जगदेव प्रसाद (2 फरवरी, 1922 – 5 सितंबर, 1974) पर विशेष
मुसलमानों और जनसंघ (वर्तमान में भाजपा) के बारे में 55 वर्ष पहले जो विचार अमर शहीद जगदेव प्रसाद ने व्यक्त किया था वह आज भी सम-सामयिक है। उनका मानना था कि मुसलमान इस देश में शोषित हैं और संदेह से परे हैं।
वर्तमान में मुसलमानों के प्रति घृणा और नफरत का बीज भाजपा द्वारा बोया जा रहा है, जिससे भारतीय मुसलमान अपने आपको असुरक्षित और असहाय महसूस करने लगे हैं। ऐसी स्थिति में जनवरी, 1970 में शोषित दल के संस्थापक और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री जगदेव प्रसाद का ‘शोषित साप्ताहिक’ में प्रकाशित आलेख जरूर पढ़ना चाहिए।
जगदेव बाबू ने अपने आलेख में लिखा था कि “मुसलमान शोषित हैं, चाहे वे अमीर हों या गरीब। मुसलमान जब शासक थे, तब शोषक थे। मगर आज वे शोषित हैं। मुसलमानों को द्विजों ने अव्वल दर्जे का शहरी नहीं रहने दिया। मुसलमानों की जमीन और दौलत छीनती जा रही है। उनके रोजगार का दायरा सिकुड़ता जा रहा है। इनको पाकिस्तानी करार देना और इनका कत्लेआम करा देना मुल्क में आम बात हो गई है। मुसलमानों के कत्लेआम की साजिश द्विज करते हैं।”
जगदेव प्रसाद ने लिखा कि “धर्म के नाम पर शोषितों को ही मुसलमानों के सामने खड़ा कर देते हैं। जो द्विज (ब्राह्मण) मुसलमानों के खिलाफ दलितों और पिछड़ी जातियों को उभारते हैं, वे ही द्विज राजनीति में मुसलमानों को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल भी कर रहे हैं। आश्चर्य नहीं, जनसंघ ने कुछ गद्दार मुसलमानों को अपने मंच पर खड़ा कर ब्राह्मणी जालफरेब का बायस्कोप दिखलाया है। जालफरेब में, तिकड़मबाजी में, और बायस्कोप दिखाने में भारत की ऊंची जातियों का मुकाबला दुनिया में कोई भी नहीं कर सकता। शोषित दल ने तमाम दलित, आदिवासी, मुसलमान और पिछड़ी जातियों को शोषित माना है और इंकलाबी झंडे के नीचे संगठित करने की कोशिश में लग गया है।”

जगदेव प्रसाद ने कहा था कि “ऐसा एक भी उदाहरण नहीं है जब किसी मुसलमान या ईसाई ने हिंदुस्तान का सौदा विदेशियों के साथ किया हो। इसके विपरीत मुसलमानों की वफादारी के सबूतों से इतिहास के पन्ने भरे पड़े हैं। पाकिस्तान के साथ भारत की लड़ाई में कशमीर मोर्चे पर कर्नल उस्मान और हामिद की बहादुरी और वफादारी को इस मुल्क में कोई गद्दार ही भूल सकता है। क्या यह बात किसी से छिपी है कि चीन-भारत युद्ध में और पाकिस्तान-भारत युद्ध में चीन और पाकिस्तान को जनसंघ के समर्थक द्विजों, सेठों, महासेठों, मुनाफाखोरों और चोरबाजारियों के मालिकों ने सोना-चांदी, गल्ला, पटुआ और अन्य साधन पहुंचाया? भारत और पाकिस्तान की लड़ाई के सिलसिले में दूसरे शब्दों में हिंदू धर्म के कट्टरपन और शैतानी से ऊबकर तथा ईसाई धर्म के भाईचारे, इंसानियत, शराफत और बराबरी के व्यवहार से आकर्षित होकर समाज के लोग ईसाई धर्म को कबूल कर आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं। उनमें ईसाइयों का कसूर क्या है? जनसंघ की खोपड़ी में यह मामूली बात क्यों नहीं आती?”
जगदेव प्रसाद का मानना था कि जनसंघ (आज का भाजपा) द्विजवाद (ब्राह्मणवाद) का पोषक है। जनसंघ की तजवीज में हिंदुस्तान की सबसे बड़ी समस्या या सबसे बड़ी मुसीबत मुसलमान है। इसलिए वह मुसलमानों का भारत से खात्मा चाहता है।
उन्होंने अपने आलेख में दर्जनों ऐतिहासिक प्रमाणों को देकर साबित किया कि मुसलमान इस देश की रक्षा के लिए आगे रहा, जबकि यहां के द्विजों (ब्राह्मण) ने देश के साथ गद्दारी की। उनके उदाहरणों से मुसलमानों और भाजपा के बारे में जगदेव प्रसाद की सोच को समझा जा सकता है। वहीं दूसरी ओर, जगदेव प्रसाद के पुत्र नागमणि, जो पहले भी केंद्र की भाजपा सरकार में राज्य मंत्री रहे और हाल में पुनः भाजपा में शामिल हो गए हैं।
पिता और पुत्र की सोच में कितना अंतर है, इसका सहज अनुमान लगाया जा सकता है।
जगदेव प्रसाद, शोषित दल जो बाद में शोषित समाज दल बना और अर्जक संघ से आजीवन जुड़े रहे और शोषितों/अर्जकों के हित में आंदोलन करते रहे। इसी दौरान उनकी 5 सितंबर, 1974 को कुर्था प्रखंड (बिहार के अरवल जिला) कार्यालय पर सत्याग्रह करते हुए शहीद हो गए।
वे समाजवाद और मानववाद स्थापित करना चाहते थे। वे इज्जत और रोटी की लड़ाई लड़ रहे थे। समाज और देश में सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्र में बराबरी लाना चाहते थे।
अर्जक संघ और शोषित समाज दल प्रत्येक 5 सितंबर को उनकी याद में शहीद दिवस मनाता है। उनके जन्म दिन 2 फरवरी को प्रत्येक वर्ष उनके शहीद स्थल पर मेला लगा कर उनकी क्रांतिकारी विचारों से आगे आने वाली पीढ़ियों को परिचित करा रहा है। यह दल शोषितों की क्रांति को और आगे बढ़ाने के लिए अपने दम पर प्रयासरत है। लेकिन राजनीतिक रोटी सेंकने के लिए आजकल सत्ता और विपक्ष के लोग भी जगदेव प्रसाद का नाम लेने लगे हैं। लेकिन जिन मांगों को लेकर वे शहीद हुए, उन मांगों को अमल में लाने के लिए प्रयास नहीं करते।
जाहिर तौर पर असली और नकली जगदेववादियों का फर्क समझना होगा। दस बनाम नब्बे के उनके दर्शन पर अमल करना होगा।
(संपादन : राजन/नवल/अनिल)