h n

आईआईटी एडवांस परीक्षा : बिहार में ‘सुपर’ गरीब मेधा का जलवा

दलित-पिछडे परिवारों के बच्चों की मेधा को तराश कर, उन्हें आईआईटी में प्रवेश दिलवाने की दिशा में लगातार प्रयासरत रहे ‘सुपर 30’ के संस्थापक गणितज्ञ आनंद के अनुसार, इस साल आईआईटी एडवांस परीक्षा के 21 जून को घोषित परिणाम में मेहनतकश वर्ग के बच्चों ने एक बार फिर यह जता दिया है कि सफलता, समृद्धि की मोहताज नहीं है।

इंजीनियरिंग पढ़ऩे के इच्छुक हर विद्यार्थी के लिए आईआईटी में प्रवेश एक सपना होता है। अर्थाभाव इसमें बाधा बनता है, लेकिन सबके लिए नहीं। दलित-पिछडे परिवारों के बच्चों की मेधा को तराश कर, उन्हें आईआईटी में प्रवेश दिलवाने की दिशा में लगातार प्रयासरत रहे ‘सुपर 30’ के संस्थापक गणितज्ञ आनंद के अनुसार, इस साल आईआईटी एडवांस परीक्षा के 21 जून को घोषित परिणाम में मेहनतकश वर्ग के बच्चों ने एक बार फिर यह जता दिया है कि सफलता, समृद्धि की मोहताज नहीं है। गणितज्ञ आनंद के ‘सुपर 30’ के 30 में से 28 विद्यार्थी सफल रहे हैं। बिहार के पुलिस महानिरीक्षक अभयानंद द्वारा संचालित मगध ‘सुपर 30’ के आठ केंद्रों से कुल 308  विद्यार्थी परीक्षा में शामिल हुए थे, जिनमें से 233 ने मुख्य परीक्षा में सफलता प्राप्त की थी व इनमें से 71 का चयन हुआ है।

वहीं बेगूसराय के हंजाला शफी के पिता मो. शफी को अपने बेटे की सफलता की खबर जूते बेचते वक्त मिली। जूतों की एक दुकान में सेल्समैन, शफी के सुपुत्र को ओबीसी श्रेणी में 732 वां स्थान मिला है। हंजाला ने एक साल पहले ‘सुपर 30’ में दाखिला लिया था। उत्तरप्रदेश के गाज़ीपुर निवासी रामप्यारे राम दैनिक मजदूर हैं। पटना में संचालित ‘सुपर 30’ का पता चला तो बेटे भानूप्रताप का दाखिला यहां करा दिया। भानू ने इस बार की परीक्षा में ओबीसी श्रेणी में 380 वां स्थान हासिल किया है।

कपड़े की छोटी-सी दुकान चला गुजर-बसर करने वाले औरंगाबाद के देव निवासी अति पिछडी जाति से आने वाले सुरेंद्र चौरसिया अपने बेटे शेखर कुमार की सफलता पर फूले नहीं समा रहे हैं। शेखर, ‘मगध सुपर 30’ का छात्र रहा है। हंजाला, भानू प्रताप व शेखर की ही तरह समस्तीपुर के प्रणब कुमार के पिता पंकज कुमार एवं गया के बेलागंज निवासी चंदन के पिता अजय कुमार गरीब किसान हैं। चंदन गांव का पहला बच्चा है, जिसने आईआईटी की परीक्षा में सफलता प्राप्त की है। गया शहर के बैंक आफ बड़ोदा गली निवासी शुभम ने सामान्य वर्ग में 14,000वां एवं ओबीसी में 2500वां स्थान प्राप्त किया है। उसके पिता रामचंद्र प्रसाद पहले फेरीवाले थे। बाद में रिक्शा चलाने लगे। ऐसे और उदाहरण भी हैं।

(फारवर्ड प्रेस के अगस्त 2013 अंक में प्रकाशित)

लेखक के बारे में

अमित आलोक

अमित आलोक फारवर्ड प्रेस के राज्य संवाददाता, बिहार हैं

संबंधित आलेख

अब खामोशी छोड़ेंगीं बसपा प्रमुख, आएंगीं मैदान में नजर 
उत्तर प्रदेश के सियासी गलियारे में बसपा प्रमुख की चुप्पी को लेकर कयासबाजियां लगाई जा रही हैं। भाजपा से लेकर सपा और कांग्रेस तक...
रायपुर में जुटे बुद्धिजीवी, प्रो. वर्जिनियस खाखा ने कहा– हम आदिवासी नहीं करते प्रकृति का अनुचित दोहन
बहुजन साप्ताहिकी के तहत इस बार पढ़ें रायपुर में हो रहे तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी, पटना में फणीश्वरनाथ रेणु जन्मशताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में...
क्या है ओबीसी साहित्य?
राजेंद्र प्रसाद सिंह बता रहे हैं कि हिंदी के अधिकांश रचनाकारों ने किसान-जीवन का वर्णन खानापूर्ति के रूप में किया है। हिंदी साहित्य में...
बहुजनों के लिए अवसर और वंचना के स्तर
संचार का सामाजिक ढांचा एक बड़े सांस्कृतिक प्रश्न से जुड़ा हुआ है। यह केवल बड़बोलेपन से विकसित नहीं हो सकता है। यह बेहद सूक्ष्मता...
पिछड़ा वर्ग आंदोलन और आरएल चंदापुरी
बिहार में पिछड़ों के आरक्षण के लिए वे 1952 से ही प्रयत्नशील थे। 1977 में उनके उग्र आंदोलन के कारण ही बिहार के तत्कालीन...