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नये नियम से आरक्षण विरोधियों में हड़कंप

पहले आरक्षण सिर्फ अंतिम मेरिट लिस्ट बनाने में लागू किया जाता था। प्रारंभिक परीक्षा और मुख्य परीक्षा में आरक्षण लागू नहीं था। यानी, प्रारंभिक परीक्षा और मुख्य परीक्षा में चाहे आप जितने अंक लाएं, अगर आप आरक्षित श्रेणी के हैं तो ‘सामान्य’ श्रेणी में नहीं जा सकते। प्रारंभिक और मुख्य परीक्षा में आरक्षित वर्ग के अभ्यार्थियों को उनके लिए निर्धारित कोटे में ही बांध दिया जाता था और इस प्रकार, 50 फीसदी सीटें सवर्ण तबकों से आए अभ्यार्थियों के लिए आरक्षित हो जाती थीं।

उत्तरप्रदेश लोक सेवा आयोग में आरक्षण के नए नियम के तहत साक्षात्कार पर इलाहाबाद हाइकोर्ट ने गत 15 जुलाई को तब तक के लिए रोक लगा दी है, जब तक वह इसको लेकर दाखिल जनहित याचिका पर अपना फैसला नहीं सुना देता। इन नये आरक्षण नियमों के आलोक में, यूपी लोक सेवा आयोग ने गत 4 जुलाई को राज्य प्रवर सम्मिलित परीक्षा-2011 के मुख्य परीक्षा परिणाम घोषित किये,  जिनसे आरक्षण विरोधियों की रातों की नींद उड़ गई। सामान्य सीटों में भारी संख्या में आरक्षित वर्ग के अभ्यार्थी उत्तीर्ण हुए थे, जो पुराने नियमों के कारण अनुत्तीर्ण करार दे दिए जाते थे। गत जुलाई को समाचार-पत्रों ने इलाहाबाद में आरक्षण के नये नियम के विरोध में आंदोलन कर रहे छात्रों के नेता सुरेश पाण्डेय के हवाले से खबर छापी है कि उन्हें मुलायम सिंह ने आश्वास्त किया है कि सरकार लोक सेवा आयोग को आरक्षण के नये नियम वापस लेने के लिए कहेगी। यह अंक प्रेस में जाने तक इसके विरोध में आरक्षण समर्थकों का जोरदार प्रदर्शन भी शुरू हो चुका है।

दरअसल, अखिलेश सरकार द्वारा प्रस्तावित नई आरक्षण नीति के तहत, यूपी पीसीएस की परीक्षा में तीनों स्तर पर (प्रारंभिक परीक्षा, मुख्य परीक्षा और साक्षात्कार) आरक्षण दिए जाने का प्रस्ताव है। इसकी बारीकियों को समझने की जरूरत है। पहले आरक्षण सिर्फ अंतिम मेरिट लिस्ट बनाने में लागू किया जाता था। प्रारंभिक परीक्षा और मुख्य परीक्षा में आरक्षण लागू नहीं था। यानी, प्रारंभिक परीक्षा और मुख्य परीक्षा में चाहे आप जितने अंक लाएं, अगर आप आरक्षित श्रेणी के हैं तो ‘सामान्य’ श्रेणी में नहीं जा सकते। प्रारंभिक और मुख्य परीक्षा में आरक्षित वर्ग के अभ्यार्थियों को उनके लिए निर्धारित कोटे में ही बांध दिया जाता था और इस प्रकार, 50 फीसदी सीटें सवर्ण तबकों से आए अभ्यार्थियों के लिए आरक्षित हो जाती थीं। अंतर्निहित कारणों (कड़ी मेहनत में सक्षम होने आदि) से आरक्षित वर्ग के विद्यार्थी पीसीएस, यूपीएससी आदि परीक्षाओं में प्रारंभिक और ‘मुख्य परीक्षा’ में सवर्ण विद्यार्थियों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन करते हैं।

ज्ञातव्य है कि 27 मई 2013 को, यूपी लोक सेवा आयोग की एक बैठक में आयोग के सदस्य गुरूदर्शन सिंह ने प्रस्ताव रखा कि “प्रारंभिक और मुख्य परीक्षा में भी आरक्षित वर्ग के जिन अभ्यार्थियों के अंक सामान्य वर्ग के अभ्यार्थियों के बराबर हैं या अधिक उनके साथ सामान्य वर्ग की तरह व्यवहार किया जाय।” आयोग के अध्यक्ष आलोक यादव ने सदस्य गुरूदर्शन सिंह के प्रस्ताव पर सहमति जतााई और माना कि आयोग के आरक्षण नियम में भारी खामी है। आयोग ने इसे दुरूस्त करते हुए आरक्षित वर्ग के अभ्यार्थियों को श्रेठता सूची में सामान्य अभ्यार्थियों के समकक्ष या उनसे उपर होने पर उन्हें उक्त श्रेणी के बतौर साक्षात्कार में बुलाने को फैसला लिया, जिसका नतीजा यह हुआ कि बड़ी संख्या में आरक्षित तबके के विद्यार्थी सामान्य कोटे के तहत साक्षात्कार के लिए चुने गये।

आरक्षण के इस प्रावधान का विरोध कर रहे सवर्ण अभ्यार्थियों के अनुसार उन्हें 30 प्रतिशत सीटों का नुकसान हो सकता है। उन्हें डर है कि 50 प्रतिशत सामान्य की सीटों में भी आरक्षित वर्ग के 30 फीसदी उम्मीदवार आ जायेंगे। सवर्ण अभ्यार्थियों ने उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग और अखिलेश यादव सरकार पर जातिवादी होने का आरोप लगाते हुए कहा है कि वे इस फैसले को किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं करेंगे।

इधर यूपी पीसीएस परीक्षाओं की तैयारी कर रहे दलित और पिछड़े वर्ग के अभ्यार्थियों ने आयोग के इस फैसले का स्वागत किया है। उनका कहना है कि गलत आरक्षण पद्धति से अब तक उनके हितों का हनन होता रहा है। बैकवर्ड छात्र नेता मनोज यादव के अनुसार “उत्तर प्रदेश में बैकवर्ड और दलित प्रतियोगी अभ्यार्थियों की संख्या ज्यादा है, जो सवर्ण अभ्यार्थियों से कहीं ज्यादा अच्छा प्रदर्शन करते हैं, जिस आरक्षित वर्ग के विद्यार्थी के सवर्ण विद्यार्थी के अंक से बेहतर हैं उन्हें किस तर्क से ‘सामान्य’ वर्ग में जाने से रोका जा सकता है? अभी तक जो होता रहा है, वह निहायत ही षड्यंत्रपूर्ण था।”

गौरतलब है कि संघ लोक सेवा आयोग भी अभी तक प्रारंभिक और मुख्य परीक्षा में कोटे के अंदर ही आरक्षित वर्ग के अभ्यार्थियों को समेटता रहा है। केवल अंतिम परिणाम में कुछ अभ्यार्थी सामान्य श्रेणी की सीटों पर उत्तीर्ण होते हैं। आरक्षित वर्ग के वे अभ्यार्थी, जो उम्र या एटेम्ट की की छूट के साथ परीक्षा में शामिल होते हैं, उन्हे हर हाल में आरक्षित कोटे में ही रखे जाने की परंपरा है। यूपी लोक सेवा आयोग द्वारा उठाए इस कदम का प्रभाव संघ लोक सेवा आयोग पर भी पड़ सकता है। अगर ऐसा होता है तो भारतीय प्रशासन में बहुजनों की भागीदारी की दिशा में यह एक ऐतिहासिक जीत होगी।

(फारवर्ड प्रेस के अगस्त 2013 अंक में प्रकाशित)

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जितेंद्र कुमार यादव

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