समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव आजकल अतीत में की गई अपनी गल्तियों पर कुछ ज्यादा ही शर्मिन्दा होते हुए माफीनामे जारी कर रहे हैं। इसी क्रम में उन्होंने पिछले दिनों एक बयान में 30 अक्टूबर, 1990 के अयोध्या में बाबरी मस्जिद पर कथित कारसेवकों पर गोली चलवाने के लिए क्षमा याचना की थी। गोली चलवाने का फैसला बहुत ही नाजुक समय में लिया गया होगा लेकिन कभी खुद को मुल्ला मुलायम सिंह कहलवाने में सुखानुभूति करने वाले मुलायम तो सच्चे कारसेवक निकले।
दरअसल, सरकार से जो सूचनाएं प्राप्त हुई हैं, वे काफी चौंकाने वाली हैं। मामला यह है कि सरकारी दस्तावेजों के अनुसार, अयोध्या में टेढ़ीबाजार पुलिस चौकी हुआ करती थी लेकिन शासन के आदेशानुसार इस पुलिस चौकी को थाने में परिवर्तित कर दिया गया और इसका नाम ‘थाना श्रीरामजन्मभूमि’ कर दिया गया। दस्तावेज बताते हैं कि शासन के आदेशानुसार यह कार्रवाई दिनांक 3 अक्टूबर, 1990 को की गई। गौर करने वाली बात यह है कि 3 अक्टूबर, 1990 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव थे और बाबरी मस्जिद के गुम्बद पर चढ़े तथाकथित कारसेवकों पर 30 अक्टूबर, 1990 को गोली चलवाई गई थी।
मामला ऐसे खुला कि जब थाना श्रीरामजन्मभूमि बनाया गया तो कुछ स्थानीय नागरिकों ने इसके नाम पर आपत्ति की थी। आपत्ति के मद्देनजर, थाने के बोर्ड पर ‘श्री’ मिटाकर ‘थाना रामजन्मभूमि’ कर दिया गया। लेकिन आज भी सरकारी दस्तावेजों में थाना श्रीरामजन्मभूमि ही है और यह 3-10-1990 को शासन के आदेशानुसार किया गया है। अब सवाल यह है कि जब शासकीय दस्तावेजों में यह थाना श्रीरामजन्मभूमि ही है तब सार्वजनिक रूप से इसका ‘श्री’ किसने हटा दिया और जनता के सामने यह ‘थाना रामजन्मभूमि’ क्यों है ?
मामला इसलिए गंभीर है कि क्या यादव पहले ही तय कर चुके थे कि अयोध्या में रामजन्मभूमि है और वह भी बाबरी मस्जिद के स्थान पर ही? अन्यथा एक विवादित नाम पर थाने का नामकरण क्यों किया गया? क्या इसका नामकरण थाना बाबरी मस्जिद नहीं किया जा सकता था? यदि नहीं तो थाना श्रीरामजन्मभूमि किस आधार पर कर दिया गया ?
कम से कम इतनी अपेक्षा तो की जा सकती है कि उत्तर प्रदेश सरकार एवं समाजवादी पार्टी इस पर अपना स्पष्टीकरण देगी कि क्या थाना श्रीरामजन्मभूमि के निर्माण संबंधी शासन के आदेश की जानकारी तत्कालीन मुख्यमंत्री को थी या नहीं। अक्टूबर 1990 में यूपी सरकार के गृह विभाग की एक चिट्ठी में वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों और फैजाबाद के डीएम को बैठक के लिए बुलाया गया था। इस चिट्ठी में लिखा था कि 14 अक्टूबर को अयोध्या में राम मंदिर के पुनर्निर्माण के लिए चर्चा में शामिल हों। भाजपा और कांग्रेस के विरोध करने के बाद समाजवादी पार्टी ने इस मामले पर सफाई दी थी। पार्टी के मुताबिक चिट्ठी में भाषाई गलती थी और ये बैठक दशहरा को लेकर बुलाई गई थी।
उप्र सरकार के गृह विभाग ने विश्व हिन्दू परिषद् के संकल्प दिवस के मद्देनजर 14 अक्टूबर को बुलाई गई बैठक के लिए अधिकारियों को जारी चिट्ठी में ‘सोमनाथ मंदिर की तर्ज पर संसदीय कानून बनाकर अयोध्या में भव्य मंदिर निर्माण कराने’ का जिक्र किया था। हालांकि सरकार ने फौरन सफाई पेश कर इसे भूलवश हुई गलती करार देकर मामला संभालने की कोशिश की थी। गृह विभाग के सचिव सर्वेश चंद्र मिश्र को निलंबित करते हुए सारा दोष मिश्र के ऊपर मढ़ दिया था। लेकिन अब लगता है कि दाल में कुछ काला जरूर था।
अभी बाबरी मस्जिद/श्रीराम जन्मभूमि का विवाद सुलझा ही नहीं था कि सूबे के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने तीन अक्टूबर, 1990 को कोतवाली अयोध्या अंतर्गत टेढ़ीबाज़ार पुलिस चौकी का नाम बदलकर थाना श्रीरामजन्मभूमि कर दिया। 30 अक्टूबर, 1990 को कारसेवकों पर गोली चलवाने के हीरो बने मुलायम हाल में ही इस घटना पर अफसोस जता चुके हैं। इससे पहले वोटों की छीनाझपटी में बहुत सारे खेल खेले जा चुके हैं। सन् 1986 में कांग्रेस ने ताले खुलवाये और 1989 में राजीव गांधी ने फिर वही गलती दोहराते हुए मस्जिद की जमीन पर मन्दिर निर्माण के लिए शिलान्यास करा दिया। इसका अंजाम यह हुआ कि लोकसभा चुनाव में राजीव गांधी का अयोध्या आकर प्रचार करने व रामराज्य लाने का वादा भी कोई काम नहीं आया। कांग्रेस यह सीट भी हार गई। क्या उत्तरप्रदेश की वर्तमान सरकार अब भी इस मामले मे अपनी गलती को सुधारेगी, यह एक अहम् सवाल है।
(फारवर्ड प्रेस के फरवरी, 2014 अंक में प्रकाशित )
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