दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्ग की जातियों के बच्चे बड़े सपने लेकर आईआईटी, आईआईएम, आईआईएससी और एम्स जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में दाखिला लेते हैं। उनकी समझ है कि समानता और वैचारिक गहराई की मजबूत नींव रखनेवाली संस्थाएं उन्हें ऊंचा उड़ना सिखाएंगीं। लेकिन अनुभव इसके विपरीत दिखता है। बता रहे हैं बापू राऊत