दिल्ली विधानसभा चुनाव नवंबर, 2013 में होंगे। लेकिन चुनावी बिसात बिछनी शुरू हो गई है। बयानबाजी का दौर भी शुरू हो चुका है। दिल्ली विधानसभा में कुल 69 सीटें हैं, जिसमें 57 विधानसभा क्षेत्र सामान्य हैं और 12 अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। पिछले विधानसभा चुनाव 2008 में कांग्रेस को 42, भाजपा को 23 बसपा को 2 एवं अन्य को 2 सीटें मिली थीं।
दिल्ली की राजनीति में विकास के साथ-साथ जाति व समुदाय भी अहम मुद्दे हैं। शीला दीक्षित जमीनी तौर पर काफी मजबूत हैं, इसमें दो राय नहीं। भाजपा के पास उनके मुकाबले कोई चेहरा नहीं है। हिमाचल की जीत से कांग्रेस उत्साहित है तो गुजरात की जीत से भाजपा भी उत्साह से लबरेज है। ऐसे में मायावती की बहुजन समाज पार्टी दिल्ली में अपनी धमक नए अंदाज में करना चाहती हैं। मायावती ने पदोन्नति में आरक्षण के मुददे को उठाकर अनूसूचित जातियों/जनजातियों को स्पष्ट सामाजिक-राजनीतिक संदेश दिया है।
मायावती ने दिल्ली विधानसभा चुनाव 2013 के लिए जमीनी आधार पर जोर-शोर से चुनावी तैयारी करने की घोषणा की है। चुनाव को लेकर बसपा के दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष ब्रह्मसिंह का कहना है कि उनकी पार्टी आनेवाले विधानसभा चुनाव के लिए पूरी तरह तैयार है। बहन मायावतीजी के आदेशानुसार हम चुनाव में सभी सीटों पर दावेदारी पेश करेंगे। सवाल अब यह है कि क्या मायावती की पार्टी कांग्रेस और भाजपा का विकल्प बन सकेगी या दिल्ली के रास्ते मायावती पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर निखारना चाहती हैं। कई ऐसे कारक हैं जो बसपा की दिल्ली विधानसभा में सीटों की वर्तमान संख्या में इजाफा करवा सकते हैं। विधानसभा में अनूसूचित जाति कोटे की कुल 12 सीटें हैं और यह सच्चाई है कि आरक्षण के मुददे पर मायावती ने जो तेवर अख्तियार किए थे, उन्हें पूरे देश की जनता ने देखा था। एक और है पूर्वांचल के लोगों के मत। बहरहाल, आनेवाले विधानसभा चुनाव में बसपा किंगमेकर के रूप में उभरती है या राष्ट्रीय स्तर की छवि वाली पार्टी के रूप में यह विधानसभा चुनाव के परिणाम से ही पता चल पाएगा।
(फारवर्ड प्रेस के मार्च 2013 अंक में प्रकाशित)
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