जब कभी भी इस देश में लोकशाही पर तानाशाही हावी हुई है, तब जनांदोलनों ने ही लोकतंत्र को बचाया है। बिहार में विशेष गहन मतदाता पुनरीक्षण (एसआईआर) के जरिए 65 लाख मतदाताओं का नाम मतदाता सूची से बाहर किये जाने के खिलाफ विपक्षी दलों की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ मायूस चेहरों में चमक पैदा कर रही है। यह यात्रा नाउम्मीदी के इस दौर में उम्मीद जगा रही है जिनके लिए ‘वोट का राज मतलब छोट का राज’ होता है। ‘वोट चोर गद्दी छोड़’ का नारा उन तबकों के लोगों की जुबान पर चढ़ता जा रहा है, जिनके लिए हाल तक वोट डालना भी भारी जोखिम भरा काम हुआ करता था। जिनके बाप-दादाओं ने मार खाकर, जान गंवाकर और जनसंहार झेलकर वोट का अधिकार हासिल किया। इतनी मुश्किलों और मशक्कतों के बाद हासिल ‘एक वोट’ का अधिकार ही आज संकट में है।
मसलन, बांका जिले के बंधुडीह गांव की रेखा देवी का कहना है कि “मैं मर चुकी हूं। चुनाव आयोग द्वारा जारी मृत लोगों की सूची में अपना नाम देखकर चौंक गई। मैंने विधानसभा, लोकसभा और पंचायत चुनाव में वोट दिया था। हमेशा मेरा नाम सही आया, इस बार फिर जब बीएलओ को सभी दस्तावेज दिए तो उसने मुर्दा बना दिया। पता नहीं सब कैसे काम कर रहा है। देखिए अब नाम जुड़वाने के लिए फिर चक्कर काटना पड़ेगा।”
रेखा देवी ऐसी अकेली महिला नहीं हैं, जिनका नाम मृतकों की सूची में शामिल है। पटना, बांका, मधेपुरा, वैशाली सहित राज्य के सभी 38 जिलों में कई ऐसे लोग हैं, जो आयोग की लिस्ट में मर चुके हैं। लेकिन हकीकत में जिंदा हैं। द रिपोर्टर्स कलेक्टिव के एक रिपोर्ट में बगहा, पिपरा और मोतिहारी विधानसभा क्षेत्रों में फर्जी पतों पर दर्ज 80 हजार वोटरों का खुलासा हुआ है। इसी रिपोर्ट में पश्चिम चंपारण के वाल्मीकिनगर में पांच हजार ऐसे वोटर पाए गए हैं, जिनके नाम पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती जिले में दर्ज हैं।
संकट के इस दौर में विपक्ष ने हड़पे जा रहे ‘मताधिकार’ की रक्षा करने के लिए लोगों को जगाने के संकल्प के साथ वोटर अधिकार यात्रा की शुरुआत की है। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी, बिहार के पूर्व उप-मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव, भाकपा माले के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य, विकासशील इंसान पार्टी (वीआइपी) प्रमुख मुकेश सहनी के नेतृत्व में गत 17 अगस्त को सासाराम से यात्रा का जो आगाज हुआ, वह औरंगाबाद, गया, शेखपुरा, मुंगेर और भागलपुर होते हुए आगे बढ़ रहा है। नेताओं को सुनने और देखने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ रही है। राहुल इस यात्रा के मुख्य आकर्षण हैं तो तेजस्वी सारथी की भूमिका में हैं।
राहुल चमकते सितारों के बीच अगर दीप्तिमान हैं तो इसलिए हैं क्योंकि उन्होंने तमाम विपरीत परिस्थितियों के बीच समझौताहीन संघर्ष का रास्ता चुना है। उनके अथक संघर्ष ने मृतप्राय कांग्रेस में न सिर्फ जान फूंका है बल्कि विपक्षी दलों की एकजुटता को मजबूती भी दी है। उनमें समन्वय और सहयोग की भावना भरी है। लोगों को लड़ने की प्रेरणा दी है। राहुल रचने और लड़ने दोनों का संदेश दे रहे हैं। वह मोदी की तानाशाही को उखाड़ फेंकने का आह्वान करते सुनाई देते हैं तो ‘माउंटेन मैन’ दशरथ मांझी के पुत्र को गया के गहलौर में नवनिर्मित घर की चाबी भी सौंपते नजर आते हैं।

राहुल कहते हैं कि हिंदुस्तान में गरीबों के पास आज सिर्फ वोट बचा हुआ है। अगर यह भी चला गया तो सब चला जाएगा। इतना सुनते ही भीड़ जोरदार स्वर में नारे लगाने लगती है– ‘वोट चोर, गद्दी छोड़’। नारों का शोर बढ़ता जाता है। कारवां आगे बढ़ने लगता है।कुल 17 दिनों की इस यात्रा में राहुल-तेजस्वी दक्षिण बिहार से होते हुए उत्तर बिहार का परिभ्रमण करेंंगे और समापन पर राजधानी पटना में एक मंच से जीत की हुंकार भरेंगे। तब तक वे 25 जिलों में 1300 किलोमीटर की यात्रा पूरी कर चुके होंगे।
राहुल की राजनीति में लगातार इतने दिनों तक बिहार में रहने का यह पहला उदाहरण होगा। महागठबंधन के लिए बिहार चुनाव के महत्व का आकलन इससे सहजता से किया जा सकता है। इसीलिए राजद, कांग्रेस और भाकपा माले ने इस यात्रा की सफलता के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रखा है। वीआइपी, भाकपा और माकपा अपने प्रभाव क्षेत्र में वोटरों को जगाने और गोलबंद करने में जुटी है। इनकी एकजुटता भीड़ में लहराते अलग-अलग रंगों वाले झंडों में भी दिखती है।

‘वोट चोरी’ का मुद्दा और ‘वोट चोर गद्दी छोड़’ का नारा इस कदर हिट हुआ है कि अब यह राष्ट्रीय आंदोलन का स्वरूप लेता दिख रहा है। सड़क पर गूंज रहा, ‘वोट चोर गद्दी छोड़’ का नारा संसद के मानसून सत्र के समापन तक दोनों सदनों में समवेत स्वर में गुंजता रहा। कभी सदन के भीतर तो कभी बाहर नारेबाजी होती रही। वोट चोरी के आरोपों से सरकार इस कदर हलकान हुई कि विपक्ष की सरकारों और नेताओं का सफाया करने के लिए 130वां संविधान संशोधन बिल ले आई। सरकार के इस कदम ने बिहार में जारी वोट अधिकार यात्रा को और अधिक आक्रामक बना दिया है। तेजस्वी यादव ने तो भाजपा के सहयोगी चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार को ही घेरते हुए कहा कि यह बिल नायडू और नीतीश के लिए लाया गया है। वह इसके जरिए उन्हें ब्लैमेल करने का प्रयास कर रही है।
यात्रा में तेजस्वी अपने संबोधन में कहते हैं कि “लोकतंत्र में इससे बड़ी विडंबना क्या होगी कि लोगों से उनके वोट डालने की और सरकार चुनने की आजादी छिनी जा रही है। हम आप सभी को आश्वस्त करते है कि आपकी वोट डालने की लड़ाई शिद्दत के साथ लड़ेंगे।” तेजस्वी यहीं नहीं रूकते। वे नीतीश कुमार को निशाने पर लेते हैं और कहते हैं कि “हमें ऑरिजनल सीएम चाहिए, डुप्लीकेट नहीं।” नीतीश की घोषणाओं पर तंज कसते हुए कहते हैं कि “यह सरकार वही करती है जो मैं कहता हूं। हमें नकलची सरकार और अचेत मुख्यमंत्री नहीं चाहिए। बीस साल से चल रही खटारा सरकार को बदलना है।”
भाकपा माले के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य कहते हैं कि “वोटर अधिकार यात्रा को जनता का व्यापक समर्थन मिल रहा है। इस यात्रा का संदेश है कि एक-एक वोट के अधिकार की रक्षा करनी है और उसका सही इस्तेमाल करना है। बीस बरसों से बोझ बनी सरकार को सत्ता से उखाड़ फेंकना है। इसमें बचाव व बदलाव दोनों का संदेश है।”
दीपंकर कहते हैं कि दो तरह के वोट घोटाले चल रहे हैं। एक तो लाखों लोगों का नाम काट दिया गया है। दूसरा, लाखों लोगों के घर का पता शून्य बता दिया गया है। इन्हें चुनाव आयोग बेघर मतदाता बतला रहा है। वे सवाल उठाते हैं कि फिर इनका वेरीफिकेशन कैसे हुआ? उनसे बातचीत कैसे हुई? यह सबकुछ सवालों के घेरे में है।
‘वोटर अधिकार यात्रा’ के हर पड़ाव पर बड़ी संख्या में ऐसे लोग भी पहुंच रहे हैं, जो जिंदा हैं, लेकिन चुनाव आयोग द्वारा मृत घोषित कर दिए गए हैं। वे अपने गांव-घर में ही रहते हैं, लेकिन विस्थापित बता दिए गए हैं। ऐसे लोगों में कुछ को राहुल अपने पास बुला कर मीडिया के सामने खड़ा कर दे रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद मतदाता सूची से बाहर किये गये 65 लाख लोगों की विस्तृत सूची सामने आते ही ‘मरे’ हुए लोग अपना-अपना वोटर कार्ड लेकर सामने आने लगे हैं। इसकी वजह से चुनाव आयोग की साख मिट्टी में मिलती जा रही है।
बहरहाल, विपक्ष की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बिहार यात्रा शासक दल की बेचैनी का साफ संकेत दे रही है। याद करें कि गत 17 अगस्त को वोटर अधिकार यात्रा शुरू होने के साथ प्रधानमंत्री दिल्ली में द्वारका एक्सप्रेस वे पर रोड शो के लिए निकल गए थे। मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार की प्रेस कांफ्रेंस शुरू हो गई थी। प्रधानमंत्री के गया और मोकामा दौरे का ऐलान हो गया था। गया जिसे अब गयाजी के नाम से जाना जा रहा है, वहां प्रधानमंत्री के कार्यक्रम पर लालू यादव का तंज सुर्खियों में है कि “मोदी जी नीतीश की पार्टी का पिंडदान करने आ रहे हैं।”
(संपादन : राजन/नवल/अनिल)
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