h n

अपने जन्मदिन पर क्या सचमुच लालू ने किया बाबा साहब का अपमान?

संघ और भाजपा जहां मजबूत हैं, वहां उसके नेता बाबा साहब के विचारों और योगदानों को मिटाने में जुटे हैं। लेकिन जहां वे कमजोर हैं, वहां बाबा साहब के पक्ष में घड़ियाली आंसू बहाने लगते हैं ताकि दलितों-पिछड़ों को भ्रमित किया जाये। यही काम वे बिहार में करना चाह रहे हैं। बता रहे हैं हेमंत कुमार

लालू प्रसाद एक बार फिर सुर्खियों में हैं। उनके खिलाफ भाजपा और उसके सहयोगी दल के नेताओं ने मोर्चा खोल दिया है और पटना की सड़कों पर उनके मुर्दाबाद के नारे लगा रहे हैं। लालू प्रसाद के ऊपर आरोप है कि अपने जन्मदिन के मौके पर उन्होंने डॉ. आंबेडकर की तस्वीर को अपने पैर के पास रखकर उनका अपमान किया है। इस कड़ी में नीतीश कुमार की पार्टी जदयू और जीतनराम मांझी का दल ‘हम’ भी भाजपा के सुर में सुर मिला रहे हैं। उनसे माफी की मांग कर रहे हैं। राज्य अनुसूचित जाति आयोग के नए नवेले उपाध्यक्ष और जीतनराम मांझी के दामाद देवेंद्र कुमार ने तो बाजाप्ता लालू प्रसाद के नाम से नोटिस जारी कर दिया है, जिसमें कहा गया है कि आयोग के समक्ष 15 दिनों के भीतर उपस्थित होकर स्पष्टीकरण दें अन्यथा एफआईआर का सामना करने को तैयार रहें।

लेकिन अचरज की बात यह है कि लालू प्रसाद पर बाबा साहब के अपमान का आरोप वे लोग लगा रहे हैं, जिनके बीस साल के राज में डॉ. आंबेडकर के नाम पर सरकार ने एक ईंट तक नहीं जोड़ी। किसी भवन, सभागार, सड़क का नामकरण तो छोड़िए कोई एक योजना भी बाबा साहब के नाम से नहीं चलाई। दूसरी ओर नीतीश कुमार और उनके मंत्री-संतरी पटना हाइकोर्ट के सामने खड़ी बाबा साहब की जिस विशाल प्रतिमा के आगे पिछले बीस सालों से 14 अप्रैल और 6 दिसंबर को सिर झुकाने, श्रद्धांजलि देने पहुंचते रहे हैं, वह प्रतिमा भी लालू प्रसाद की लगवाई हुई है। सवर्ण सामंती ताकतों का गढ़ कहे जाने वाले बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर का नामकरण ‘भीमराव आंबेडकर बिहार विश्वविद्यालय’ करने का साहस दिखाने वाले लालू प्रसाद पर आंबेडकर के अपमान का आरोप लगाया जा रहा है। राजधानी पटना से लेकर जिलों तक में बहुजन नायकों/महापुरुषों की प्रतिमाएं लगवाने वाले लालू प्रसाद पर आंबेडकर के अपमान का आरोप चस्पा करने से पहले लगता है कि भाजपाइयों ने होमवर्क नहीं किया। बिरसा मुंडा, जोतिबा फुले, जगदेव प्रसाद, डॉ. राममनोहर लोहिया, कर्पूरी ठाकुर, रामानंद तिवारी की प्रतिमाएं लालू-राबड़ी राज की निशानियां हैं।

हां! नीतीश कुमार ने अटल पथ और अटल पार्क बनवाया है, जो बहुजन नायकों की श्रेणी में शुमार नहीं किये जाते हैं।

सवाल उठता है कि पारंपरिक मीडिया इस मामले को एकतरफा बिना किसी सवाल जवाब के क्यों छाप और दिखा रहा है? आरोप लगाने वालों से कोई यह नहीं पूछ रहा है कि लालू प्रसाद ने बाबा साहब का अपमान कैसे किया है?

भाजपा द्वारा जारी वीडियो का एक दृश्य, जिसमें एक व्यक्ति डॉ. आंबेडकर का चित्र अपने हाथ में लेकर लालू प्रसाद के पैरों के पास खड़ा है

अपने जन्मदिन के मौके पर 11 जून को लालू 10, सर्कुलर रोड स्थित आवास पर अपने चिर-परिचित अंदाज में सामने की कुर्सी पर पांव पसार कर निर्विकार भाव से बैठे थे। कोई गुलदस्ता लेकर आ रहा था तो कोई माला के साथ पहुंच रहा था। लालू शुभचिंतकों की लाई किसी चीज को हाथ तक नहीं लगा रहे थे। किसी के प्रणाम का ठीक से जवाब नहीं दे रहे थे। लोग पलभर रूककर फोटो खिंचवा कर निकल जा रहे थे। लालू इस भाव में बैठे थे कि लग ही नहीं रहा था कि वहां कुछ चल भी रहा है। बढ़ती उम्र और गंभीर बीमारियों की वजह से वह सुस्त और शांत रहने लगे हैं। लेकिन लालू के इस मनोभाव से कम से कम उनके समर्थकों को तो कोई फर्क पड़ता नहीं दिखता।

लेकिन भाजपा के आइटी सेल ने लालू के जन्मदिन के मौके का एक छोटा वीडियो क्लीपिंग दिखाकर हंगामा शुरू कर दिया। वीडियो में दिख रहा है कि एक शख्स बाबा साहब डॉ. भीमराव आंबेडकर की तस्वीर लेकर पहुंचता है। लालू निर्विकार भाव से बैठे दिख रहे हैं। वह शख्स लालू के साथ अपनी तस्वीर खिंचवाने के लिए बाबा साहब की तस्वीर कुर्सी पर रख लालू के पांव के पास खड़ा हो जाता है। लालू को पता भी नहीं है कि उनका समर्थक किसी की तस्वीर या कुछ और लेकर फोटो खिंचवा रहा है, क्योंकि वह शख्स और बाबा साहब की तस्वीर का मुखड़ा कैमरे के सामने था। इस वीडियो के जरिए यह बताया जा रहा है कि लालू ने डॉ. आंबेडकर का अपमान किया है। उनको माफी मांगनी चाहिए।

अपर कास्ट यानी सवर्ण बिरादरी और सवर्ण वर्चस्वाद की अगुवाई करने वाली भाजपा लालू को राजनीतिक परिदृश्य से हटाने के लिए लंबे समय से लगी हुई है। दूसरे शब्दों में कहें तो जिस दिन लालू ने मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली थी, उसी दिन से उनके खिलाफ षड्यंत्र शुरू हो गया था। भाजपा ने कभी सामने से तो कभी लालू के मित्रों को आगे रखकर उनपर निशाना साधा। चारा घोटाले में लालू को जेल भेजा जाना उनके खिलाफ षड्यंत्र का चरमोत्कर्ष था। तब भाजपा और उसके सहयोगियों ने सोचा था कि लालू का अध्याय समाप्त हो गया। लेकिन लालू तब से लेकर अब तक बिहार की सियासत के निर्विवाद केंद्र बने हुए हैं।

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में भाजपा ने तो लालू-राबड़ी के कथित जंगलराज के नॅरेटिव पर ही अपना प्रचार वीडियो तैयार कराया है। ऐसे में डॉ. आंबेडकर के कथित अपमान का फर्जी नॅरेटिव भी चुनाव को‌ ध्यान में रखकर ही खड़ा किया जा रहा है।

लेकिन लालू प्रसाद बिहार के राजनीतिक इतिहास के उन नेताओं में रहे हैं जिनके ‘खलनायकत्व’ से 1990 के दशक से लेकर अब तक की हिंदी क्षेत्र की मुख्यधारा का इतिहास, साहित्य, मीडिया, अकादमिक जगत और समकाल भरा-पूरा है। भारत के इतिहास में अभी तक शायद ही कोई ऐसा व्यक्तित्व हुआ जिसको ‘खलनायकत्व’ की इतनी तरह की भ्रांतियों से धूल-धूसरित किया गया हो। निर्णायक ढंग से अभी भी उन्हें बदनाम करने का यह अभियान थमा नहीं है।

मजेदार बात यह है जिस वक्त आंबेडकर के अपमान का बहाना बनाकर भाजपा लालू को घेरना चाह रही है। उसी वक्त भाजपा शासित मध्यप्रदेश के ग्वालियर हाई कोर्ट के परिसर में आंबेडकर की प्रतिमा नहीं लगाने दिया जा रहा है। आरएसएस और भाजपा समर्थक वकीलों का समूह इसकी अगुवाई कर रहा है। अब तो इस मामले ने नया राजनीतिक मोड़ ले लिया है, जहां अब यह आंबेडकर बनाम बीएन राव तक पहुंच गया है। ग्वालियर से जुड़े वकीलों ने हाल ही में दिल्ली में हुए एक कार्यक्रम में बीएन राव को संविधान निर्माता बताते हुए पर्चे बांट दिए थे।

दरअसल आरएसएस जिसका राजनीतिक संगठन भाजपा है, उसके ‘हिंदू राष्ट्र’ के खतरनाक एजेंडे के बारे में सबसे पहले भारत रत्न बाबा साहब आंबेडकर ने ही देशवासियों को आगाह किया था। लिहाजा संघ परिवार बाबा साहब को अपना प्रबल शत्रु मानता है। डॉ. आंबेडकर ने कहा था– “अगर हिंदू राष्ट्र सचमुच एक वास्तविकता बन जाता है तो इसमें संदेह नहीं कि यह देश के लिए भयानक विपत्ति होगी, क्योंकि यह स्वाधीनता, समता और बंधुत्व के लिए खतरा है। इस दृष्टि से यह लोकतंत्र से मेल नहीं खाता। हिंदू राज को हर कीमत पर रोका जाना चाहिए। (डॉ. बी.आर. आंबेडकर, डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर: राइटिंग्स एंड स्पीचेज, वॉल्यूम 8, पृष्ठ 358)

लिहाजा संघ और भाजपा जहां मजबूत हैं, वहां उसके नेता बाबा साहब के विचारों और योगदानों को मिटाने में जुटे हैं। लेकिन जहां वे कमजोर हैं, वहां बाबा साहब के पक्ष में घड़ियाली आंसू बहाने लगते हैं ताकि दलितों-पिछड़ों को भ्रमित किया जाये। यही काम वे बिहार में करना चाह रहे हैं।

(संपादन : राजन/नवल/अनिल)


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, संस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in

लेखक के बारे में

हेमंत कुमार

लेखक बिहार के वरिष्ठ पत्रकार हैं

संबंधित आलेख

‘कांवड़ लेने नहीं जाना’ के रचयिता से बातचीत, जिनके खिलाफ दर्ज किया गया है यूपी में मुकदमा
“कुछ निठल्ले सवर्ण शिक्षक हैं स्कूल में। उनका सिर्फ़ एक ही काम रहता है– स्कूल में टाइम पास करना। आप देखिए न कि आज...
एसआईआर के जरिए मताधिकार छीने जाने से सशंकित लोगों की गवाही
रूबी देवी फुलवारी शरीफ़ की हैं। उनके पास कोई दस्तावेज नहीं है। उन्होंने जन-सुनवाई में बताया कि “मेरे पास अपने पूर्वजों से जुड़े कोई...
डीयू : पाठ्यक्रम में सिख इतिहास के नाम पर मुस्लिम विरोधी पूर्वाग्रहों को शामिल करने की साजिश
याद रखा जाना चाहिए कि सिख धर्म और समुदाय ने अपने ऐतिहासिक संघर्षों में जातिवाद के विरुद्ध आवाज़ उठाई है और समानता, बराबरी तथा...
सपा का ‘पीडीए’ बसपा के ‘बहुजन’ का विकल्प नहीं
कांशीराम का जोर संवैधानिक सिद्धांतिकी को धरती पर उतारने पर था। बसपा मूलतः सामाजिक लोकतंत्रवादी रही। दूसरी ओर, यह बहस का विषय है कि...
जेएनयू में आंबेडकरवाद के संस्थापक थे प्रोफेसर नंदू राम
प्रोफेसर नंदू राम के समय में जेएनयू में वामपंथ से इतर कुछ भी सोचना एक प्रकार का पाप समझा जाता था। इसे समाजद्रोह के...