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साहित्‍य

व्याख्यान  : समतावाद है दलित साहित्य का सामाजिक-सांस्कृतिक आधार 
जो भी दलित साहित्य का विद्यार्थी या अध्येता है, वह इस निष्कर्ष पर पहुंचे बगैर नहीं रहेगा कि ये तीनों चीजें श्रम, स्वप्न और संघर्ष दलित संस्कृति का एक अनिवार्य हिस्सा है। श्रम, स्वप्न और...
‘चपिया’ : मगही में स्त्री-विमर्श का बहुजन आख्यान (पहला भाग)
कवि गोपाल प्रसाद मतिया के हवाले से कहते हैं कि इंद्र और तमाम हिंदू देवी-देवता सामंतों के तलवार हैं, जिनसे ऊंची जातियों के लोग शूद्रों का सिर काटते हैं और शूद्र स्त्रियों को गुड़िया (एक...
दुनिया नष्ट नहीं होगी, अपनी रचनाओं से साबित करते रहे नचिकेता
बीते 19 दिसंबर, 2023 को बिहार के प्रसिद्ध जन-गीतकार नचिकेता का निधन हो गया। उनकी स्मृति में एक शोकसभा का आयोजन किया गया, जिसे वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. रामवचन राय सहित अनेक वक्ताओं ने संबोधित किया।...
आंबेडकर के बाद अब निशाने पर कबीर
निर्गुण सगुण से परे क्या है? इसका जिक्र कर्मेंदु शिशिर ने नहीं किया। कबीर जो आंखिन-देखी कहते हैं, वह निर्गुण में ही संभव है, सगुण में नहीं। सगुण और निर्गुण उसी तरह के दो अलग-अलग...
कृषक और मजदूर समाज के साहित्यिक प्रतिनिधि नचिकेता नहीं रहे
नचिकेता की कविताओं और गीतों में किसानों के साथ खेतिहर मजदूरों का सवाल भी मुखर होकर सामने आता...
‘संजीव का सम्मान कर साहित्य अकादमी ने खुद को किया सम्मानित’
कथाकार संजीव उदय प्रकाश और शिवमूर्ति के समकालीन हैं। राजेंद्र यादव इन तीनों में संजीव को प्रेमचंद के...
मैंने किसी का हक छीना हो तो कोई बताए : संजीव
बहुत साधारण-सी बात आती है कि संकट है क्या? संकट की पहचान कैसे हो? यह व्यंजनात्मक तरीके से...
उषाकिरण आत्राम की कविताओं में स्त्री अस्मिता (संदर्भ : ‘मोट्यारिन’ काव्यसंग्रह)
कवयित्री ने आदिवासी स्त्रियों के संघर्षशील और भावनात्मक विलासिता रहित जीवन को उभारा है। तमाम दुःख-दर्द, वेदना, पीड़ाओं...
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