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उद्यमिता : अपने व्यवसाय को जानें

व्यवसाय करने के लिए आशावादी होना आवश्यक है क्योंकि व्यवसाय में व्यक्ति को जोखिम उठाने होते हैं और निराशावादी व्यक्ति के लिए जोखिम उठाना बहुत मुश्किल होता है। परन्तु इसका अर्थ यह भी नहीं है कि हम बिना कुछ जाने-समझे, उतावलेपन में कोई भी जोखिम उठा लें। असल में, कोई भी अच्छा व्यवसायी, नया व्यवसाय शुरू करने से पहले, उसके जोखिमों का विस्तृत अध्ययन करता है और उन जोखिमों को कम करने के उपायों पर भी विचार करता है। इसके बाद ही वह जोखिम उठाता है

प्रिय दादू,

किसी वस्तु या सेवा के लिए बाजार है या नहीं, बाजार का आकार क्या है व व्यवसायिक प्रतियोगिता के बारे में आपके पत्र के लिए बहुत बहुत शुक्रिया। उससे हमें बहुत मदद मिली। मैंने एक व्यवसाय चुन लिया है, जिसकी बाजार में मांग है और जिसके बाजार का आकार बढ़ रहा है। नि:संदेह, प्रतियोगिता भी बढ़ रही है परन्तु मेरा मानना है कि मैं अनेक, बल्कि अधिकांश, प्रतियोगियों से बेहतर काम कर लूंगीं, कम से कम शहर के उस हिस्से में, जिससे मैं परिचित हूँ। परन्तु मुझे इस व्यवसाय के बारे में विस्तृत जानकारी नहीं है। इसलिए मैं बहुत आश्वस्त महसूस नहीं कर रही हूँ! मैं क्या करूँ?

सप्रेम
विनोदिनी

प्रिय विनोदिनी,

अगर आप कोई व्यवसाय शुरू करने जा रही हैं तो यह आवश्यक है कि आप अपनी क्षमताओं व कमजोरियों का आंकलन पूरी ईमानदारी से करें।

अपने पत्र में तुमने लिखा है कि तुम्हें यह आशा है कि तुम बाजार की आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम होगी। परन्तु साथ ही, तुम एक ऐसा व्यवसाय-जिसके बारे में तुम बहुत नहीं जानतीं-शुरू करने में घबरा भी रही हो।

व्यवसाय करने के लिए आशावादी होना आवश्यक है क्योंकि व्यवसाय में व्यक्ति को जोखिम उठाने होते हैं और निराशावादी व्यक्ति के लिए जोखिम उठाना बहुत मुश्किल होता है। परन्तु इसका अर्थ यह भी नहीं है कि हम बिना कुछ जाने-समझे, उतावलेपन में कोई भी जोखिम उठा लें। असल में, कोई भी अच्छा व्यवसायी, नया व्यवसाय शुरू करने से पहले, उसके जोखिमों का विस्तृत अध्ययन करता है और उन जोखिमों को कम करने के उपायों पर भी विचार करता है। इसके बाद ही वह जोखिम उठाता है।

तुम्हारे मामले में तो तुम एक बहुत बड़ा जोखिम ले रही हो क्योंकि तुम एक ऐसा व्यवसाय शुरू करने का सोच रही हो जिसके बारे में तुम्हें विस्तृत जानकारी ही नहीं है। इस स्थिति में तुम्हारे सामने जोखिम कम करने के दो रास्ते हैं।

पहला तो यह कि तुम इस व्यवसाय का स्वयं अध्ययन करो। संबंधित क्षेत्र का कोई कोर्स करो और व्यवहारिक अनुभव भी प्राप्त करो। तुम्हारी कोशिश यह होनी चाहिए कि व्यवहारिक अनुभव प्राप्त करने के लिए तुम ऐसे संस्थान में जाओ जो उस व्यवसाय को अत्यंत सफलतापूर्वक संचालित कर रहा हो।

दूसरा रास्ता है ऐसे लोगों को नौकरी पर रखना, जिन्हें अपेक्षित ज्ञान और विशेषज्ञता हासिल हो। परन्तु इस रास्ते को अपनाने में दो समस्याएं हैं :

  1. तुम्हें यह कैसे पता चलेगा कि कोई उम्मीदवार सचमुच ज्ञानी व अनुभवी है या नहीं। हमारे देश में ऐेसे बहुत से लोग हैं, जो पहली नजर में बहुत जानकार प्रतीत होते हैं परन्तु असल में होते नहीं हैं।
  2. तुम विश्वसनीय लोग कैसे तलाशोगी? जिन लोगों को तुम काम पर रखोगी, वे विश्वसनीय हो भी सकते हैं और नहीं भी। परन्तु तुम्हें इसका पता कैसे चलेगा? विभिन्न क्षेत्रों में विश्वसनीयता के अलग-अलग लक्षण और मानक होते हैं।

मुख्यत:, ऊपर दिए गए दोनों कारणों से मैं तो यही कहूंगा कि तुम्हें पहला रास्ता (संबंधित क्षेत्र के बारे में स्वयं ज्ञान और अनुभव अर्जित करना) चुनना चाहिए। इससे यह होगा कि तुम अगर व्यवसाय के रोजमर्रा के कामों में हिस्सेदारी नहीं भी करोगी, तब भी तुम कम से कम बेहतर निर्णय तो ले सकोगी क्योंकि तुम्हें व्यवसाय के सभी पक्षों के बारे में थोड़ा-बहुत तो पता होगा ही।

स्पष्टत:, बेहतर तो यही होगा कि तुम्हें व्यवसाय के बारे में गहरी जानकारी हो। और यही कारण है कि हमारी परंपरा में हम किसी व्यापार या व्यवसाय के बारे में बचपन से ही ज्ञान अर्जित करते हैं और हमें सिखाने वाले होते हैं हमारे माता-पिता।

बच्चे सबसे नीचे की सीढ़ी से-जो झाड़ू लगाना भी हो सकता है-शुरूआत कर, व्यवसाय के विभिन्न पक्षों के बारे में ज्ञान अर्जित करते हैं।

तुम्हारे मामले में तुम्हें दो अतिरिक्त पहलुओं पर विचार करना होगा। पहली बात तो यह कि तुम महिला हो और तुम्हें बिना किसी लागलपेट के इस मुद्दे पर विचार करना होगा कि महिला होने से तुम्हें तुम्हारे व्यवसाय में लाभ होगा या हानि।

इस मामले में तुम्हें हर पहलू पर विचार करना होगा, जिसमें यह शामिल है कि तुम दिन या रात के किस वक्त काम पर जाओगी और कब घर वापस आओगी। साथ ही, तुम्हें ग्राहकों, सप्लायरों और काम करने वालों के नजरिये पर भी विचार करना होगा। आजकल कई व्यवसायों (विशेषकर बड़े शहरों में सेवा क्षेत्र में) किसी के महिला होने से कोई विशेष फर्क नहीं पड़ता-सिवाए इसके कि महिलाओं में एक सहज आकर्षण होता है। परन्तु साथ ही उन्हें कई ऐसे डर भी होते हैं, जिनसे पुरूष मुक्त रहते हैं।

दूसरे, तुम्हें यह भी पता लगाना होगा कि तुम जिस भौगोलिक क्षेत्र में रहती हो और जो व्यवसाय तुमने चुना है, उसमें तुम्हारी जातिगत पृष्ठभूमि, तुम्हारे लिए समस्या तो नहीं बन जाएगी? औद्योगिकरण और शहरीकरण के चलते, व्यवसायों में-चाहे वे विनिर्माण के क्षेत्र में हों या सेवा क्षेत्र में-जाति की भूमिका कम, और कम होती जा रही है। परन्तु दुर्भाग्यवश, हमारे बड़े शहरो में भी कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां आज भी जातिगत भेदभाव का बोलबाला है। जातिगत भेदभाव का आंकलन करने का तरीका यही है कि तुम अपने संभावित निवेशकों, कर्मचारियों, सप्लायरों व ग्राहकों के जातिगत दृष्टिकोण का अध्ययन करो।

तुम्हें यह समझना चाहिए कि जातिगत भावनाएँ बहुत जल्द नकारात्मक स्वरूप ले सकती हैं, विशेषकर आर्थिक, राजनैतिक या समाजिक तनाव के दौर में। इसलिए तुम्हें यह सुनिश्चित करना होगा कि तुम्हारे कर्मचारी केवल तुम्हारी जाति या उससे ‘नीची’ जातियों के न हों। तुम्हें ‘ऊँची’ जातियों के कुछ कर्मचारियों की नियुक्ति भी करनी होगी, विशेषकर ऐसे कामों के लिए जिनमें बाहरी व्यक्तियों से संपर्क करना होता है। हां, अगर तुम्हारा व्यवसाय फारवर्ड प्रेस-जो केवल दलित-बहुजनों के लिए है-जैसा हो तो विभिन्न स्तरों पर केवल दलित-बहुजनों को नियुक्त करने से भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा (ऐसी स्थिति में भी ‘उच्च’ जातियों के निवेशकों से सम्पर्क स्थापित करने के लिए ‘उच्च’ जातियों के कर्मचारी उपयोगी साबित होंगे)।

यह भी संभव है कि तुम संबंधित व्यवसाय में जातिगत या लैंगिक भेदभाव के चक्रव्यूह को तोडऩा चाहो। ऐसी स्थिति में तुम्हें इस बात के लिए तैयार रहना चाहिए कि तुम्हारे साथ भेदभाव हो सकता है, तुम्हें हाशिए पर पटका जा सकता है, तुम्हारा मजाक बनाया जा सकता है, तुम पर ताने कसे जा सकते हैं और यहां तक कि तुम्हारा सीधे-सीधे उत्पीडऩ किया जा सकता है। इससे तुम्हारी व्यवसायिक प्रगति की गति बहुत मंद पड़ जायेगी, जब तक कि तुम्हें इस स्थिति से लाभ उठाना न आता हो। यदि तुम्हारा विरोध होगा तो इससे तुम्हारी प्रसिद्धी भी बढ़ेगी और देर सवेर तुम्हें तुम्हारे व्यवसाय में लाभ होगा, बशर्ते तुम उचित कीमत पर गुणवत्तापूर्ण उत्पाद व सेवाएं प्रदान करती रहो।

अगर तुम्हारे रास्ते में ये सब बाधाएं न हों, तब भी व्यवसाय करने का अर्थ होता है कड़ी मेहनत। तुम चाहे जो व्यवसाय चुनो, तुम्हें मेरा सहयोग और समर्थन हमेशा हासिल रहेगा। परन्तु मुझे ऐसा लगता है कि कोई व्यवसाय शुरू करने के पहले, तुम मुझसे कुछ और मुद्दों पर चर्चा करना चाहोगी।

सप्रेम
दादू

(फारवर्ड प्रेस के सितंबर 2013 अंक में प्रकाशित)


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, सस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in

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लेखक के बारे में

दादू

''दादू'' एक भारतीय चाचा हैं, जिन्‍होंने भारत और विदेश में शैक्षणिक, व्‍यावसायिक और सांस्‍कृतिक क्षेत्रों में निवास और कार्य किया है। वे विस्‍तृत सामाजिक, आर्थिक और सांस्‍कृतिक मुद्दों पर आपके प्रश्‍नों का स्‍वागत करते हैं

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