमत अदा कर दी है। और तीसरी यह कि उसने ऐसा इसलिए किया है ताकि मैं अपनी असफलताओं और गलतियों को स्वीकार कर सकूं और उनसे शिक्षा ग्रहण कर आगे बढ़ सकूं।
प्रेम और क्षमाशीलता, परिवर्तन के शक्तिशाली वाहक हैं। परंतु किसी भी सार्थक परिवर्तन के लिए जरूरी है कि हमें ईश्वर से शक्ति मिले। तभी हमारे व्यक्तित्व की गहराईयों में परिवर्तन आ सकेगा। वह शक्ति मुझे तब मिलती है जब मैं ईसा मसीह के इस वायदे को स्वीकार करता हूं कि अगर मेरी ऐसी अभिलाषा होगी तो वह अपनी पवित्र आत्मा को मेरे अंतर्मन में प्रस्थापित करेगा।
आप चाहे ईसा के इस वायदे में विश्वास करें या न करें, तथ्य यह है कि अगर हम स्वयं को बेहतर नहीं बनायेंगे तो हम अपने आसपास की दुनिया में सकारात्मक परिवर्तन नहीं ला सकेंगे।
जो बात व्यक्तियों के संबंध में सही है वही सरकारों के बारे में भी सच है। जब तक सरकारें सत्य के पथ पर चलना नहीं सीखेंगी, जब तक वे अपनी असफलताओं और गलतियों को स्वीकार नहीं करेंगी, तब तक उनका चरित्र बेहतर नहीं बन सकेगा। और वे कभी हमारे देश में वास्तविक व दूरगामी परिवर्तन नहीं ला सकेंगी।
हम जैसे साधारण व्यक्ति शायद अपनी सरकार को इस बात के लिए राजी नहीं कर सकते कि वह अपनी गलतियां स्वीकार करे और बेहतर बने। परंतु हम स्वयं तो उस रास्ते पर चल ही सकते हैं।
सप्रेम
दादू
फारवर्ड प्रेस के जुलाई, 2015 अंक में प्रकाशित