नई दिल्ली : गत् 11 दिसंबर को लगभग 300 ईसाई प्रदर्शनकारियों, जिनमें कई बिशप, पादरी और नन शामिल थे, को नई दिल्ली पुलिस ने तब रोक लिया जब वे जंतर-मंतर से अशोक रोड की तरफ बढ़ रहे थे। कैथोलिक आर्कबिशप अनिल जेटी काउटो व जदयू सांसद अली अनवर सहित सभी प्रदर्शनकारियों को पार्लियामेंट स्ट्रीट पुलिस थाना ले जाया गया, जहां से उन्हें कुछ घंटों बाद छोड़ दिया गया।
दिल्ली पुलिस ने एक वक्तव्य जारी कर कहा कि ‘न तो कोई बल प्रयोग किया गया और ना ही लाठी चार्ज हुआ।’ इस दावे का खंडन करते हुए ईसाई चर्च के प्रवक्ता आर्कबिशप काउटो ने कहा, ‘यह कानून असंवैधानिक है। सभी सरकारें ईसाईयों की मांगों को अनसुना करती रही हैं और अब हमारे पादरियों और ननों पर हमला बोला गया और उन्हें गिरफ्तार भी किया गया। हमारे वकील पुलिस की इस क्रूरता के विरुद्ध आपराधिक मुकदमा दायर करेंगे।’
इवेनजेलिकल फेलोशिप ऑफ इंडिया के अनुसार, ‘पुलिस के महिला सेल में दिल्ली पुलिस के कुछ जवानों द्वारा कैथोलिक ननों और अन्य महिलाओं को लाठियों से पीटने और उनके साथ बदसलूकी करने की शिकायत की गई है। घटनास्थल पर कोई महिला पुलिसकर्मी नहीं थी।’ जिस अन्यायपूर्ण प्रावधान के विरुद्ध ये ईसाई व कुछ मुसलमान प्रदर्शन कर रहे थे, वह है संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश 1950 जिसके अंतर्गत संविधान के अनुच्छेद 25 का उल्लंघन करते हुए धर्म के आधार पर नागरिकों से भेदभाव किया जाता है। इस आदेश में बाद में कुछ संशोधन किए गए, जिससे बौद्ध व सिख धर्म अपनाने वाले दलितों को अनुसूचित जाति का दर्जा मिल गया परंतु जो दलित ईसाई या इस्लाम धर्म ग्रहण करते हैं, उन्हें यह दर्जा नहीं मिलता। यह इस तथ्य के बावजूद कि रंगनाथ मिश्रा आयोग (2007) व उसके बाद राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग ने मुस्लिम और ईसाई दलितों को भी अनुसूचित जाति का दर्जा देने की सिफारिश की है।
(फारवर्ड प्रेस के जनवरी, 2014 अंक में प्रकाशित )
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