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भारतीय इतिहास के जला दिए गए पृष्ठ

स्वप्न कुमार विश्वास ने विभिन्न दस्तावेजों, शिलालेखों, पुरातात्विक साक्ष्यों, धार्मिक, पारंपरिक एवं सांस्कृतिक प्रमाणों के आधार पर यह साबित किया है कि पूर्व वैदिक काल में भारत में बौद्ध धर्म ही था। प्रथम अध्याय 'भारत की खोज' में विश्वास पाते हैं कि मोहनजोदड़ो और हड़प्पा नगरों का धर्म बौद्ध धर्म था, जिसे आर्यों ने नष्ट कर दिया। लेखक लिखते हैं, उन्होंने एक संस्कृति को नष्ट करने के अपराध के सभी साक्ष्य मिटा दिए थे

अधिकांश इतिहासकारों की मान्यता है कि आर्य विदेशी थे और उन्होंने भारत की पूर्व वैदिक सभ्यता एवं संस्कृति को नष्ट किया था। वैदिक आर्यों ने बौद्ध धर्म के साक्ष्य तक मिटा दिए। तभी तो अलबरूनी ने अपनी पुस्तक ‘इंडोलॉजी’ (1030 ई0) में रोना रोया कि उसे भारत में एक भी बौद्ध ग्रंथ या भिक्षु नहीं मिला। साक्ष्य के अभाव में फ्रन्कोइस बर्नियर ने अपनी पुस्तक ‘मुगल साम्राज्य में यात्राएं 1656-1668’ में बौद्ध धर्म पर मात्र एक वाक्य लिखा तो अबुल फ जल ने ‘अकबरनामा’ में बुद्ध का जिक्र तक नहीं किया। पिछले सौ सालों में डॉ आम्बेडकर सहित कई विद्वानों ने बौद्ध धर्म पर अनेक महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखी हैं।

हाल में स्वपन कुमार विश्वास की मूल अंग्रेजी में लिखित पुस्तक का हिन्दी अनुवाद ‘बौद्ध धर्म : मोहनजोदड़ो हडप्पा नगरों का धर्म’ प्रकाशित हुआ है, जिसका अनुवाद जाने-माने दलित साहित्यकार सत्यप्रकाश ने किया है।

 

स्वप्न कुमार विश्वास ने विभिन्न दस्तावेजों, शिलालेखों, पुरातात्विक साक्ष्यों, धार्मिक, पारंपरिक एवं सांस्कृतिक प्रमाणों के आधार पर यह साबित किया है कि पूर्व वैदिक काल में भारत में बौद्ध धर्म का प्राधान्य था। कुल 12 अध्यायों में विभाजित इस पुस्तक में बौद्ध धर्म के दर्शन, बौद्ध और ब्राहमण धर्म का संघर्ष तथा बौद्ध धर्म के उत्थान-पतन का इतिहास लिखा गया है। प्रथम अध्याय ‘भारत की खोज’ में विश्वास पाते हैं कि मोहनजोदड़ो और हड़प्पा नगरों का धर्म बौद्ध धर्म था, जिसे आर्यों ने नष्ट कर दिया। लेखक लिखते है : ‘उन्होंने एक संस्कृति को नष्ट करने के अपराध के सभी साक्ष्य मिटा दिए।’ (पृष्ठ -5) लेखक ने विस्तारपूर्वक यह समझाया है कि प्रगतिशील बौद्ध धर्म ने इतनी आसानी से ब्राहमण धर्म के आगे घुटने नहीं टेके बल्कि अत्यंत क्रूरतापूर्ण ढ़ंग से ब्राहमण धर्म ने बौद्ध धर्म को खत्म किया। वे लिखते हैं , ‘हिन्दू धर्म के मौलिक सिद्धांत बुनियादी रूप से जनविरोधी, उत्पीडऩकारी और भेदभावमूलक हैैं’ (पृष्ठ-13) जबकि ‘बौद्ध धम्म सार्वभौमिक भ्रातृत्व का बहुत ही उदारचित्त धर्म है’ (पृष्ठ-37)। इसी कारण आर्यों ने अपने फायदे  के लिए मूल निवासियों के बौद्ध धम्म को नष्ट किया और उन पर हिन्दू धर्म को थोपा ताकि शोषण और दमन की ‘स्थायी बंदोबस्ती’ की जा सके।

पुस्तक के प्राक्कथन में 28 बुद्धों और उनके अस्तित्व के प्रमाणों की चर्चा है। सिद्धार्थ गौतम के पहले के 27 अन्य बुद्धों का इतिहास भारत में तो नष्ट कर दिया गया, लेकिन श्रीलंका में सुरक्षित बच गया। बौद्ध भिक्षु डॉ गुणरत्न श्रीलंका से 28 बुद्धों के बारे में जानकारी भारत लाए। विश्वास, ब्राहमणों के ‘समुद्र पार निषेध’ को बौद्ध धर्म क ‘विस्तार के भय’ के रूप में देखते हैं क्योंकि ब्राहमणों को पता था कि बौद्ध धर्म का इतिहास विदेशों में सुरक्षित हैं। इस पुस्तक में आधुनिक युग में बौद्ध धर्म के पुनरूत्थान के विषय में एक पूरा अध्याय है, जिसमें अनागरिक धर्मपाल, डॉ आम्बेडकर, राहुल सांकृत्यायन आदि द्वारा आधुनिक युग में किए गए प्रयासों का वर्णन है।

यह पुस्तक इतिहास में रुचि रखने वालों और बहुजन समाज के कार्यकर्ताओं के लिए काफी उपयोगी साबित होगी।

पुस्तक : बौद्ध धर्म : मोहनजोदड़ो हडप्पा नगरों का धर्म

लेखक : स्वपन कुमार विश्वास

हिंदी अनुवाद : सत्यप्रकाश

प्रकाशक : गौतम बुक सेंटर, नई दिल्ली

फोन: 9810173661

(फारवर्ड प्रेस के अक्टूबर 2014 अंक में प्रकाशित)


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लेखक के बारे में

अरुण कुमार

अरूण कुमार दिल्ली विश्वविद्यालय में प्राध्यापक हैं। उन्होंने जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय से 'हिन्दी उपन्यासों में ग्रामीण यथार्थ' विषय पर पीएचडी की है तथा इंडियन कौंसिल ऑफ़ सोशल साईंस एंड रिसर्च (आईसीएसएसआर), नई दिल्‍ली में सीनियर फेलो रहे हैं। संपर्क (मोबाइल) : +918178055172

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