शिमला : युवाओं के बीच जाति की दीवारों को ढहाने के लिए हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने अंतर्जातीय विवाह करने वालों को मिलने वाली प्रोत्साहन राशि को 25,000 रुपये से बढ़ाकर 75,000 रुपये कर दिया है। यह राशि उन सभी विवाहित दम्पतियों को देय होगी, जिनमें से एक अनुसूचित जाति का है।
देश के कई हिस्सों में आज भी अंतर्जातीय व उपजातीय विवाहों पर प्रतिबंध है। हिमाचल प्रदेश देश का पहला ऐसा राज्य है जो कि इन बंधनों को तोडऩे का प्रयास कर रहा है। यह योजना 1994 में शुरू की गई थी परंतु पिछले तीन सालों में इसका लाभ उठाने वाले दम्पतियों की संख्या मात्र 1113 रही। सबसे ज्यादा 304 विवाह 2011-12 में हुए। 2010-11 में 300 विवाह हुए जबकि 2012-13 में इनकी संख्या 277 रही। सबसे कम विवाह 2009-10 में पंजीकृत हुए। इनकी संख्या 232 थी।
सामाजिक न्याय व सशक्तिकरण विभाग के विशेष सचिव एमपी सूद कहते हैं, हमने पाया कि 25,000 रुपये की राशि पर्याप्त संख्या में ऐसे विवाहों को प्रोत्साहित नहीं कर रही थी। अत: हमने प्रोत्साहन राशि को दोगुने से भी अधिक करने का निश्चय किया। हमें अपेक्षा है कि आने वाले समय में अधिक से अधिक युवा विशेषकर महिलाएं जाति की दीवारों को तोडऩे के लिए आगे आएंगे।
शिमला जिले के चोपल निवासी नवविवाहित प्रमोद और अंजलि मानते हैं कि ये सारे बंधन मानव-निर्मित हैं। व्यक्ति को अपने जीवनसाथी के साथ रहना होता है ना कि उसकी जाति के साथ। प्रमोद एक व्यवसायी हैं और नीची जाति से आते हैं जबकि अंजलि राजपूत हैं। प्रमोद कहते हैं, हमारे परिवारवाले इस विवाह के लिए बिलकुल भी राजी नहीं थे। हमने उन्हें मनाने की बहुत कोशिश की परंतु वे नहीं माने। अंजलि के माता-पिता ने मुझे कई बार धमकियां दीं परंतु जब हम लोगों ने कहा कि हम एक-दूसरे के बिना नहीं रह सकते, तब वे राजी हो गए। उन्होंने कहा कि वे चाहते हैं कि उनकी लड़की खुश रहे।
रामेश्वर शर्मा अतिरिक्त संचालक, सामाजिक न्याय व सशक्तिकरण विभाग का कहना है कि राज्य सरकार अनुसूचित जातियां जो कि प्रदेश की आबादी का 24.72 प्रतिशत हैं, के लिए अधिक अवसर उपलब्ध करवा रही है। अंतर्जातीय विवाहों को प्रोत्साहन जाति प्रथा के उन्मूलन की दिशा में केवल एक कदम है।
उच्चतम न्यायालय ने भी सन् 2011 में कहा था कि अंतर्जातीय विवाह राष्ट्रहित में है।
(फारवर्ड प्रेस के जून 2013 अंक में प्रकाशित)