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जब हमीरपुर में रामस्वरूप वर्मा जी को जान से मारने की ब्राह्मण-ठाकुरों की साजिश नाकाम हुई

हमलोग वहां बस से ही गए थे। विरोधियों की योजना यह थी कि वर्मा जी जैसे ही बस में चढ़ें, बस का चालक तेजी से बस को बढ़ा दे और वे लोग अवसर पाएं। आगे खेत में लोग बंदूक लेकर खड़े थे। रामस्वरूप वर्मा की जयंती के अवसर पर पढ़ें, राष्ट्रीय शोषित समाज दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामचंद्र कटियार का यह संस्मरण

हमीरपुर की एक घटना है। यहां रामस्वरूप वर्मा (22 अगस्त, 1923 – 19 अगस्त, 1998) जी का कार्यक्रम था। यह बुंदेलखंड में पड़ता है। यह अंधविश्वास का गढ़ था। वहां कचहरी मैदान में कार्यक्रम होना था। मनफूल सिंह जिला अदालत में वकील थे। उन्होंने कार्यक्रम का आयोजन रखा था। उन्होंने मुझे भी खबर भेजी कि वर्मा जी का कार्यक्रम है, आप भी आ जाइए। ब्राह्मणों ने हल्ला मचा दिया था कि यदि कार्यक्रम हुआ तो गोली चलेगी। वहां दो नदियां हैं– बेतवा और यमुना। दोनों नदियों के बीच ही हमीरपुर बसा है। वहां कोई और बड़ा मैदान नहीं है, जहां बड़ी सभा हो सके। ब्राह्मणों ने खूब हल्ला मचा रखा था।

तब वहां के डीएम ने एसडीएम से रामस्वरूप वर्मा जी को कहलवाया कि कार्यक्रम रद्द कर दें, क्योंकि बहुत तनाव है। वर्मा जी सर्किट हाउस में ठहरे थे। जब एसडीएम ने कार्यक्रम रद्द करने की बात कही तब वर्मा जी ने कहा कि तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई कार्यक्रम को रद्द करने की बात कहने की। कितने दिन की तुम्हारी नौकरी हुई। सभा क्यों रद्द करें। जनतंत्र में अपनी बात रखने का अधिकार है। हम तो अपनी बात रखेंगे। बाकायदा कार्यक्रम का पर्चा बांटा गया है। शांति कायम रखना सरकार का काम है। यदि मैं कुछ भी असंवैधानिक बात कहूं तो सरकार मेरे खिलाफ कार्रवाई करे।

एसडीएम ने जाकर डीएम को कहा कि वर्मा जी नहीं मान रहे हैं। तब डीएम खुद आया। उसने वर्मा जी से कहा कि बहुत तनाव है। सुरक्षा तो हम कर ही रहे हैं। आप सभा करिए लेकिन कड़वा न बोलिएगा। तब वर्मा जी ने कहा कि आप हमें न समझाइए, हमें जो बोलना है, वह बोलेंगे ही। आपके हिसाब से हम थोड़े न कोई बात कहेंगे। लेकिन मैं बताऊं कि वर्मा जी का इतना कड़वा भाषण मैंने कभी नहीं सुना जो उन्होंने हमीरपुर में दिया। उन्होंने शुरू में ही कहा कि यहां के लोगों का मानना है कि हम बहुत कड़वा बोलते हैं। अब हम बोलना शुरू करते हैं। जहां कड़वा लगे, बता देना कि क्या मिला दूं ताकि मीठा हो जाय। ब्राह्मण कहता है कि वह द्विज है। हमारा कहना है कि द्विज वह होता है जो दो बार पैदा हो। दो बार पैदा होने में या तो जच्चा मरेगा या फिर बच्चा। अब बताओ कि इसमें क्या कड़वा है और क्या मिला दूं कि मीठा हो जाय?

‘सामाजिक न्याय की जमीनी दास्तान’ का मुख पृष्ठ व महामना रामस्वरूप वर्मा की तस्वीर

पूरा भाषण डेढ़ घंटे का था। जब सभा खत्म हो गई तब जो हमीरपुर के ऊंची जाति के समाजवादी थे, वे वर्मा जी से मिलने आए। तब वर्मा जी ने उनसे यही कहा कि क्या डॉ. लोहिया ने तुम सभी को यही समाजवाद सिखाया था। दलित-बैकवर्ड लोगों को जानवर समझते हो। तब उनलोगों ने वर्मा जी से कहा कि आप आए हैं तो आपने यह बात उठाई है। आप और आएंगे तो यह बात तेजी से फैलेगी।

उसके बाद क्या हुआ कि वहां वर्मा जी को जान से मारने की प्लानिंग की गई थी। हमलोग वहां बस से ही गए थे। विरोधियों की योजना यह थी कि वर्मा जी जैसे ही बस में चढ़ें, बस का चालक तेजी से बस को बढ़ा दे और वे लोग अवसर पाएं। आगे खेत में लोग बंदूक लेकर खड़े थे। लेकिन हुआ कुछ ऐसा कि वर्मा जी के बजाय मनफूल सिंह एडवोकेट – जो कि आयोजक और शोषित समाज दल के जिला मंत्री भी थे– बस में पहले चढ़ गए। वे वर्मा जी के जैसे ही गोरे थे। जैसे ही वे बस में पहले चढ़े और बस चालक ने बस को भगा दिया। यह देख हमें आशंका हुई और हम पैदल ही बस के पीछे भागे। वर्मा जी वहीं खड़े रहे। बाद में जब दारोगा गाड़ी लेकर आया उन्होंने उससे कहा कि देखिए, आगे बदमाश लगे हैं, मुझे मारने के लिए। फिर पुलिस उन्हें अपनी गाड़ी में बिठाकर बस की दिशा में गई।

उधर बस एक किलोमीटर दूर भी नहीं गई होगी कि पहले से घात लगाए दस-बारह की संख्या में ब्राह्मण-ठाकुरों ने बस को घेर लिया। जब वे बस में चढ़े तब उसमें वर्मा जी थे ही नहीं। यह देख वे भाग निकले। तो हमीरपुर में ब्राह्मण-ठाकुरों के वर्चस्व का यह आलम था उस समय, जिसे वर्मा जी ने चुनौती दी थी। यह सत्तर के दशक की घटना थी। उस समय ब्राह्मणवाद के खिलाफ मुहिम चलाना बहुत कठिन काम था। रही बात पुलिस की कार्रवाई की तो उसने बस इतना ही किया कि अपनी गाड़ी में वर्मा जी और जो दो-चार लोग उनके साथ थे, सभी को घाटमपुर तक छोड़ने आई जो कि हमीरपुर से करीब 10-11 किलोमीटर दूर है।

(‘सामाजिक न्याय की जमीनी दास्तान’ किताब से उद्धृत)


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लेखक के बारे में

रामचंद्र कटियार

लेखक रामस्वरूप वर्मा और जगदेव प्रसाद द्वारा गठित शोषित समाज दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं

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