h n

आईआईटी में हिंदुत्व परियोजना

गत 22 मई को डीन ऑफ़ स्टूडेंट ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय के पत्र को आधार बनाते हुए 'आंबेडकर पेरियार स्टडी सर्किल' की मान्यता यह कहते हुए रद्द कर दी कि वह मिली सुविधाओं का दुरुपयोग कर रहा है

आप पूछ सकते हैं कि क्या केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय सभी चिट्यिको उतनी ही गंभीरता से लेता है जितनी गंभीरता से उसने आईआईटी, मद्रास में सक्रिय ‘आंबेडकर पेरियार स्टडी सर्किल’ की मुखालफत में आई चिट्ठी को लिया?आईआईटी मद्रास ने भी आनन-फानन में ‘आंबेडकर पेरियार स्टडी सर्किल’ पर प्रतिबंध लगा दिया. दरअसल, भाजपा के नेतृत्व वाली नई सरकार में मानव संसाधन विकास मंत्रालय अपने हिंदुत्व के एजेंडे के साथ पूरी तैयारी से मैदान में है और उसका वैज्ञानिक दृष्टिकोण और मानवाधिकारों से कोई वास्ता नहीं हैं.

मनुवादी जमीन

iitm‘आंबेडकर पेरियार स्टडी सर्किल’ एक स्वतंत्र छात्र समूह है, जो आम्बेडकर-पेरियार की विचारधारा के प्रचार-प्रसार के साथ ही विभिन्न आर्थिक-सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों पर बातचीत आयोजित करता रहा है. इस सर्किल की स्थापना पिछले साल हुयी थी और इसके पीछे गंभीर वजहें थीं. आईआईटी मद्रास में ‘विवेकानंद स्टडी सर्किल’ सहित आरएसएस की शाखाओं द्वारा हिन्दुत्ववादी विचारों का प्रसार होता रहा है. इन संगठनों और उनकी गतिविधियों से सरकार को कोई आपत्ति नहीं थी, लेकिन आंबेडकर-पेरियार स्टडी सर्किल की सक्रियता से इन्हें परेशानी होनी शुरू हो गयी. गत 22 मई को डीन ऑफ़ स्टूडेंट्स वेलफेयर ने इस पर प्रतिबंध लगाते हुए इसका कारण मंत्रालय के एक पत्र को बताया, जिसे अवर सचिव दर्जे के एक अधिकारी ने लिखा था. पत्र में मंत्रालय ने एक बेनाम चिट्ठी को आधार बनाकर संस्थान के निदेशक से ‘आंबेडकर पेरियार स्टडी सर्किल’ द्वारा जारी किये गये पोस्टर और पम्फ्लेट पर स्पष्टीकरण माँगा गया था, जो मंत्रालय के अनुसार कैम्पस में नफरत फैला रहे थे. किसके प्रति नफरत फैलाई जा रही थी, यह समझना कठिन नहीं है. इस मामले ने तूल पकड़ा. कई छात्र संगठन स्टडी सर्किल के साथ खड़े हुए और देश भर में विरोध प्रदर्शन हुए.

जून 2014 में संस्थान के निदेशक ने स्टडी सर्किल को अपने नाम में से आम्बेडकर और पेरियार हटाने को कहा था. वजह यह बताई गयी कि ये नाम राजनीतिक हैं. सर्किल के विद्यार्थियों ने ‘विवेकानंद स्टडी सर्किल’ के बारे में सवाल किये तो डीन ने जवाब दिया कि यह नाम बहुत पहले से इस्तेमाल हो रहा है. सितम्बर 2014 में डीन ने ‘आंबेडकर पेरियार स्टडी सर्किल’ से पूछा कि वह विद्यार्थियों को ‘गोलबंद’ क्यों कर रहा है. इस बीच कई और घटनाएं घटीं. लेकिन गत 22 मई को डीन ऑफ़ स्टूडेंट ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय के पत्र को आधार बनाते हुए ‘आंबेडकर पेरियार स्टडी सर्किल’ की मान्यता यह कहते हुए रद्द कर दी कि वह उसे मिल रही सुविधाओं का दुरुपयोग कर रहा है.

दरवाजे खुल रहे हैं
solidarity copyदलित/ आदिवासी/ बहुजन समूहों ने ब्राह्मणवादी विचारधारा को चुनौती देनी शुरू की है, इतिहास का पुनर्पाठ शुरू किया है, अपने आदर्शों प्रतीकों को पहचानकर सहज आलोचनात्मक रुख लिया है, जिसे हिंदुत्ववादी ताकतें बर्दाश्त नहीं कर पा रही हैं. यह लड़ाई परम्परावादी किले के मुहाने पर खडी है, जिसके बदले में बथानी टोला, अहमद नगर, नागौड़, झझ्झर, मिर्चपुर जैसी सैंकड़ो अमानवीय घटनाओं को अंजाम दिया जा रहा है . आई आई टी मद्रास में मानव संसाधन विकास मंत्रालय के दवाब में लिया गया निर्णय यह सिद्द्ध करता है कि मंत्रालय ब्राह्मणवाद के पक्ष से सोचते हुए शैक्षणिक संस्थानों में दलित -आदिवासी -बहुजन चेतना के बनते दवाब के खिलाफ काम कर रहा है . एक अजीबोगरीब ख़त को अक्तूबर 2014 में मंत्रालय के अंडर सेक्रेटरी ए.के .सिंह ने अपने कवर नोट के साथ देश के सारे आई आई टी को भेजा और स्पष्टीकरण माँगा. मध्य प्रदेश के एक महानुभाव ने अपने उक्त ख़त में चिंता व्यक्त की थी कि आई आई टी छात्रावासों में परोसे जाने वाले मांसाहार से ‘तामसिक भाव’ को बढ़ावा मिल रहा है और उसकी ओर निरामिष छात्र भी आकर्षित हो रहे हैं . जाहिर है आई आई टी जैसे संस्थान परम्परावादियों के निशाने पर हैं . इधर ‘आम्बेडकर पेरियार स्टडी सर्किल’ ने मोदी सरकार के अवैज्ञानिक आग्रहों और आदेशों तथा जनविरोधी नीतियों का विरोध भी किया था , जिसके कारण यह स्वत: सरकार के निशाने पर आ चुका था. आज की तारीख तक ‘आम्बेडकर पेरियार स्टडी सर्किल’ ने अपने ऊपर लगे प्रतिबंध की लड़ाई जीत ली है . इधर इसी तर्ज पर दूसरे विश्वविद्यालयों में भी ऐसे संगठन बन रहे हैं . जाहिर है सार्थक बहस के दरवाजे खुल रहे हैं .

लेखक के बारे में

गुरिंदर आजाद

कवि और दलित एक्टिविस्ट गुरिंदर आजाद शैक्षणिक संस्थानों में जातीय उत्पीडऩ से तंग आकर खुदकुशी करने के मसले पर 'द डेथ ऑफ मेरिट' नेशनल कैंपेन का महत्वपूर्ण हिस्सा रहे हैं। एक हिंदी कविता पुस्तक 'कंडीशंस अप्‍लाई' प्रकाशित

संबंधित आलेख

‘धर्मनिरपेक्ष’ व ‘समाजवादी’ शब्द सांप्रदायिक और सवर्णवादी एजेंडे के सबसे बड़े बाधक
1975 में आपातकाल के दौरान आरएसएस पर प्रतिबंध लगा था, और तब से वे आपातकाल को अपने राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करते...
हूल विद्रोह की कहानी, जिसकी मूल भावना को नहीं समझते आज के राजनेता
आज के आदिवासी नेता राजनीतिक लाभ के लिए ‘हूल दिवस’ पर सिदो-कान्हू की मूर्ति को माला पहनाते हैं और दुमका के भोगनाडीह में, जो...
दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों के ऊपर पेशाब : राजनीतिक शक्ति का कमजोर होना है वजह
तमाम पुनरुत्थानवादी प्रवृत्तियां सर चढ़कर बोल रही हैं। शक्ति के विकेंद्रीकरण की ज़गह शक्ति के केंद्रीकरण की प्रवृत्ति बढ़ रही है। ऐसे दौर में...
नीतीश की प्राथमिकता में नहीं और मोदी चाहते नहीं हैं सामाजिक न्याय : अली अनवर
जातिगत जनगणना का सवाल ऐसा सवाल है कि आरएसएस का सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति का जो गुब्बारा है, उसमें सुराख हो जाएगा, उसकी हवा...
मनुस्मृति पढ़ाना ही है तो ‘गुलामगिरी’ और ‘जाति का विनाश’ भी पढ़ाइए : लक्ष्मण यादव
अभी यह स्थिति हो गई है कि भाजपा आज भले चुनाव हार जाए, लेकिन आरएसएस ने जिस तरह से विश्वविद्यालयों को अपने कैडर से...