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सरल शब्दों में समझें आधुनिक भारत के निर्माण में डॉ. आंबेडकर का योगदान

डॉ. आंबेडकर ने भारत का संविधान लिखकर देश के विकास, अखंडता और एकता को बनाए रखने में विशेष योगदान दिया और सभी नागरिकों को मौलिक अधिकार और न्याय की गारंटी दी। कानून के समक्ष सभी नागरिकों की समानता के सिद्धांत के साथ-साथ एक व्यक्ति, एक राय और एक मूल्य भारतीय संविधान की पहचान बन गई है। बता रहे हैं बापू राउत

डॉ. भीमराव आंबेडकर (14 अप्रैल, 1891 – 6 दिसंबर, 1956) पर विशेष

सभी जानते हैं कि आजादी के पहले भारत राजनीतिक दृष्टि से एक राष्ट्र नहीं था। वह कई संस्थानों में विभाजित था। प्रत्येक प्रांत में अनेक जातियों और धर्मों के लोग रहते थे। चूंकि प्रत्येक संस्था स्वतंत्र थी, इसलिए उनके बीच सांस्कृतिक संघर्ष अधिक था। हालांकि बहुसंख्यक लोगों का धर्म एक था, फिर भी वहा जातियों का शोषणकारी पदानुक्रम था। यहां तक कि आधुनिक विचारधारा के पैरोकार अंग्रेज भी यहां के सांस्कृतिक वर्चस्व को समतावाद में नहीं बदल सके।

भारत की यह विषमता कैसे दूर हो, इसकी रूपरेखा तय करने की जिम्मेदारी डॉ. आंबेडकर की अध्यक्षता वाली प्रारूप समिति को सौंप दी गई। हमारे संविधान का सार इसकी प्रस्तावना में देखा जा सकता है, जिसकी शुरुआत इन शब्दों से होती है– “हम भारत के लोग”। 

देखा जाय तो आधुनिक भारत के निर्माण में डॉ. आंबेडकर की भागीदारी का अनुमान ब्रिटिशकाल की विभिन्न गतिविधियों में भागीदारी देखकर लगाया जा सकता है। 27 जनवरी, 1919 को साउथबरो कमेटी के सामने अपनी गवाही में उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा– “लोकप्रिय सरकार का मतलब केवल लोगों के लिए सरकार नहीं है, बल्कि लोगों द्वारा सरकार है।” 

डॉ. आंबेडकर ने भारत का संविधान लिखकर देश के विकास, अखंडता और एकता को बनाए रखने में विशेष योगदान दिया और सभी नागरिकों को मौलिक अधिकार और न्याय की गारंटी दी। कानून के समक्ष सभी नागरिकों की समानता के सिद्धांत के साथ-साथ एक व्यक्ति, एक राय और एक मूल्य भारतीय संविधान की पहचान बन गई है। 

डॉ. भीमराव आंबेडकर (14 अप्रैल, 1891 – 6 दिसंबर, 1956)

श्रमिकों के लिए

डॉ. आंबेडकर ने श्रमिकों की समस्याओं को उठाने के लिए 15 अगस्त, 1936 को इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी की स्थापना की। सरकार द्वारा बॉम्बे विधानसभा में पेश किए गए ‘औद्योगिक विवाद विधेयक’ का पुरजोर विरोध करते हुए उसे श्रमिकों के लिए काला कानून बताया था। उन्होंने कहा था कि यह विधेयक श्रमिकों की ‘नागरिक स्वतंत्रता’ का उल्लंघन करता है। इस बिल के विरोध में 7 नवंबर, 1938 को एक दिवसीय सांकेतिक हड़ताल का आयोजन किया। बाद में जब देश आजाद हुआ तब डॉ. आंबेडकर ने सरकारी कर्मचारियों को मुद्रास्फीति सूचकांक के आधार पर मिलनेवाली ‘महंगाई भत्ता’ योजना शुरू की। 

डॉ. आंबेडकर ऐसे नेता थे, जो महिलाओं का भला चाहते थे। आजाद भारत में महिलाओं के अधिकारों के लिए उनके द्वारा पेश किया गया ‘हिंदू कोड बिल’ पारित नहीं होने के बाद उन्होंने तुरंत कानून मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया। आजादी के पहले श्रममंत्री के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान, महिलाओं को कारखानों में रात के काम पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। उन्होंने प्रसव के दौरान महिलाओं को विशेष रियायतें दिलाने का प्रयास किया और सफल रहे। इतना ही नहीं, उन्होंने पुरुष और महिला श्रमिकों के लिए समान वेतन की भी मांग की और श्रमिकों के काम के घंटों को कम करने के लिए 1934 के फैक्ट्री अधिनियम में संशोधन किया। 

आर्थिक विकास में औद्योगिक एवं जल नीति का योगदान

डॉ. आंबेडकर ने सबसे पहले 1942-46 के बीच शाश्वत विकास का मॉडल प्रस्तुत किया। उनका मानना ​​था कि औद्योगीकरण प्रगति का एक महत्वपूर्ण अंग है और वह देश के संसाधनों पर आधारित होना चाहिए। ऐसा कहने का उनका उद्देश्य देश में किसानों, श्रमिकों, महिलाओं, युवाओं और मध्यम वर्ग के जीवन स्तर को ऊपर उठाने के लिए अवसर पैदा करना था। उनमें से, बिजली उत्पादन परियोजनाएं राष्ट्रीय रणनीति का हिस्सा थीं। उनका दृढ़ मत था कि, सस्ती और प्रचुर बिजली के बिना औद्योगीकरण सफल नहीं हो सकता। इसके लिए उन्होंने न केवल विचार प्रस्तुत किए, बल्कि महत्वाकांक्षी बहुउद्देश्यीय परियोजनाएं भी स्थापित करवायीं। इनमें दामोदर नदी बेसिन परियोजना उनकी देखरेख में पूरी हुई, जबकि हीराकुंड परियोजना, कोसी और सोन नदी बेसिन परियोजनाओं की रूपरेखा उनके द्वारा तैयार की गई। 

ध्यातव्य है कि 3 जनवरी, 1945 को कोलकाता में बोलते हुए डॉ. आंबेडकर ने कहा था कि दामोदर परियोजना एक बहुउद्देश्यीय परियोजना है और हमारा उद्देश्य केवल बाढ़ की समस्या को हल करने तक सीमित नहीं है, बल्कि सिंचाई, बिजली उत्पादन और जल परिवहन तक है। वे डॉ. आंबेडकर ही थे, जिन्होंने 1945 में केंद्रीय जल आयोग की स्थापना में अहम भूमिका का निर्वहन किया था। 

ऐसे ही भारतीय रिज़र्व बैंक की स्थापना में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। उनके द्वारा 1925 में लिखी गई पुस्तक ‘द प्रॉब्लम ऑफ रुपी – इट्स ओरिजिन एंड इट्स सॉल्यूशन’ को आधार बनाकर कहा जा सकता है कि वर्तमान भारत की आर्थिक नीतियां व व्यवस्था डॉ. अम्बेडकर की योजना और दूरदर्शिता पर विकसित हुई हैं।

किसान और खेती योजनाएं 

भारतीय किसानों के बारे में डॉ. आंबेडकर के हृदय में विशेष करुणा थी। यह उनके किसान आंदोलन से स्पष्ट होता है। किसानों को जमींदारों की गुलामी से मुक्त कराने के लिए 14 अप्रैल, 1929 को चिपलुन में उन्होंने शेतकारी परिषद का आयोजन किया था। किसानों के हित को केंद्र में रखकर उन्होंने 17 सितंबर, 1937 को बंबई विधानमंडल में एक विधेयक पेश किया था। वहीं, 10 जनवरी, 1938 को उनके नेतृत्व में 25 हजार किसानों का मार्च विधानमंडल तक निकाला गया। कृषि के विकास को लेकर उन्होंने नई अवधारणा प्रस्तुत की– कृषि एक राष्ट्रीय उद्योग होना चाहिए। उनकी योजना यह थी कि, सरकार के नियंत्रण में होने वाली खेती की सारी लागत सरकार वहन करे और किसान फसल के बाद सरकार का सारा खर्च चुका देंगे। लेकिन दुर्भाग्यवश विरोध के कारण इसे संविधान में शामिल नहीं किया जा सका। इसका दुष्परिणाम आज किसानों में असंतोष के रूप में दिखाई देता है। यदि डॉ. आंबेडकर की अवधारणा को स्वीकार कर लिया गया होता, तो अनाज पर एमएसपी जैसे मुद्दे नहीं उठते, क्योंकि सरकार अपने खर्चों को पूरा करने के लिए उत्पादन मूल्य तय कर देती। डॉ. आंबेडकर यहीं नहीं रुके, बल्कि उनका मुख्य रूप से मानना ​​था कि देश के प्रमुख और बुनियादी उद्योगों का स्वामित्व केवल राष्ट्र के पास होना चाहिए। 

राष्ट्रीय एकता के लिए प्रामाणिक भारतीय धर्म को स्वीकार करना

डॉ. आंबेडकर का मानना था कि हर धर्म को परखा जाना चाहिए। वे स्वयं जिस धर्म से संबंधित थे, उसके प्रति उन्होंने बहुत गंभीरता से परखने की शुरुआत की। जब उन्हें लगा कि यह धर्म आम लोगों के हितों और उनके समग्र विकास के विरुद्ध है, तब उन्होंने अपने जन्मसिद्ध धर्म को त्यागने का संकल्प घोषित कर दिया। उन्होंने अन्य धर्मों का अध्ययन एवं मनन करना प्रारंभ कर दिया। उन्होंने इस देश के तर्कसंगत और वैज्ञानिक धर्म को चुनकर भारत को रचनात्मकता के रास्ते पर छोड़ दिया। उन्होंने बौद्ध धर्म को चुना, जो करुणा और हृदय परिवर्तन के मार्ग के माध्यम से लोगों के दिलों को जीतता है। उस धर्म के विपरीत, जो भय के माध्यम से दूसरों को नियंत्रित करने की प्रक्रिया का अभ्यास करता था। शांति और अहिंसा के माध्यम से विश्व को समृद्ध बनानेवाले धर्म को स्वीकार कर डॉ. आंबेडकर ने भारत को सार्वभौमवाद की ओर ले जाने का प्रयास किया। 

संदर्भ ग्रंथ

  1. डॉ. बाबा साहब आंबेडकर : राइटिंग्स एंड स्पीचेज, वॉल्यूम 1,2,6,10,15,17
  1. फादर ऑफ मार्डन इंडिया डॉ. बी.आर. आंबेडकर, मौरुसु शिवशंकर, 2017, लैप लॅम्बर्ट एकेडमिक पब्लिशिंग
  1. लोकराज्य (मासिक पत्रिका), प्रकाशक सूचना व जनंसपर्क मंत्रालय, महाराष्ट्र सरकार, अंक अप्रैल 2016 व अंक अप्रैल 2019

(संपादन : राजन/नवल/अनिल)


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लेखक के बारे में

बापू राउत

ब्लॉगर, लेखक तथा बहुजन विचारक बापू राउत विभिन्न मराठी व हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं में नियमित लिखते रहे हैं। बहुजन नायक कांशीराम, बहुजन मारेकरी (बहुजन हन्ता) और परिवर्तनाच्या वाटा (परिवर्तन के रास्ते) आदि उनकी प्रमुख मराठी पुस्तकें हैं।

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