h n

दृढनिश्चयी किसान आंदोलन के पीछे है नई शूद्र चेतना

जाति की सीमाओं से परे जिस तरह की एकता और बंधुत्व का प्रदर्शन आंदोलनरत किसानों ने किया है वह एक नई शूद्र चेतना के उभार का परिचायक है। यह चेतना श्रम की गरिमा को एक दर्शन का दर्जा देती है – एक ऐसा दर्शन जिसमें वर्चस्ववादी सामाजिक और राजनैतिक रिश्तों को बदल डालने की ताकत है

“संयुक्त राज्य (अमरीका) के सदाचारी जनों को सम्मानार्थ समर्पित जिन्होंने नीग्रो गुलामों को दासता से मुक्त करने के कार्य में उदारता और निष्पक्षता के साथ सहयोग किया और उसके लिए कुर्बानी दी। मेरी हार्दिक इच्छा है कि मेरे देशवासी उनके इस सराहनीय कार्य का अनुकरण करें और अपने शूद्र भाईयों को ब्राह्मणों की दासता से मुक्त करवाने में अपना सहयोग दें।” 

महान शूद्र सामाजिक क्रांतिकारी जोतीराव फुले की क्रांतिकारी रचना ‘गुलामगिरी’ का यह समर्पण हमें एक अधूरे काम की याद दिलाता है। यह अधूरा काम अब और महत्वपूर्ण हो गया है क्योंकि स्वतंत्र भारत में ‘शूद्र’ नामक सामाजिक वर्ग विमर्श से विलुप्त हो गया है और ‘ब्राह्मणों की दासता’ को ब्राह्मणवादी राष्ट्रवाद के जरिए प्रणालीगत स्वरूप दे दिया गया है। शूद्र पहचान में ब्राह्मणवाद सामाजिक व्यवस्था को नष्ट करने की क्षमता थी।

पूरा आर्टिकल यहां पढें : दृढनिश्चयी किसान आंदोलन के पीछे है नई शूद्र चेतना

लेखक के बारे में

पल्लीकोंडा मणिकंटा

पल्लीकोंडा मणिकंटा, तेलंगाना के फुले-आम्बेडकरवादी अध्येता और कार्यकर्ता हैं। उन्होंने हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय में बहुजन स्टूडेंट्स फ्रंट और जेएनयू में बिरसा आंबेडकर फुले स्टूडेंट्स एसोसिएशन के साथ काम किया है। वे जाति-विरोधी विचार और राजनीति, हिन्दू राष्ट्रवाद के राजनैतिक अर्थशास्त्र और तेलंगाना की राजनैतिक संस्कृति पर शोध और लेखन करते हैं। हाल में उन्होंने कांचा इलैया शेपर्ड और कार्तिक राजा करुप्पुसामी द्वारा सम्पादित पुस्तक 'द शुद्रास: विज़न फॉर ए न्यू पाथ' में एक अध्याय लिखा है। वे फुले आंबेडकर सेंटर फॉर फिलोसोफिकल एंड इंग्लिश ट्रेनिंग (पीएसीपीईटी), तेल्लापुर, हैदराबाद के सह-संस्थापक हैं और वहां पढ़ाते भी हैं।

संबंधित आलेख

दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों के ऊपर पेशाब : राजनीतिक शक्ति का कमजोर होना है वजह
तमाम पुनरुत्थानवादी प्रवृत्तियां सर चढ़कर बोल रही हैं। शक्ति के विकेंद्रीकरण की ज़गह शक्ति के केंद्रीकरण की प्रवृत्ति बढ़ रही है। ऐसे दौर में...
नीतीश की प्राथमिकता में नहीं और मोदी चाहते नहीं हैं सामाजिक न्याय : अली अनवर
जातिगत जनगणना का सवाल ऐसा सवाल है कि आरएसएस का सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति का जो गुब्बारा है, उसमें सुराख हो जाएगा, उसकी हवा...
मनुस्मृति पढ़ाना ही है तो ‘गुलामगिरी’ और ‘जाति का विनाश’ भी पढ़ाइए : लक्ष्मण यादव
अभी यह स्थिति हो गई है कि भाजपा आज भले चुनाव हार जाए, लेकिन आरएसएस ने जिस तरह से विश्वविद्यालयों को अपने कैडर से...
आखिर ‘चंद्रगुप्त’ नाटक के पन्नों में क्यों गायब है आजीवक प्रसंग?
नाटक के मूल संस्करण से हटाए गए तीन दृश्य वे हैं, जिनमें आजीवक नामक पात्र आता है। आजीवक प्राक्वैदिक भारत की श्रमण परंपरा के...
कौशांबी कांड : सियासी हस्तक्षेप के बाद खुलकर सामने आई ‘जाति’
बीते 27 मई को उत्तर प्रदेश के कौशांबी में एक आठ साल की मासूम बच्ची के साथ यौन हिंसा का मामला अब जातिवादी बनता...