बचपन में हम सब अपने माता-पिता का परस्पर व्यवहार देखते हैं। हम अन्यों, जिनमें मित्र व रिश्तेदार शामिल हैं, के अपने जीवन साथियों के साथ व्यवहार भी देखते हैं। ये सभी लोग अपने लिए उचित जीवनसाथी का चुनाव काफी सोच-विचार और प्रार्थना के बाद करते हैं। इन अनुभवों से हम सकारात्मक और नकारात्मक, दोनों प्रकार के निष्कर्ष निकालते हैं। जाने-अनजाने इस अनुभव से हमारे दिमाग में अपने लिए आदर्श जीवनसाथी का खाका भी खिंच जाता है-एक ऐसा जीवनसाथी का जो स्वभाव, व्यक्तित्व, पसंद-नपसंद आदि की दृष्टि से हमारे लिए आदर्श हो। जब हमें ऐसा आदर्श जीवनसाथी मिल जाता है तो हम उसके साथ एक नई यात्रा शुरू करने में जबरदस्त रोमांच का अनुभव करते हैं। हमारे दिमाग में होते हैं, फिल्मों के सुखद अंत: जब हाथों में हाथ थामे, प्रसन्ऩ जोड़े डूबते हुए सूरज की तरफ कदम बढ़ाते हैं। हमारे दिमाग में एक ऐसा विवाह होता है, जो धरती पर हमें स्वर्ग का आनंद दे।
परंतु जल्दी ही हर दंपत्ति को अहसास हो जाता है कि कोई जीवनसाथी आदर्श नहीं होता और कोई जीवनयात्रा बिना बाधाओं और बिना आपसी टकराव के पूरी नहीं होती। हमारा विवाह चाहे स्वर्ग में तय हुआ हो पर न जाने हमें ऐसा क्यों लगने लगता है कि हम नरक में रह रहे हैं। सच यह है कि ना तो कोई वैवाहिक संबंध और ना ही कोई दंपत्ति आदर्श होता है। अगर कोई दपंत्ति यह दावा करता है कि उनके बीच कोई समस्याएं नहीं हैं या वे आपस में कभी बहस नहीं करते, तो वे स्वयं को बेवकूफ बना रहे हैं। कई विवाह इसलिए टूट जाते हैं क्योंकि पति-पत्नी की एक-दूसरे से बहुत ज्यादा अपेक्षाएं होती हैं। हम सब की अपने जीवन में बहुत सारी अपेक्षाएं होती हैं परंतु उनमें से बहुत कम पूरी हो पाती हैं या कभी-कभी तो कोई भी अपेक्षा पूरी नहीं होती। यह अपेक्षा करना गलत नहीं है कि हमारा जीवनसाथी अच्छा हो परंतु यह अपेक्षा करना गलत है कि विवाह के बाद सब कुछ, हमेशा एकदम ठीकठाक चलेगा।
अपने जीवनसाथी को बदलने के लिए स्वयं को बदलिये
कई लोग जब विवाह करते हैं तब वे यह सोचते हैं कि भले ही मेरा जीवनसाथी आदर्श न हो परंतु मैं उस पर सकारात्मक प्रभाव डाल सकता हूं। हममें से कई अपने मित्रों, सहकर्मियों और अधीनस्थों पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं। परंतु कई लोग तब बहुत कुंठित हो जाते हैं जब वे यह देखते हैं कि उनके जीवनसाथी में उनकी इच्छानुसार बदलाव नहीं आ रहा हैैं। हम भले ही यह चाहते हों कि हमारे जीवनसाथी में अमुक परिवर्तन आए परंतु अगर हम उसके पीछे पड़े रहेंगे तो इस बात की संभावना कम ही है कि वैसा होगा। आप अपने जीवनसाथी को इस बात के लिए मजबूर नहीं कर सकते कि वह ठीक वैसा ही व्यवहार करे या उसमें ठीक वही परिवर्तन आएं, जो आप चाहते हैं। परंतु इससे दस गुना कम ऊर्जा से हम स्वयं को परिवर्तित कर सकते हैं। जब हममें सकारात्मक परिवर्तन आयेंगे, जब हम त्याग करेंगे तब हो सकता है कि हमारा जीवनसाथी भी स्वयं को बदलने की ओर कदम बढ़ाए। परंतु इसकी कोई गारंटी नहीं है। किसी को इस बात के लिए मजबूर न करिये कि वह आपको बर्दाश्त करे बल्कि व्यक्ति को उसी रूप में स्वीकार करना और उससे प्रेम करना सीखिये, जैसा कि वह है।
घावों की मरहम-पट्टी करिये
एक सबसे बड़ी गलती जो दंपत्ति करते हैं वह यह है कि वे यह मानते हैं कि उनका विवाह चलता रहे, इसके लिए उन्हें समस्याओं पर चर्चा ही नहीं करनी चाहिए। ”मेरा जीवनसाथी आदर्श नहीं है और मैं उसे बदल नहीं पा रहा हूं। परंतु टकराव से समस्या बढ़ेगी ही। अगर मैं उसे थोड़ा समय दे दूं तो शायद घाव भर जायेंगे।”
समस्याओं और भावनाओं को दबाकर रखना, उन पर ध्यान न देना सही हल नहीं है। केवल वही घाव भरते हैं, जिनकी मरहम-पट्टी की जाती है। अगर आप किसी घाव का इलाज नहीं करेंगे तो वह नासूर बन जायेगा। कई बार हम किसी समस्या को टालने की कोशिश करते हैं, उससे लड़कर उसे सुलझाने की नहीं। यहां ‘लडऩे’ से तात्पर्य है ‘बातचीत कर समस्या को सुलझाना’। एक दूसरे पर चिल्लाने से कोई नतीजा नहीं निकलेगा। इससे केवल आप दोनों के बीच चिल्लाने की प्रतियोगिता शुरू हो जायेगी और आप अपने पड़ोसियों और बच्चों के लिए एक तमाशा बन जायेंगे।
सबसे पहले जरूरी यह है कि हम झूठ का सहारा बिल्कुल न लें और एक-दूसरे को प्रेम और ईमानदारी से पूरा सच बतायें। अगर आप अपनी भावनायें और समस्याएं अपने जीवनसाथी से ही नहीं बांट सकते तो फिर किससे बाँटेंगे? अगर आपके जीवनसाथी के किसी व्यवहार से आपको चोट पहुंचती है तो उसे यह अवश्य बतायें। खुलकर बोलें, सच बोलें। सच बोलना और बिना आपा खोये उचित तर्क देना इसलिए जरूरी है क्योंकि अब आप एक हैं, शादी के बंधन में बंध चुके हैं।
क्षमा करें
एक कहावत है कि सूरज डूबने के साथ ही आपको दिन भर का अपना सारा गुस्सा भी तिरोहित कर देना चाहिए। परंतु हममें से अधिकांश सोचते हैं ”हमने इस बारे में बात कर ली है, हमने अपने तर्क दे दिए हैं, हमने एक दूसरे को समझ लिया है। अब हमें इस समस्या से पार पाने के लिए कुछ समय की जरूरत है। निश्चय ही क्षमा करने और भूलने में समय लगता है।”
हममें से अनेक वैवाहिक संबंध में किसी समस्या को एक सिरदर्द मानते हैं। हम सोचते हैं कि रातभर सोने के बाद जब हम सुबह उठेंगे तो वह समस्या खत्म हो चुकी होगी। हमारे सामने एक चमकीला, खुशियों से भरा नया दिन होगा। सच यह है कि कुछ घंटों का गुस्सा कई दिनों की कटुता में बदल जाता है और कई बार हफ्तों की घोर कुण्ठा में भी।
सभी के वैवाहिक जीवन में समस्यायें आती हैं- कुछ के मामले में ज्यादा, कुछ के मामले में कम। सभी दंपत्तियों को इन समस्याओं से निपटने के लिए प्रयास करने पड़ते हैं। अपने अहं को एक तरफ रख, एक दूसरे के प्रति सहृदय बनें, एक-दूसरे से प्रेम करें और एक-दूसरे से क्षमा मांगे। इसका इंतजार न करें कि सामने वाला व्यक्ति आपसे माफी मांगेगा। अपने जीवनसाथी को उसी तरह क्षमा करें जिस तरह आप अपनी गलतियों के लिए स्वयं को क्षमा करते हैं।
तो अब हमारे पास उन चीजों की एक छोटी-सी सूची है जो हमें नहीं करना है। अनुचित अपेक्षाएं न रखें, अपने जीवनसाथी पर बदलने के लिए दबाव न डालें, समस्याओं पर चर्चा करने से न बचें, अपने गुस्से को मन में रखे हुए बिस्तर पर न जायें।
हम सब दूसरे से ढेर सारी अपेक्षाएं करते हैं, जो शायद ही कभी पूरी होती हैं। हम यह नहीं कर सकते कि हम अपना एक एजेण्डा बना लें और अपने जीवनसाथी से यह अपेक्षा करें कि वह उस एजेण्डे के हर बिन्दु का पालन करे। हर समस्या के सुलझाव के अलग-अलग तरीके होते हैं।
आप किसी को इस बात के लिए मजबूर नहीं कर सकते कि वह आपसे प्रेम करे-और ना ही प्रेम एकांगी मार्ग है। क्या आप समस्याओं को अनसुलझा रखते हैं? अपने जीवनसाथी से बात कीजिए, इस मामले में चुप्पी साधे रहने से कुछ नहीं होने वाला। अगर आप चुप्पी साधे रहेंगे तो हम आपको विश्वास दिलाना चाहते हैं कि अंतत: इससे आपके मन की शांति नष्ट हो जायेगी।
आदर्श वैवाहिक संबंध एक मिथक है। ऐसा एक भी वैवाहिक संबंध नहीं है जो आदर्श हो। परंतु निश्चित तौर पर आप अपने वैवाहिक संबंध को आदर्श बनाने की ओर बढ़ सकते हैं।
(फारवर्ड प्रेस के फरवरी, 2015 अंक में प्रकाशित )
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