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बिहार : भाजपा की नीतीश सरकार द्वारा ताबड़तोड़ घोषणाओं का निहितार्थ

घोषणाएं नीतीश कुमार के नाम से हो रही हैं। लेकिन वे कहीं सुनाई नहीं दे रहे हैं। वह सिर्फ दिखाई दे रहे हैं। बिहार में एनडीए का मुख्यमंत्री चेहरा कौन होगा, इस सवाल को बड़ी चालाकी से दबाया जा रहा है। दूसरी ओर महागठबंधन में, जहां ‘तेजस्वी तय है’, तथाकथित मेनस्ट्रीम मीडिया वहां मुख्यमंत्री का चेहरा ‘खोजने’ में पूरी ताकत लगा रहा है। पढ़ें, हेमंत कुमार का यह आलेख

वर्ष 2020 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव के पहले जब तेजस्वी यादव ने कहा था कि सरकार बनते ही सबसे पहले दस लाख पक्की नौकरी देंगे तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बुरी तरह चिढ़ गए थे। गोपालगंज की एक चुनावी सभा में तब नीतीश कुमार ने तुनककर कहा था कि “नौकरी दोगे तो पैसा क्या बाप के घर से दोगे!” उस चुनाव में तेजस्वी का गठबंधन बेहद कम अंतर से सरकार बनाने से चूक गया था। लेकिन 2022 में सियासी मजबूरियों के चलते भाजपा से अलग होकर नीतीश कुमार ने जब महागठबंधन संग सरकार का गठन किया तो उन्हें तेजस्वी का वादा पूरा करना पड़ा। बिहार में सरकारी नौकरियों की बहार-सी आ गयी। वह सरकार बहुत दिनों तक नहीं चली। लेकिन एक नारा चल पड़ा– “नौकरी मतलब तेजस्वी यादव”। तभी से नौकरी और रोजगार का सवाल बिहार की सियासत का केंद्रीय सवाल बन गया है।

भाजपा की नीतीश सरकार अब अगले पांच साल में एक करोड़ लोगों को नौकरी और रोजगार देने का वादा कर रही है। साथ में ‘मुफ्त की योजनाओं’ की ताबड़तोड़ घोषणाएं भी कर रही है। ‘रेवड़ी की राजनीति’ से परहेज करने वाले नीतीश कुमार ने कभी दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की सरकार की ‘फ्री बिजली’ देने की घोषणा को बेमतलब का बताया था। अब उन्होंने ही चुनाव नजदीक देख सूबे में 125 यूनिट फ्री बिजली की घोषणा कर दी। उसके बाद से तो सरकार ने लोकलुभावन घोषणाओं की झड़ी लगा दी है।

माना जा रहा है कि जिस तरह से कैश ट्रांसफर की योजनाओं ने कई राज्यों में असर दिखाया है, उसे देखते हुए सरकार दबाव में फैसले ले रही है। तेजस्वी यादव ‘माई-बहिन मान योजना’, ‘दो सौ यूनिट मुफ्त बिजली’ व ‘शत-प्रतिशत डोमिसाइल नीति’ की जोरदार चर्चा कर रहे थे। एक के बाद एक मौजूदा सरकार उनके नक्शेकदम पर चलते हुए घोषणाएं कर रही है।

खैर महागठबंधन भाजपा की नीतीश सरकार को रोजगार, नौकरी समेत कई मोर्चों पर घेर रहा है तो दूसरी ओर सरकार लगातार लोकलुभावन घोषणाएं कर रही है, जिनके केंद्र में खास तौर पर महिलाएं हैं। इस कड़ी में पहले संविदा के आधार पर काम करनेवाली आशा-ममता कार्यकर्ताओं का मानदेय बढ़ाया गया। फिर आंगनबाड़ी सेविकाओं व सहायिकाओं का और फिर सभी महिलाओं को अपनी पसंद के रोजगार के लिए मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत पहले दस हजार और फिर आवश्यकतानुसार दो लाख रुपए तक देने की घोषणा की गई है।

राज्य सरकार की इन घोषणाओं को बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव महागठबंधन की घोषणाओं की नकल करार देते हैं। तेजस्वी कहते हैं, “यह सरकार हमारी घोषणाओं को हड़बड़ी में लागू कर रही है। जनता भी जान चुकी है कि सरकार ठगी कर रही। इसलिए लोग अब कहने लगे हैं कि हमें नकली नहीं, असली सीएम चाहिए।”

दूसरी तरफ राज्य सरकार कह रही कि उन वादों को धरातल पर उतारा जा रहा है जिनकी घोषणा 23 दिसंबर, 2024 से 21 फरवरी, 2025 के बीच मुख्यमंत्री की प्रगति यात्रा के दौरान की गई थी। इसी के तहत नागरिक सुविधाओं, शिक्षा, सड़क-पुल व बुनियादी ढांचों, स्वास्थ्य व चिकित्सा, खेल-पर्यटन तथा हवाई परिवहन और औद्योगिक विकास की पहल की जा रही है।

सरकार की घोषणाओं में किसानों, युवाओं और उद्यमियों को भी तवज्जो दी जा रही है। सड़क संपर्क और यातायात सुविधाओं को बेहतर करने के लिए भी सरकार काफी तेजी दिखा रही है। ताबड़तोड़ लोकार्पण और शिलान्यास भी किए जा रहे हैं।

नीतीश कुमार, मुख्यमंत्री, बिहार

बीते 15 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्णिया एयरपोर्ट का उद्घाटन किया। वहीं भागलपुर जिले के पीरपैंती में थर्मल पावर प्लांट का शिलान्यास किया गया। हालांकि इसके लिए अडानी समूह को जमीन देने पर सवाल उठ रहे हैं। अडानी के पावर प्लांट के लिए एक रुपए के सांकेतिक दर पर 1050 एकड़ कृषि योग्य भूमि और बाग-बगीचा देने के खिलाफ वामदलों का विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया है। कहा जा रहा है कि भूमिहीनों को आवास के लिए चार डिसमिल जमीन तक नहीं देने वाली सरकार कॉरपोरेट के लिए जमीन ‘हड़प’ रही है।

लुभावनी योजनाओं की घोषणाओं के बीच एनडीए में रोज-ब-रोज टकराव की खबरें भी लगातार आ रही हैं। लग रहा है कि सरकार इन घोषणाओं के ‘बूस्टर डोज’ से न सिर्फ नाराज़ वोटरों को साधना चाह रही है, बल्कि विपक्षी इंडिया गठबंधन की धार भी कमजोर करने की कोशिश कर रही है। हालांकि विपक्ष सरकार की घोषणाओं को ‘नोट फॉर वोट’ यानी सरकारी खजाना खोलकर वोट खरीदने की योजना बता रहा है।‌ भाजपा की नीतीश सरकार की त्रासदी यह है कि उसकी इन कोशिशों को उसके सहयोगी दल ही पलीता लगाते दिख रहे हैं।

मसलन, कभी नीतीश की कृपा से मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी उन्हें अपने कार्यकाल को याद दिला रहे हैं । वे कह रहे कि जब वे बिहार के सीएम थे तो भूमि सुधार विभाग को आदेश दिया गया था कि राज्य की 16-17 लाख एकड़ सरकारी जमीन में से करीब 13 लाख एकड़ भूमिहीनों में बांटी जाए। कैंप लगाकर यह काम तेजी से शुरू भी हुआ, लेकिन उनके पद छोड़ने के बाद यह योजना अधूरी रह गई। उन्होंने आरोप लगाया कि नीतीश कुमार ने इस योजना पर काम जरूर शुरू किया, मगर आज तक वह इसे पूरी तरह लागू नहीं कर पाए।

नरेंद्र मोदी की केंद्र सरकार में मंत्री मांझी ने सूबे की सरकार की आवास योजनाओं पर भी सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा है कि इंदिरा आवास और प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत जिस प्रकार का नक्शा तय किया गया है, उसमें एक ही कमरे का प्रावधान है। मांझी ने नाराजगी जताते हुए कहा है कि “क्या गरीब-गुरबे जानवर हैं कि मां-बाप, बेटा-पतोहू, बेटी-दामाद सब एक ही कमरे में रहें? यह व्यवस्था बिल्कुल गलत है।”

मांझी की मांग है कि “कम-से-कम 5 डिसमिल जमीन पर दो कमरों का घर बने, जिसमें शौचालय और बिजली की सुविधा भी हो।”

चुनाव जीतने की आशा में भाजपा-जदयू की नीतीश सरकार ने युवाओं-किसानों तथा समाज के बड़े-बुजुर्गों को लक्षित करते हुए भी लुभावनी घोषणाएं की है। मसलन, सामाजिक सुरक्षा पेंशन और पत्रकारों की सम्मान पेंशन को बढ़ाया गया है। बिहार स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड योजना के तहत उच्च शिक्षा ऋण को ब्याज मुक्त किए जाने की घोषणा की गई। उसके बाद विश्वकर्मा पूजा के मौके पर श्रमिकों को बल देने के उद्देश्य से प्रत्येक निर्माण श्रमिक को पांच हजार रुपए देने की भी घोषणा हुई। राज्य सरकार का दावा है कि सरकारी क्षेत्र में दस लाख नौकरियां दी गई हैं तथा करीब करीब 39 लाख से अधिक को रोजगार उपलब्ध कराए गए हैं। वहीं अगले पांच वर्षो में एक करोड़ नौकरियां व रोजगार देने का लक्ष्य तय किया गया है।

लेकिन तमाम लोकलुभावन घोषणाओं के बीच एक बड़ा सवाल अनुत्तरित है कि क्या नीतीश कुमार बिहार चुनाव का नेतृत्व करने की स्थिति में रह गए हैं? नीतीश की शारीरिक और मानसिक हालत जगजाहिर है। घोषणाएं नीतीश कुमार के नाम से हो रही हैं। लेकिन वे कहीं सुनाई नहीं दे रहे हैं। वह सिर्फ दिखाई दे रहे हैं। बिहार में एनडीए का मुख्यमंत्री चेहरा कौन होगा, इस सवाल को बड़ी चालाकी से दबाया जा रहा है। दूसरी ओर महागठबंधन में, जहां ‘तेजस्वी तय है’, वहां तथाकथित मेनस्ट्रीम मीडिया मुख्यमंत्री का चेहरा ‘खोजने’ में पूरी ताकत लगा रहा है। लेकिन एनडीए में मुख्यमंत्री का चेहरा कौन होगा, यह पूछने से कन्नी काट रहा है। दूसरे शब्दों में कहें तो लगता है कि उसे यह सवाल नहीं पूछने की चेतावनी मिली हुई है। भाजपा के सिरमौर कहे जाने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का चेहरा ही बिहार के चुनाव में एनडीए का अग्रणी चेहरा बना हुआ है। इन दोनों नेताओं की आवाजाही जारी है। गया और पूर्णिया के बाद प्रधानमंत्री के पटना आगमन की खबरें चल रही है। कहा जा रहा है कि 30 सितंबर को प्रधानमंत्री पटना में मेट्रो रेल सेवा का उद्घाटन कर सकते हैं। ऐसे में यह कहा जा रहा है कि घोषणाएं भले ही नीतीश के नाम से हो रही हैं, लेकिन बिहार का चुनाव ‘लीड’ करने की जिम्मेदारी तो प्रधानमंत्री को ही निभानी पड़ेगी। बावजूद इसके पिछले 35 सालों से पिछड़ा नेतृत्व के हाथों में बिहार की सत्ता सवर्णों के हाथ में चली जाए, यह बिहारी वोटरों को मंजूर होता नजर नहीं आता है।

(संपादन : नवल/अनिल)


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लेखक के बारे में

हेमंत कुमार

लेखक बिहार के वरिष्ठ पत्रकार हैं

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