दिल्ली विश्वविद्यालय के विद्वत परिषद और कार्यकारी परिषद दो-दो बार सदस्य रह चुके चुके डॉ. अजय कुमार भागी का कहना है कि डूटा सभी शिक्षकों का एक साझा मंच है और इसे किसी भी हालत में राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति का माध्यम नहीं बनना चाहिए। बातचीत के दौरान उन्होंने पोस्ट डॉक्टोरल फेलोशिप में ओबीसी के आरक्षण को लेकर भी अपना पक्ष रखा। प्रस्तुत है डॉ. भागी से कुमार समीर की बातचीत का संपादित अंश :
कुमार समीर (कु स.) : आप एनडीटीएफ के डूटा अध्यक्ष प्रत्याशी हैं, आप किन-किन मुद्दों को लेकर चुनाव लड़ने जा रहे हैं!
डॉ. अजय कुमार भागी (डॉ. भागी) : देखिए, मैं विश्वविद्यालय के शिक्षकों को भरोसा दिलाना चाहता हूं कि अगर उन्हें जीत मिली तो मेरे नेतृत्व में डूटा शिक्षकों की समस्याओं के समाधान का केंद्र बनेगी और लंबे समय से शिक्षकों की परेशानियों का निदान कर पाने में विफल रहे डूटा नेतृत्व के प्रति फिर से शिक्षकों का विश्वास कायम करूंगा।
कु.स. : डीयू में ओबीसी शिक्षक कम हैं। इनकी संख्या बढ़ाने के लिए संघर्ष करने की आपकी योजना है?
डॉ. भागी- यह बात बिल्कुल सही है कि विश्वविद्यालय में ओबीसी शिक्षक कम हैं लेकिन इसका सबसे बड़ा कारण यह भी है कि ओबीसी का प्रावधान साल 2006 में आया। संख्या कम होना स्वाभाविक बात है, लेकिन अब जब नये पदों का सृजन होता है और रोस्टर में ओबीसी को जगह मिले तो इसका समाधान निकल सकता है। बैकलाॅग से भी इसका निदान निकाला जा सकता है। इस पर गंभीरता से विचार कर सार्थक पहल की तरफ कदम बढ़ाया जाएगा।
कु.स. : पोस्ट डाक्टोरल रिसर्च में ओबीसी को आरक्षण नहीं मिलता है, जिससे इन तबकों से आने वाले नए शिक्षकों को आगे बढ़ने में दिक्कत आती है। आप क्या कहेंगे?
डॉ. भागी : आरक्षण भीख नहीं, हक है और यूजीसी सहित और कोई भी संस्थान क्यों नहीं हो, कहीं कोई चूक है तो सुधार के लिए दबाव बनाया जाएगा और जरूरत पड़ने पर संघर्ष किया जाएगा।

कु.स. : आपके एजेंडे में और कौन-कौन सी विशेष बातें हैं ?
डॉ. भागी : सरकार को 100 फीसदी वित्त पोषण जारी रखना होगा और इंफ्रास्ट्रक्चर वह अतिरिक्त 25 फीसद शिक्षण और गैर-शिक्षण पदों के लिए अतिरिक्त ईडब्ल्यूएस विस्तार बजट देना होगा। साथ ही दिल्ली सरकार के साथ फंड को लेकर खींचतान पर तत्काल रोक लगे, कर्मचारियों को कैशलेस मेडिकल सुविधाएं मिले। सभी सरकारी विभागों प्राइवेट अस्पतालों में ईडब्ल्यूएस कोटे की बहाली 1 फरवरी 2019 से लागू हो और उससे पहले से पढ़ा रहे एडहाॅक टीचर्स पर इससे असर ना पड़े यह सुनिश्चित हो। इसके साथ ही अब जो भी विज्ञापन निकाले जाएं उसमें नये पदों का सृजन कर ईडब्ल्यूएस कोटे को बहाल किया जाए। इसके बिना विज्ञापन अधूरा माना जाय।
कु.स. : आपने कई अवसरों पर कहा है कि डूटा से शिक्षकों का विश्वास कम हुआ है। इसकी क्या वजहें रहीं?
डॉ. भागी : डूटा सभी शिक्षकों का एक साझा मंच है और इसलिए यह राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति करने का माध्यम नहीं बनना चाहिए। सामान्य मंच से राजनीतिक मंच जैसा व्यवहार विश्वास कम होने की प्रमुख वजह रही।
कु.स. : यानि अगर आपको मौका मिलता है तो डूटा को किसी भी राजनीतिक विचारधारा से दूर रखेंगे?
डॉ. भागी : हर किसी की विचारधारा को बदल नहीं सकते। हां, किसी विचारधारा से शिक्षकों का हित अगर प्रभावित हो रहा हो तो उसे फटकने नहीं देना चाहिए। लंबे समय से यही हुआ है कि किसी खास विचारधारा से शिक्षकों का हित प्रभावित होता रहा लेकिन परवाह नहीं की गई।
कु.स. : आपका आशय वामपंथी विचारधारा से तो नहीं है?
डाॅ. भागी : देखिए, मैं केवल एक विचारधारा की बात नहीं कर रहा हूं। विचारधारा कोई भी हो जिससे शिक्षक हित प्रभावित हो रहा हो, उससे दूर रहने की बात कर रहा हूं।
कु.स. : अभी हाल ही में डीयू के पाठ्यक्रम में भी विचारधारा विशेष के इंटरफ्रेंस की बात सामने आई है? इसका संबंध भी आपके संगठन एनडीटीएफ से है। आप क्या कहेंगे?
डॉ. भागी : डीयू में कुल 80 डिपार्टमेंट हैं, इनमें से चार डिपार्टमेंट इतिहास, राजनीति विज्ञान, समाज शास्त्र और अंग्रेजी के पाठ्यक्रम पर आपत्ति है। शेष 76 विभागों के पाठ्यक्रमों को लेकर कहीं कोई दिक्कत नहीं है। जहां तक इन चार विभागों के पाठ्यक्रम का सवाल है तो मेरा साफ मानना है कि आपत्तियों पर गौर किया जाय और उनके तर्क सुने जाएं। सही लगे तो उस पर विचार किया जाए। मैं एक बार फिर आपको दोहराता हूं कि पाठ्यक्रम किसी भी पार्टी चाहे वह वामपंथी हो, कांग्रेसी हो या फिर दक्षिणपंथी, उसके एजेंडे पर आधारित बिल्कुल नहीं हो। साथ ही ऐसे उदाहरण भी नहीं दिए जाएं जिससे गलत संदेश जाए। मसलन अब इसे क्या कहिएगा कि नक्सलवाद को सामाजिक आंदोलन बताया जा रहा है और आरएसएस को सांप्रदायिक व व्यक्तिवादी कहा जा रहा है।
कु.स. : ऐसे में अलग-अलग विचारधाराओं वाले शिक्षकों के समूह से आप कैसे सामंजस्य बिठाएंगे?
डॉ. भागी : देखिए, शिक्षकों को एक टीम के रूप में काम करना होगा तभी शिक्षकों व शैक्षणिक संगठनों की स्वायतत्ता को बचाए रखा जा सकता है। दूसरे शब्दों में कहें तो अकादमिक स्वायत्तता को बाहरी और आंतरिक खतरों से बचाने के लिए राजनीतिक एजेंडे को छोड़कर मिलकर काम करना होगा। चाहे सिलेबस की बात हो या फिर अधिकार की बात, मुद्दों पर एकजुट होकर ही बात पूरी करवायी जा सकती है। आपसी फूट से दबाव कम होता है। हमें सातवें वेतन आयोग की अनुशंसाओं को लागू कराने, रेगुलराइजेशन व प्रमोशन के लिए एकजुटता बनाए रखना है और भरोसा दिलाता हूं, इसे हासिल करके रहेंगे। इसके साथ साथ यूजीसी की विसंगतियों को समिति के माध्यम से बचे हुए विषयों का भी निपटारा जल्द कर लिया जाएगा।
कु.स. : एक मामला दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति का भी है। शिक्षकों के प्रति उनके रुख को आप कैसे देखते हैं?
डॉ. भागी : दिल्ली विश्वविद्यालय के मौजूदा कुलपति का रुख बिल्कुल नकारात्मक रहा है और दूसरे शब्दों में कहें तो प्रशासनिक व शैक्षणिक दोनों जगहों पर इनके कार्यकाल में नकारात्मक निर्णय पर जोर रहा है। शिक्षण व्यवस्था पर इसका प्रतिकुल असर पड़ा है। कुलपति के खिलाफ सीरियस इंक्वायरी हो, यह भी उनके एजेंडे में है। डूटा की मौजूदा कार्यकारिणी का रोल भी इस संदर्भ में बहुत अच्छा नहीं रहा क्योंकि दबाव पड़ने पर कुलपति के खिलाफ श्वेत पत्र तो लाया गया लेकिन उसके बाद उस पर गंभीरता से फाॅल़ोअप नहीं किया गया।
कु.स. : डीटीएफ तो आप पर कुलपति के साथ मिलीभगत का आरोप लगा रहा है?
डा भागी- आरोप लगाना आसान है लेकिन हकीकत का सामना करना उतना ही मुश्किल है। शिक्षक समुदाय डीटीएफ की दोहरी नीति को भांप चुके हैं, समय आने दीजिए चुनाव परिणाम सब कुछ साफ़ कर देगा।
(कॉपी संपादन : नवल)
(आलेख परिवर्द्धित : 13 अगस्त 2019, 11;20 AM)
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