अपने आलेख में बद्री नारायण ने यह नहीं लिखा कि यह प्रक्रिया क्रांति और प्रतिक्रांति की रही है, जिसमें ब्राह्मणवाद ने चुनौती देने वाली अपनी सभी विरोधी धाराओं को कहीं ध्वस्त और कहीं आत्मसात करके खत्म कर दिया था। आजीवकों और चार्वाकों तक का कोई साहित्य उपलब्ध नहीं है। पढ़ें, कंवल भारती की टिप्पणी