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OBC leaders couldn’t care less about the ongoing dereservation

मेडिकल में ओबीसी आरक्षण पर डाका, क्यों खामोश हैं झंडाबरदार?

Mata Prasad: Patron of Dalit Literature and ideology

आजीवन सबके हितैषी रहे दलित साहित्य व वैचारिकी के संरक्षक माता प्रसाद

Covid vaccine tests: Dalits, Adivasis and Backwards yet again the guinea pigs

कोविड वैक्सीन का ट्रायल केवल दलितों, आदिवासियाें और पिछड़ों पर क्यों?

Dalitbahujans take out march in solidarity with protesting farmers

किसान आंदोलन के समर्थन में बहुजन समाज ने निकाला ‘माटी संकल्प मार्च’

OBC leaders couldn’t care less about the ongoing dereservation

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मेडिकल में ओबीसी आरक्षण पर डाका, क्यों खामोश हैं झंडाबरदार?

राज्याधीन मेडिकल कालेजों में ऑल इंडिया कोटे की सीटों पर ओबीसी रिजर्वेशन लागू न होने से अब तक कम से कम 10 हजार सीटें सवर्ण अभ्यर्थियों के पाले में जा चुकी हैं। इन पर ओबीसी युवाओं का हक था। लेकिन सब जानते हुए भी हिंदी प्रदेशों के ओबीसी नेतागण किस तरह खामोश रहे हैं, बता रहे हैं दीपक के. मंडल

Mata Prasad: Patron of Dalit Literature and ideology

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आजीवन सबके हितैषी रहे दलित साहित्य व वैचारिकी के संरक्षक माता प्रसाद

जिस गांधीवाद को माता प्रसाद जी लेकर चले, उससे लोगों को कभी कोई परेशानी नहीं हुई। वे मेरी भाषा शैली के प्रशंसक थे, जबकि मैं कबीर की परंपरा का राही रहा हूं, पर उन्होंने मुझे अपने स्नेह से कभी वंचित नहीं किया। अरुणाचल प्रदेश के पूर्व राज्यपाल व दलित साहित्यकार माता प्रसाद को श्रद्धांजलि दे रहे हैं कालीचरण ‘स्नेही’

Covid vaccine tests: Dalits, Adivasis and Backwards yet again the guinea pigs

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कोविड वैक्सीन का ट्रायल केवल दलितों, आदिवासियाें और पिछड़ों पर क्यों?

मध्य प्रदेश में एंटी कोविड वैक्सीन के ट्रायल के लिए लोगों को प्रति डोज 750 रुपए देने की बात सामने आई है। इनमें से भोपाल गैस कांड के पीड़ित दीपक मरावी भी थे, जिनकी मौत कोवैक्सीन नामक दवा का डोज लेने के दस दिनों के बाद मौत हो गई। अब सरकार और कंपनी दोनों अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ रहे हैं। ताबिश हुसैन की तफ्तीश

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Dalitbahujans take out march in solidarity with protesting farmers

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किसान आंदोलन के समर्थन में बहुजन समाज ने निकाला ‘माटी संकल्प मार्च’

‘माटी संकल्प मार्च’ में शामिल दलित-बहुजन अपने साथ डेढ़ सौ मीटर लंबा बौद्ध धम्म ध्वज और तिरंगा, लेकर चल रहे थे। वहीं कई बैनरों पर “साझी विरासत और साझी शहादत” के नारे थे। इस दौरान लोगों ने ‘जय भीम’ के नारे के साथ ‘जय किसान’ और ‘जय जवान’ के नारे लगाए। बता रहे हैं सुशील मानव

What are the NCSC and NCBC doing with their Constitutional status!

P.N. Sankaran cites two recent incidents to illustrate the apathy of the commissions Constitutionally empowered to protect the rights of the Scheduled Castes and the Backward Classes

क्या केवल दिखावा मात्र है एसीएससी और एनसीबीसी का संवैधानिक दर्जा?

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Report

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विलुप्त होती आदिम जनजाति भाषा कोरवा को बचाने की कोशिश में हिरामन कोरवा

हिरामन कहते हैं कि कोरवा भाषा शब्दकोश बनाने के पीछे उनका मकसद था कि कोरवा भाषा का उत्थान। इसके लिए बचपन से कोरवा भाषा के जिन शब्दों का संग्रह किया था, उसे पुस्तकाकार दिया। बता रहे हैं विशद कुमार

Governments should establish Dalit Sahitya Academies

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सरकारी स्तर पर दलित साहित्य अकादमियों का गठन आवश्यक

समय आ गया है कि केन्द्रीय स्तर पर वंचित समूहों के लिए अलग साहित्य, संगीत और नाट्य अकादमियों की स्थापना की जाए ताकि वंचित समूह भी अपनी कला संस्कृति को परजीवी समुदाय की कला, साहित्य और संस्कृति के समानांतर स्थापित कर सकें। बता रहे हैं कर्मानंद आर्य

The State’s ‘schemes’ for the common man

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जनसरोकार के सवाल और राज्य की ‘राजनीति’

पूछना तो उन किसानों को भी चाहिए जिनके खाते में दो हज़ार की रकम आई कि उन्हें इतना कम क्यों मिला? साल भर में छह हज़ार का वे क्या करेंगे? पांच सौ रुपए महीने की इस दयानतदारी से उनका पेट कितना भर सकता है? रामजी यादव का विश्लेषण

How can the farmers’ movement be even bigger?

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ऐसे व्यापक बन सकता है किसानों का आंदोलन

इस आंदोलन में भूमिहीन छोटे किसान, बटाईदार आधिहा रेगहा लेने वाले किसानों को शामिल कर आंदोलन का विस्तार किया जा सकता है। बता रहे हैं संजीव खुदशाह

Depiction of struggle is beauty of Dalit Literature: Kalyani Thakur ‘Chadal’

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दलितों का संघर्ष ही दलित साहित्य का सौंदर्य : कल्याणी ठाकुर ‘चाड़ाल’

दलित साहित्य आत्ममर्यादा और स्वाभिमान का साहित्य है – उनका साहित्य जिन्हें सदियों तक दबाया गया, वंचित रखा गया। इस घृणित उपेक्षा का जब हम उल्लेख करते हैं तो वहां प्रेम नहीं, आक्रोश ही सामने आएगा। कह सकते हैं कि यह आक्रोश दलित साहित्य में एक शिल्प की तरह है। बांग्ला दलित कवयित्री कल्याणी ठाकुर ‘चाड़ाल’ से कार्तिक चौधरी की विशेष बातचीत

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ISSN: 2456-7558
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