दो हालिया पुस्तकों में तमिलनाडु की राजनीति और समाज को एक साझा द्रविड़ सोच पर आधारित बताया गया है। मगर ये पुस्तकें उन सामाजिक और आर्थिक संदर्भों की पड़ताल नहीं करतीं, जिनके चलते, विशेषकर दलित प्रश्न को लेकर, द्रविड़ किले में दरारें पड़ गई हैं। बता रही हैं वी. गीता