महबूबअली बावा साहिब गुजरात हज कमेटी व राज्य भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चे के अध्यक्ष हैं। नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का अपना उम्मीदवार घोषित करने के परिप्रेक्ष्य में फॉरवर्ड प्रेस के गुजरात संवाददाता अर्नोल्ड क्रिस्टी ने मुसलमानों के मोदी के प्रति दृष्टिकोण व अन्य संबंधित मुद्दों पर उनसे बातचीत की। चर्चा के चुनिंदा अंश प्रस्तुत हैं।
आपको गुजरात भाजपा के अल्पसंख्यक मोर्चे का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। इस नियुक्ति को आप कैसे देखते हैं? और इससे आप मुस्लिम समुदाय की किस प्रकार भलाई कर पाएंगे?
सन् 2010 में जब मुझे इस पद पर नियुक्त किया गया था तब मुसलमान, भाजपा और नरेंद्र मोदी का इस हद तक समर्थन नहीं करते थे। परंतु 2010 में मेरी नियुक्ति के बाद से भाजपा के टिकट पर कम से कम 200 मुसलमानों ने स्थानीय निकायों के चुनाव में जीत हासिल की है। यह एक बड़ी सफलता है। इतनी बड़ी संख्या में भाजपा के मुस्लिम उम्मीदवार देश के किसी भी राज्य में शायद ही कभी चुनाव जीते होंगे। भाजपा और उसकी सरकार को दंगों और नरसंहार के लिए दोषी ठहराने वाले हमारे विरोधियों को यह हमारा करारा जवाब था। यह इसलिए संभव हो सका, क्योंकि नरेंद्र मोदी ने गुजरात को सुशासन दिया है। पिछले ग्यारह सालों में गुजरात में कहीं भी कर्फ्यू लगाने की नौबत नहीं आई। मोदी की सरकार में पूरे राज्य में शांति बनी हुई है। गुजरात, दंगा और आतंकवाद मुक्त राज्य बन गया है। मुसलमानों और हिन्दुओं दोनों की प्रगति हो रही है और ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। इसलिए मुसलमानों ने भाजपा को वोट दिया और देते जा रहे हैं।
अगर ऐसा है तो यह बताइए कि भाजपा और मोदी ने सन् 2012 के विधानसभा चुनाव में एक भी मुसलमान को अपना उम्मीदवार क्यों नहीं बनाया?
जीत और हार, उम्मीदवार के चयन पर निर्भर करती है। इस बार जीपीपी (विद्रोही भाजपा नेता केशुभाई पटेल के नेतृत्व वाली गुजरात परिवर्तन पार्टी) एक महत्वपूर्ण कारक थी। इसके अलावा, स्थानीय मुस्लिम नेता हमारी प्रत्याशी चयन समितियों के समक्ष उपयुक्त नाम नहीं रख सके। अगर हम मुसलमानों को उम्मीदवार बनाते तो जीपीपी हिन्दू उम्मीदवार खड़े कर साम्प्रदायिक कार्ड खेलती और इससे भाजपा के चुनावी समीकरण गड़बड़ा जाते। पिछले चुनाव में हर विधानसभा क्षेत्र हमारे लिए महत्वपूर्ण था। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि विधायक हिन्दू है या मुसलमान। फर्क इससे पड़ता है कि विजयी उम्मीदवार अपने क्षेत्र के लिए क्या करता है और इससे हिन्दुओं और मुसलमानों दोनों को क्या फायदा होता है। कई राज्यों में मुसलमानों की आबादी, गुजरात से कहीं ज्यादा है और वहां बड़ी संख्या में मुसलमान विधायक भी हैं, परंतु उन राज्यों में मुसलमानों की हालत क्या है? केवल सुशासन से मुसलमानों को लाभ हो सकता है, विधानसभा में मुसलमानों के प्रतिनिधित्व से नहीं। और नरेंद्र मोदी के सुशासन से गुजरात के मुसलमानों को बहुत लाभ हुआ है। ‘सबके साथ न्याय, किसी का तुष्टिकरण नहीं’ का उनका नारा बहुत प्रभावकारी सिद्ध हुआ है।
क्या मोदी ने विधानसभा में मुसलमानों को कोई प्रतिनिधित्व इसलिए नहीं दिया, क्योंकि उससे उनकी हिन्दू हृदय सम्राट की छवि प्रभावित होती? क्या उन्होंने अब प्रधानमंत्री बनने की अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए, बतौर प्रयोग, मुसलमानों को स्थानीय निकायों में प्रतिनिधित्व देना शुरू किया है?
अगर नरेंद्र मोदी को अपनी हिन्दुत्ववादी छवि की इतनी चिंता होती तो वे मुस्लिम उम्मीदवारों की स्थानीय निकायों के चुनाव में जबर्दस्त जीत के बाद मुसलमानों को विभिन्न स्तरों पर महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त क्यों करते? उन्होंने कम से कम 125 मुसलमानों को विभिन्न नगरपालिकाओं और पंचायतों में अध्यक्ष या अन्य महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त किया है। चुनावों में जीत की संभावना, टिकट वितरण का एकमात्र आधार होती है। टिकट उसी उम्मीदवार को दिया जाना चाहिए जिसके जीतने की सर्वाधिक संभावना हो। इसीलिए हमने मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट नहीं दिए।
गुजरात में मुसलमानों के कैसे हालात हैं? राजनीति में सक्रिय मुसलमानों की बात हम न करें। आम मुसलमानों के हालात का आपका आकलन क्या है?
गुजरात के मुसलमान शैक्षणिक, सामाजिक व आर्थिक मानकों पर काफी समृद्ध हैं। दूसरे राज्यों के मुसलमानों की तुलना में वे अधिक शिक्षित हैं। आपको विश्वास नहीं होगा परंतु यह सच है कि गुजरात के मुसलमान जितनी जकात देते हैं उतनी किसी अन्य राज्य के मुसलमान नहीं देते। गुजरात के मुसलमानों की प्रतिव्यक्ति आय, अन्य राज्यों के मुसलमानों से कहीं अधिक है। हमने पिछले कई दशकों में मुसलमानों और हिन्दुओं के बीच इतना भाईचारा कभी नहीं देखा जितना कि हम आज देख रहे हैं। कानून और व्यवस्था की स्थिति बहुत अच्छी है और इससे राज्य में शांति और सद्भाव का वातावरण बना हुआ है।
क्या आपको ऐसा लगता है कि गुजरात में तीसरे मोर्चे या कांग्रेस के अलावा, किसी अन्य धर्मनिरपेक्ष दल के अभाव के कारण, मजबूरी में मुसलमानों को भाजपा को वोट देना पड़ रहा है?
कांग्रेस सहित सभी तथाकथित धर्मनिरपेक्ष पार्टियां, मुसलमानों का विकास करने में असफल रही हैं। सच्चर समिति की रिपोर्ट में भी गुजरात के भाजपा शासन की तारीफ की गई है। मोदी के शासन के सकारात्मक पक्ष को मीडिया नजरंदाज करता रहा है, परंतु सोशल मीडिया ने आम जनता को सच्चाई से अवगत कराया है। कांग्रेस की फूट डालो और राज करो कि नीति के कारण, मुसलमान और भाजपा कभी नजदीक नहीं आ सके। परंतु अब उनकी एक दूसरे से वाकिफियत बढ़ी है और इससे दोनों के बीच सद्भावना का संचार हुआ है। अब दोनों एक दूसरे पर विश्वास करने लगे हैं और इसलिए मुसलमान अब भाजपा को वोट दे रहे हैं। मुसलमानों ने कम से कम 16 विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
क्या अन्य राज्यों के मुसलमान भाजपा या नरेंद्र मोदी को स्वीकार करेंगे?
राजस्थान और मध्यप्रदेश में हमारी जड़ें काफी मजबूत हैं। अन्य राज्यों में भी हम कोशिश कर रहे हैं। हम एक दृष्टिपत्र तैयार कर रहे हैं जिसमें विकास संबंधी वे आंकड़े शामिल होंगे, जो यह साबित करेंगे कि गुजरात में हिन्दुओं व मुसलमानों सहित और पूरे समाज की प्रगति हुई है।
इस दृष्टिपत्र में क्या होगा? क्या इसमें केवल चुनावी वायदे होंगे?
हम कांग्रेस की तरह हथेली में चांद नहीं दिखाएंगे। कांग्रेस योजनाएं बनाती है परंतु उन्हें लागू नहीं करती। सच्चर समिति की रिपोर्ट आने के बाद यूपीए सरकार ने अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिए 40 सूत्री योजना बनाई थी। परंतु राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष वजाहत हबीबउल्ला ने अपनी अहमदाबाद यात्रा के दौरान यह आरोप लगाया कि केंद्र सरकार की घोषणा के बावजूद, इनमें से 39 बिंदुओं पर कोई अमल नहीं हुआ है। अगर योजनाएं लागू ही नहीं की जाएंगी तो उनका क्या अर्थ है?
भाजपा, धर्मनिरपेक्ष शक्तियों पर मुसलमानों का तुष्टीकरण करने का आरोप लगाती रही है। क्या अब भाजपा भी वही नहीं कर रही है?
कांग्रेस ने हमेशा मुस्लिम कट्टरपंथियों का तुष्टिकरण किया है परंतु हम पढ़े-लिखे, देशभक्त मुसलमानों को भाजपा में ला रहे हैं। भाजपा में साम्प्रदायिक तत्वों और अपराधियों के लिए कोई जगह नहीं है। हम तो उन मुसलमानों को अपने साथ ले रहे हैं जो राष्ट्रवाद, शांति और सद्भाव में यकीन करते हैं।
(फारवर्ड प्रेस के अक्टूबर 2013 अंक में प्रकाशित)
फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्त बहुजन मुद्दों की पुस्तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्य, सस्कृति व सामाजिक-राजनीति की व्यापक समस्याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in
फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें
मिस कैथरीन मेयो की बहुचर्चित कृति : मदर इंडिया