एक बार माननीय रामस्वरूप वर्मा जी (22 अगस्त, 1923 – 19 अगस्त, 1998) के साथ श्री उमाशंकर कटियार, श्री रामचंद्र कटियार और मैं एक कार्यक्रम में अरौल गए थे। कार्यक्रम समाप्त होने के बाद हमलोगों को कन्नौज स्टेशन से ट्रेन पकड़नी थी। उस समय माननीय रामस्वरूप वर्मा विधायक थे। कन्नौज स्टेशन पर जब रेलवे टिकट की बात हुई तो वर्मा जी ने दो कूपन फाड़ कर दिए। उस समय रेल यात्रा के लिए विधायकों को रेलवे कूपन दिए जाते थे, जिससे वे व उनके एक सहायक यात्रा कर सकें।
मैंने वर्मा जी से कहा कि दो कूपन फाड़ कर और दे दीजिए। लेकिन उन्होंने मना कर दिया और कहा कि दो टिकट खरीद लीजिए। मैं कूपन का दुरुपयोग नहीं कर सकता। ऐसे थे महामना राम स्वरूप वर्मा, जिनकी ईमानदारी पर कोई उंगली नहीं उठा सकता था।
एक और प्रसंग याद आ रहा है। बात उन दिनों की है जब मैं उत्तर प्रदेश शोषित समाज दल का कोषाध्यक्ष था तथा महामना रामस्वरूप वर्मा शोषित समाज दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे। वे लखनऊ में रहते थे और मैं कानपुर में। वे अक्सर टेलीफोन किया करते थे। जब तक मैं उन्हें हैलो कहता उसके पहले वे सिंह साहब नमस्कार के द्वारा अभिवादन करते थे। एक बार मैंने उनसे कहा कि मैं प्रदेश समिति का कोषाध्यक्ष हूं और आप पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। आप हमसे उम्र में बड़े हैं तथा पद में भी बड़े हैं, इसलिए पहले मुझे अभिवादन करना चाहिए। लेकिन आप अभिवादन करने का मौका नहीं देते।
तब उन्होंने हंसते हुए कहा कि मैं तुम्हारी आवाज पहचानता हूं, इसलिए तुरंत अभिवादन कर देता हूं। अभिवादन करने के लिए पद, उम्र, धन की जरूरत नहीं होती है। जब भी कोई मिले और जान-पहचान हो तो तुरंत अभिवादन करना चाहिए। उस समय यह नहीं सोचना चाहिए कि यह व्यक्ति हम से उम्र में छोटा है तथा पद में भी छोटा है। इसलिए अगर आप पहले अभिवादन करते हैं तो दिमाग में कभी भी हीन भावना नहीं आएगी। अक्सर लोग सोचते हैं कि मैं उम्र में बड़ा हूं, पद में बड़ा हूं, इसलिए सामने वाला पहले अभिवादन करे। यह सोच गलत है। इसलिए अभिवादन के लिए कुछ सोचना नहीं चाहिए। इस सीख से मुझे अभिवादन के लिए कभी सोचना नहीं पड़ा। जो व्यक्ति सामने दिखाई पड़ा, उसे मैंने तुरंत अभिवादन किया। इसके फलस्वरूप मेरे दिमाग से हीन भावना निकल गई।

महामना रामस्वरूप वर्मा का व्यक्तित्व बहुत अनूठा था। एक बार की बात है कि सन् 1980 में उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव होने थे। राजपुर (कानपुर देहात) से वर्मा जी का पर्चा दाखिल होना था। नामांकन के दिन वे लखनऊ से सीधे कानपुर कचहरी आए, जहां नामांकन होना था। राजपुर विधानसभा क्षेत्र के लोगों ने वर्मा जी से कहा कि ज़मानत के लिए कुछ रुपए जमा करने होंगे। इस पर वर्मा जी ने कहा कि हमारा चुनाव राजपुर क्षेत्र की जनता लड़ रही है। इसलिए ज़मानत की धनराशि राजपुर की जनता भरे। मेरे पास पैसे नहीं हैं। अगर चुनाव लड़वाना है तो ज़मानत की धनराशि जमा करो, नहीं तो मैं वापस लखनऊ चला जाऊंगा। कार्यकर्ताओं ने तुरंत पैसा जमा किया तथा वर्मा जी का नामांकन कराया।
उसके बाद मेरी अध्यक्षता में पार्टी की एक अर्थ समिति का गठन हुआ। जिसका काम था चुनाव के लिए चंदा एकत्र करना। सब ने मिल-जुलकर चुनाव लड़ा और महामना रामस्वरूप वर्मा की ऐतिहासिक जीत हुई। चुनाव जीतने के बाद वर्मा जी एक दिन कानपुर कचहरी आए। वहां श्री राजेंद्र बहादुर एडवोकेट, श्री मनफूल सिंह एडवोकेट व श्री बच्चन लाल एडवोकेट और मैं था। श्री राजेंद्र बहादुर के चैंबर में कुछ विचार-विमर्श हुआ। तभी वर्मा जी ने बीस हजार रुपए का एक चेक निकाला, जो माननीय श्री अजीत सिंह द्वारा भेजा गया था। उस समय मुख्यमंत्री की कुर्सी के दावेदार श्री अजीत सिंह व श्री मुलायम सिंह यादव थे। हम लोगों के विचार-विमर्श के बाद यह तय होना था कि यह पैसा जो श्री अजीत सिंह जी ने भेजा है, उसे लिया जाए या लौटा दिया जाए।
हमलोगों में से कुछ की राय थी कि आया हुआ पैसा ले लिया जाए। अंत में हमलोगों ने वर्मा जी से कहा कि आपकी क्या राय है। कुछ सोच-विचार कर उन्होंने कहा कि ये पैसा हम लौटा देंगे। उन्होंने श्री अजीत सिंह को एक पत्र लिखा कि मेरा चुनाव मेरे क्षेत्र की जनता लड़ती है। अब चुनाव खत्म हो चुका है। मेरे आय-व्यय का ब्योरा प्रस्तुत किया जा चुका है। इसलिए मुझे इस पैसे की आवश्यकता नहीं है। मैं सधन्यवाद आपको वापस कर रहा हूं।
(संपादन : राजन/नवल/अनिल)