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समाज और संस्कृति

भारतीय ‘राष्ट्रवाद’ की गत
आज हिंदुत्व के अर्थ हैं– शुद्ध नस्ल का एक ऐसा दंगाई-हिंदू, जो सावरकर और गोडसे के पदचिह्नों को और भी गहराई दे सके और इस लोकतांत्रिक राष्ट्रवाद को अपने बुल्डोजर द्वारा कुचल सके। और यह...
जेएनयू और इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के बीच का फर्क
जेएनयू की आबोहवा अलग थी। फिर इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में मेरा चयन असिस्टेंट प्रोफ़ेसर के पद पर हो गया। यहां अलग तरह की मिट्टी है और अलग तरह का संघर्ष है। यहां पर मुझे बार-बार एहसास...
बीते वर्ष 2023 की फिल्मों में धार्मिकता, देशभक्ति के अतिरेक के बीच सामाजिक यथार्थ पर एक नज़र
जाति-विरोधी फिल्में समाज के लिए अहितकर रूढ़िबद्ध धारणाओं को तोड़ने और दलित-बहुजन अस्मिताओं को पुनर्निर्मित करने में सक्षम नज़र आती हैं। वे दर्शकों को सिनेमाई चरित्र-चित्रण को समालोचनात्मक बहुजन लेंस से देखने का मौका देती...
‘मैंने बचपन में ही जान लिया था कि चमार होने का मतलब क्या है’
जिस जाति और जिस परंपरा के साये में मेरा जन्म हुआ, उसमें मैं इंसान नहीं, एक जानवर के रूप में जन्मा था। इंसानों के खाने की एक परंपरा होती है कि वह सुबह में नाश्ता...
फुले पर आधारित फिल्म बनाने में सबसे बड़ी चुनौती भाषा और उस कालखंड को दर्शाने की थी : नीलेश जलमकर
महात्मा फुले का इतना बड़ा काम है कि उसे दो या तीन घंटे की फिल्म के जरिए नहीं...
वर्ष 2023 की हिंदी फिल्मों में नजर आए दलित पात्र, लेकिन हावी रही द्विज-दृष्टि
फिर कैमरा ऊंची जाति के एक पात्र हरि शंकर के आंतरिक द्वंद्व पर केंद्रित हो जाता है और...
‘अछूत कन्या’ : वह फिल्म, जिसमें अछूत को देवी बनने के लिए जान देनी पड़ी
फिल्म के केंद्र में कस्तूरी (देविका रानी) है, जो अछूत समाज से आती है। फिल्म में बेशक उसकी...
सामाजिक अस्पृश्यता और बहिष्करण से लड़ते हलालखोर
नकाब और बुर्के के ऊपर अशराफ राजनीति बहुत सरगर्म रहती है पर ये हलालखोर औरतें नकाब लगाकर कैसे...
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