बुद्ध ने कहा था, ‘चरत भिक्कवे चारीकम बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय। अतान विताप लोकायुन कम्पाये आदि कल्याण, मध्य कल्याण, अन्त कल्याण’ (जो विचारधारा बहुजनो के हित में है, जिस विचारधारा में बहुजनों का सुख है, जो विचारधारा शुरू में बहुजनो का हित चाहती है, मध्य में बहुजनों का हित चाहती है और अन्त में भी जिस विचारधारा मे बहुजनों का हित है, वही विचारधारा प्रस्तावित होनी चाहिए)। बामसेफ की विचारधारा बहुजनों के हित की ही है।
इस संगठन का उद्देश्य है इस देश में गैर-बरावरी की, असमानता की व्यवस्था को परिवर्तित करना व समानता, स्वतंत्रता, न्याय एवं बन्धुत्व के संवैधानिक मूल्यों पर आधारित समाज और राष्ट्र का निर्माण।
भारत में कहीं भी इतना बड़ा संगठन नही है। लेकिन इसका मीडिया में प्रचार नही होता। कारण स्पष्ट है। भारत का मीडिया ब्राहमणवादी है। वह तो महिला हिंसा के मामलों में भी यही रुख अपनाता है। शहरी अभिजात्य वर्ग से जुड़े मुद्दों पर वह हंगामा खड़ा कर देता है परन्तु जातीय हिंसा की पहले से शिकार बहुजन महिलाओं के विरुद्ध हिंसा पर चुप रहता है। यद्यपि बामसेफ का विरोध करने में ब्राह्मणवादी शक्तियां कोई कसर नहीं छोड़तीं, इसके बावजूद बामसेफ एक मात्र संगठन है, जिसमें भारत की 6000 जातियों में से 3200 के प्रतिनिधि हैं और वे इसलिए इससे जुड़ रहे हैं क्योंकि बामसेफ उनके सामने एकमात्र विकल्प है जो उन्हें ब्राह्मणवादी वर्चस्व से मुक्त करा सकता है।
दुर्योग से हमारे बहुजन नेतृत्व का एक तबका बहुजन हितकारी विचारधारा से भटक गया है। वह सत्ता की राजनीति कर रहा है। ऐसे में हमारी जिम्मेदारी और बढ़ जाती है।
(डा नरेश ‘सागर’ से बातचीत पर आधारित)
फारवर्ड प्रेस के जुलाई, 2015 अंक में प्रकाशित