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बिहार की अठारहवीं विधानसभा की सामाजिक बुनावट

सभी जातियों में राजपूतों का प्रतिनिधित्व सबसे ज्यादा है। पिछड़े वर्गों में कुशवाहों और उनके बाद यादवों की संख्या सबसे अधिक है। अति पिछड़े वर्गों और अनुसूचित जातियों में क्रमशः धानुक और रविदास जातियों की बहुलता है।

बिहार में हाल में संपन्न विधानसभा चुनाव के नतीजे अप्रत्याशित और अभूतपूर्व रहे हैं। सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को 243 में से 202 सीटों पर जीत हासिल हुई है। चुनाव की घोषणा से पहले इस बात पर खूब चर्चा चली कि कौन-सा दल या गठबंधन किस जाति या जाति-समूह का समर्थन हासिल करने की कोशिश कर रहा है। जब उम्मीदवारों की घोषणा हुई तब भी फोकस उनकी जाति पर बना रहा। अब, जबकि हम जानते हैं कि विजेता कौन है स्वाभाविक है कि ध्यान जल्दी ही गठित होने वाली विधानसभा की सामाजिक बुनावट पर केंद्रित हो गया है।

नीचे हम नई विधानसभा की सामाजिक बुनावट का विश्लेषण धर्म, सामाजिक समूह और जाति के आधार पर कर रहे हैं।

अठाहरवीं विधानसभा में सबसे ज्यादा विधायक (81) पिछड़ी जातियों के होंगे। दूसरे नंबर पर उच्च जातियों के विधायक होंगे, जिनकी संख्या 73 है। उच्च जातियों के सबसे ज्यादा विधायक (42) भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के हैं और ऊंची जातियों के विधायकों में सबसे ज्यादा संख्या राजपूतों की है।

18वीं विधानसभा की सामाजिक बुनावट

जैसा कि चित्र 1 में दिखाया गया है, नई विधानसभा के 243 सदस्यों में से 81 पिछड़ी हिंदू जातियों से और 73 उच्च हिन्दू जातियों से होंगे। ये दोनों विधानसभा में सबसे बड़े सामाजिक समूह होंगे। आबादी में इन समूहों भागीदारी क्रमशः 27 प्रतिशत और 10.6 प्रतिशत है। अति पिछड़े वर्गों (ईबीसी) के 38 विधायक हैं और अनुसूचित जातियों (एससी) और अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के कुल 40 विधायक हैं जो इन समुदायों के लिए आरक्षित सीटों से चुने गए हैं। मुसलमान विधायकों की संख्या 11 हैं, जिनमे से चार पिछड़े वर्गों (सूरजापुरी मुसलमान) से हैं और चार उच्च जातियों (शेख और पठान) से। एक मुसलमान विधायक सूरजापुरी मुसलमान हैं, मगर उनका दावा है कि वे उच्च जाति के सूरजापुरी शेख हैं।

बिहार की 18वीं विधानसभा की सामाजिक बुनावट [उच्च जातियां (यूसी), पिछड़ा वर्ग (बीसी), अति पिछड़ा वर्ग (ईबीसी), अनुसूचित जातियां – जनजातियां (एससी/एसटी)]
विभिन्न सामाजिक समूहों के विधायकों का पार्टी-वार विश्लेषण करने से पता चलता है कि उच्च जातियों के सबसे ज्यादा विधायक भाजपा से हैं। पार्टी के उम्मीदवारों में से आधे उच्च जातियों से थे और यही कारण है कि उसके विजयी उम्मीदवारों में से भी उनकी संख्या ज्यादा (42) है। जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के 18 और एलजेपी के 7 विधायक उच्च जातियों से हैं। महागठबंधन के विधायकों में केवल 3 ऊंची जातियों के हैं और सभी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के टिकट पर चुनाव जीते हैं। कांग्रेस के 19 उम्मीदवार उच्च जातियों से थे मगर उनमें से एक भी जीत नहीं सका। इसी तरह, वाम दलों का भी एक भी उच्च जाति का उम्मीदवार विधानसभा नहीं पहुंचा।

बिहार की 18वीं विधानसभा में सामाजिक समूहों का पार्टी-वार वितरण

पिछड़े वर्गों (बीसी) के विधायकों में से सबसे ज्यादा (35) जदयू से हैं। इसके बाद भाजपा (21), राजद (12), सीपीआई व सीपीआई- एमएल (3) और कांग्रेस (2) आते हैं।

बिहार की राजनीति में ईबीसी एक बहुत महत्वपूर्ण सामाजिक समूह के रूप में उभरा है। नवनिर्वाचित ईबीसी विधायकों में से 17 जदयू से हैं और 14 भाजपा से। महागठबंधन के 5 विधायक ईबीसी हैं, जिनमें से 3 राजद से और एक-एक कांग्रेस और इंडिया इंक्लूसिव पार्टी (आईआईपी) से हैं।

आरक्षित सीटों से निर्वाचित एससी-एसटी विधायकों में से 14 (सभी एससी) जदयू और 12 (11 एससी, 1 एसटी) भाजपा से हैं। लोकतांत्रिक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी-आरवीपी) के पांच एससी विधायक हैं और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (एचएएम) के चार। आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों में महागठबंधन का प्रदर्शन बहुत ख़राब रहा है। राजद के केवल 4 एससी विधायक हैं और कांग्रेस का केवल एक एसटी विधायक है।

मुसलमान विधायकों की पार्टी-वार संख्या दिलचस्प है। एनडीए का केवल एक विधायक मुसलमान है। राजद के तीन विधायक मुसलमान हैं और कांग्रेस के दो। बचे हुए 5 मुसलमान विधायक ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिममीन (एआईएमआईएम) के हैं। एआईएमआईएम के विधायक पिछड़े वर्गों और अति-पिछड़े वर्गों से हैं। मुस्लिम-बहुल इलाकों में एआईएमआईएम के उम्मीदवारों की जीत से यह स्पष्ट है कि कुछ परिस्थितियों में मुसलमान एक विशिष्ट तरीके से वोट डाल सकते हैं। राजद और उसके गठबंधन के साथियों ने इन इलाकों से जीत हासिल करने की जी-तोड़ कोशिश की, मगर नाकामयाब रहे। राजद की इन इलाकों में हार से यह साफ़ है कि कम-से-कम मुस्लिम-बहुल निर्वाचन क्षेत्रों में ‘माय’ (मुसलमान + यादव) फार्मूला काम नहीं आया।

जाति-वार बुनावट

नव-निर्वाचित विधायकों के जाति-वार विश्लेषण से हम नई विधानसभा की सामाजिक बुनावट को बेहतर ढंग से समझ सकते हैं। चित्र 3 बताता है कि ऊंची जातियों के विधायकों में राजपूत (32) सबसे ज्यादा हैं। इसके बाद भूमिहार (27), ब्राह्मण (13) और फिर कायस्थ (2) हैं। राजपूत, बिहार की आबादी का मात्र 3.5 फीसद हैं मगर उन्हें विधानसभा में सभी जातियों में सबसे ज्यादा प्रतिनिधित्व हासिल हुआ है। तीन मुसलमान विधायक शेख और एक पठान है – अर्थात मुस्लिम उच्च जातियों के चार प्रतिनिधि विधानसभा में होंगे। पिछड़े वर्गों में सबसे ज्यादा विधायक (26) कुशवाहा हैं। इनके बाद यादव (25), कुर्मी (14), कलवार (6) और सूरी (4) हैं। राज्य की आबादी में कुशवाहा 4.2 प्रतिशत, यादव 14.3 प्रतिशत और कुर्मी 2.3 प्रतिशत हैं। कलवार और सूरी, बनिया जाति में आते हैं, जिनकी आबादी में हिस्सेदारी 2.3 फीसद है। ईबीसी में सबसे ज्यादा विधायक (9) धानुक हैं। तेली विधायकों की संख्या 6, कानू की 5 और मल्लाह की 3 है। एससी-एसटी में में सर्वाधिक प्रतिनिधित्व रविदास जाति का है। इसके 13 विधायक हैं। पासवान विधायकों की संख्या 10 और मुसहर की 9 है। मुसहर, एससी समुदाय के भी हाशिये पर हैं और वंचितों में वंचित हैं। उनके प्रतिनिधित्व में बढ़ोत्तरी से भविष्य में उनके सामाजिक दर्जे में सुधार आ सकता है।

एसटी के लिए आरक्षित सीटों में से एक-एक कांग्रेस और भाजपा के हिस्से में आई हैं। कांग्रेस के मनोहर प्रसाद एसटी के लिए आरक्षित मनिहारी सीट से चौथी बार विधायक बने हैं। वे 2010 से इस सीट से जीतते आ रहे हैं, मगर कांग्रेस ने कम-से-कम अब तक तो उन्हें अपेक्षित महत्व नहीं ही दिया है। दूसरी एसटी सीट – बांका जिले में कटोरिया – से भाजपा के पूरणलाल टुडू निर्वाचित हुए हैं।

बिहार की 18वीं विधानसभा की जाति-वार बुनावट [1- यूसी, 2- बीसी, 3- ईबीसी, 4- एससी/एसटी)]
विधायकों के जाति-वार विश्लेषण से जाहिर है कि जदयू ने केवल कुछ जातियों को तवज्जो नहीं दी और बीसी और ईबीसी समूहों की विभिन्न जातियों से अपने उम्मीदवार चुने। इसके विपरीत, राजद ने 53 यादव उम्मीदवारों को टिकट दिया। अन्य कारकों के अलावा, सभी जातियों के बीच सामंजस्य बिठाने में विफलता भी राजद की हार का कारण हो सकती है।

(अनुवाद: अमरीश हरदेनिया, संपादन : नवल/अनिल)


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लेखक के बारे में

पंकज कुमार/अरविंद कुमार

पंकज कुमार जामिया मिलिया इस्लामिया, नई दिल्ली के पीएचडी शोधार्थी हैं। अरविंद कुमार यूनिवर्सिटी ऑफ हर्टफोर्डशायर में राजनीति शास्त्र और अंतरराष्ट्रीय संबंध विषय के विजिटिंग लेक्चरर व यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन के इंस्टीट्यूट ऑफ कॉमनवेल्थ स्टडीज के एसोसिएट फेलो हैं।

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