“जनता ने सरकार का विश्वास खो दिया है। इसलिए यह बेहतर होगा कि सरकार जनता को भंग कर दे और अपने लिए नई जनता चुन ले।” – बर्तोल्त ब्रेख्त
पिछली शताब्दी में मशहूर जर्मन नाट्यकर्मी, लेखक और कवि बर्तोल्त ब्रेख्त की एक बहुचर्चित कविता की ये आखिरी पंक्तियां बिहार में वोटर लिस्ट के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआइआर) के नाम पर केंद्रीय चुनाव आयोग के ‘नाटक’ पर सटीक बैठती है। चुनाव आयोग के रवैये से साफ लगता है कि वह मतदाता सूची का ‘शुद्धिकरण’ नहीं, बल्कि भाजपा के लिए वोटरों’ का चुनाव कर रही है।
बिहार में एसआइआर के नाम पर सिर्फ एक महीने में करीब 66 लाख लोगों के नाम वोटर लिस्ट से हटा दिए गए हैं। इस लिस्ट से बाहर किए गए ज़्यादातर लोग वही हैं जो पहले से समाज के हाशिए पर हैं। इनमें अधिकांश दलित, पिछड़े, पसमांदा, महिलाएं, प्रवासी मज़दूर हैं। बड़ी संख्या में वे लोग भी हैं जो ज़िंदा हैं, लेकिन उन्हें मृत घोषित कर दिया गया है। बिहार के 36 लाख मज़दूर, जो बाहर रोज़ी-रोटी कमाने गए थे, उन्हें बाहरी कहकर लिस्ट से बाहर कर दिया गया। 7 लाख लोगों को डुप्लीकेट कहकर हटाया गया, लेकिन सत्ता के खास नेताओं पर ये नियम नहीं लागू हुए। बिहार के उपमुख्यमंत्री विजय सिन्हा का नाम दो विधानसभा क्षेत्रों में बरकरार रहा।
वाल्मीकिनगर में एसआइआर के बावजूद उत्तर प्रदेश के 5 हज़ार लोगों के नाम अब भी मतदाता सूची में है। इससे पूरी प्रक्रिया पर सवाल उठ रहा है।
वहीं जो वैध मतदाता हैं, उनसे दस्तावेज़ मांगे जा रहे हैं। जिनके पास नहीं हैं, वो बाहर कर दिए जाएंगे। अगस्त खत्म होते-होते और कितने लाख लोग मतदाता सूची से बाहर कर दिए जाएंगे, इसका कोई हिसाब नहीं।
भाकपा माले के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा है कि “बिहार विधानसभा चुनाव को आम चुनाव मत समझिए – ये संविधान बचाने की लड़ाई है। जिनके नाम भी वोटर लिस्ट में बच जाएंगे वो वोट देकर इस सरकार को बाहर करे। एक-एक वोट से हम चुनाव चोरों को हराएंगे। 15 अगस्त को आजादी बचाओ, संविधान बचाओ, लोकतंत्र बचाओ मार्च निकाला जाएगा। देश में आज़ादी के बाद संविधान, लोकतंत्र और मताधिकार पर सबसे बड़ा हमला हुआ है। हमें जो संविधान मिला था, उसमें हर नागरिक को बराबरी का दर्जा और वोट देने का अधिकार दिया गया था – चाहे वह अमीर हो या ग़रीब, दलित हो या अल्पसंख्यक, महिला हो या मज़दूर। लेकिन आज उस अधिकार को छीनने की तैयारी हो रही है।”
बताते चलें कि सुप्रीम कोर्ट ने 29 जुलाई को सुनवाई के दौरान कहा था कि वैसे पंद्रह जिंदा लोगों को कोर्ट में सामने लाइए जिनको मरा हुआ बताकर वोटर लिस्ट से बाहर कर दिया गया है। कोर्ट ने कहा था कि उसी वक्त एसआइआर को निरस्त कर दिया जाएगा। लोगों ने तो ऐसे सबूतों की झड़ी लगा दी है। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने तो ‘मरे’ हुए वोटरों के साथ चाय पी।

ये ‘मरे’ हुए वोटर बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के चुनाव क्षेत्र वैशाली जिले के राघोपुर विधानसभा क्षेत्र के हैं। बिहार में एसआइआर पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के दौरान 12 अगस्त को इनमें से दो महिला मतदाता अदालत के समक्ष प्रस्तुत भी हुईं। जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव ने इन ‘मरे हुए वोटरों’ का कोर्ट से साक्षात्कार कराया तो चुनाव आयोग के वकील राकेश द्विवेदी हत्थे से उखड़ गए और कहने लगे कि यह क्या नाटक है। बंद कीजिए यह नाटक! यहां नाटक नहीं चलेगा!
सवाल उठता है कि अगर यह नाटक है तो चुनाव आयोग को बताना चाहिए कि बिहार के उपमुख्यमंत्री विजय सिन्हा पटना के बांकीपुर और लखीसराय विधानसभा क्षेत्र दो अलग-अलग फोटो युक्त मतदाता पहचान पत्र (इपिक) नंबर के साथ वोटर बन कर कौन-सा नाटक खेलने वाले हैं? भाजपा नेता और मुजफ्फरपुर की मेयर निर्मला साहू और उनके दो देवरों के नाम पर दो-दो इपिक कार्ड कैसे बन गए? लोजपा से वैशाली की सांसद वीणा देवी के नाम दो-दो इपिक कार्ड किस आधार पर जारी हुआ है? एक भीखू भाई दलसानिया बिहार भाजपा के प्रदेश संगठन महामंत्री है। बताया जाता है कि ये प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के खास विश्वासपात्र हैं। साल 2024 में दलसानिया गृहमंत्री के लोकसभा क्षेत्र गांधीनगर में पंजीकृत मतदाता थे। अब जब बिहार में विधानसभा चुनाव है तो गुजरात से नाम कटवा कर बिहार के मतदाता बन गए हैं।
दलसानिया बिहार के जिस विधानसभा क्षेत्र के मतदाता बने हैं, उसकी मतदाता सूची में इनका कोई पता और मकान संख्या अंकित नहीं है। यहां तक कि इनका नाम गुजराती भाषा में ही लिखा हुआ है ताकि कोई हिंदीभाषी पढ़ ना सके।
राजद सांसद सुधाकर सिंह 17 ऐसे लोगों को लेकर दिल्ली पहुंच गए हैं, जो ज़िंदा हैं, लेकिन उन्हें मृत घोषित कर दिया गया है। सुधाकर सिंह ने चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि आप ट्रेन उपलब्ध कराइए, हम ऐसे लाखों लोगों को लेकर दिल्ली आएंगे। सांसद सुधाकर सिंह जैसे हजारों लोग हैं जो मतदाता सूची ‘शुद्धीकरण’ के नाम पर बिहार में चुनाव आयोग के ‘नाटक’ की पोल खोलने के लिए सबूतों के साथ खड़े हैं। लेकिन चुनाव आयोग उनकी सुन नहीं रहा है। और फिलहाल सुप्रीम कोर्ट इन सबूतों पर गौर करता हुआ नहीं दिख रहा है।
पटना जिले के फुलवारी शरीफ विधानसभा क्षेत्र के ओल्ड बूथ नंबर 69 और न्यू बूथ नंबर 83 व 84 के 141 वोटरों के नाम विलोपित किए गए हैं। इनमें से 22 वोटर अपना वोटर कार्ड लेकर सामने आए। यानी इन जिंदा वोटरों को चुनाव आयोग ने ‘मरा’ हुआ घोषित कर दिया है। इनमें सभी दलित, पिछड़ी, अतिपिछड़ी जाति से हैं। भोजपुर जिले के आरा विधानसभा क्षेत्र के वोटर मिंटू पासवान भी मरे हुए वोटर करार दिए गए हैं। पासवान भी खुद के जिंदा होने की गवाही देने सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे।
मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण को लेकर जब इतनी विसंगतियां सामने आ रही हैं, तब जो बात सबसे अधिक चौंका रही है, वह यह है कि इस धांधली और फर्जीवाड़ा के खिलाफ उच्चवर्णीय हिंदू समाज में गहरी खामोशी क्यों है?
कहीं इसकी वजह यह तो नहीं है कि चुनाव आयोग के इस तानाशाहीपूर्ण अभियान का सबसे बड़ा शिकार दलित, पिछड़ा, अतिपिछड़ा और पसमांदा समुदाय के वोटर हो रहे हैं।
लेकिन बिहार का विपक्ष चुनाव आयोग के इस ‘वोटर भगाओ अभियान’ के खिलाफ कमर कस चुका है। 17 अगस्त से राहुल गांधी की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ शुरू हो रही है। यह यात्रा 23 जिलों से गुजरेगी जो पचास विधानसभा क्षेत्रों को कवर करेगी। इस यात्रा में इंडिया गठबंधन की सभी पार्टियों के नेता शामिल होंगे। इसका समापन 1 सितंबर को पटना में एक बड़ी रैली के तौर पर होगा। माना जा रहा है कि यह रैली बिहार के चुनाव और देश की सियासत को निर्णायक दिशा देगी।
(संपादन : राजन/नवल/अनिल)