‘द हिन्दू’, चेन्नई, 25.06.2016 में ‘They cleared UPSC, but face disqualification’ शीर्षक से एक समाचार छपा है, जो ओबीसी के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस समाचार के अनुसार यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन द्वारा सिविल सर्विसेज परीक्षा, 2015 में कुल 1078 सफल प्रतियोगियों में 902 के कैडर और विभाग का आवंटन केन्द्र सरकार के कार्मिक विभाग द्वारा कर दिया गया है। बाकी बचे उम्मीदवारों में 120 ऐसे ओबीसी उम्मीदवार हैं, जिनका ओबीसी स्टेटस खत्म कर दिया गया है, जिनमें 35 के माता-पिता पब्लिक सेक्टर के कर्मचारी हैं। इन उम्मीदवारों की सूचि जल्द ही जारी की जाने वाली है। इनमें कई उम्मीदवार पहले कहीं और नौकरी करते थे और नई नियुक्ति के लिए पहली नौकरी से इस्तीफा दे दिया है। समाचार में आगे कहा गया है कि पहली बार आमदनी के आधार पर पब्लिक सेक्टर में कार्यरत कर्मचारियों, जिनमें क्लर्क, सहायक, चपरासी जैसे पदों पर कार्यरत लोग हैं, के बच्चों के ओबीसी दावों को खारिज किया गया है। उम्मीदवारों ने जो कारण बताया है, वह यह है कि कार्मिक विभाग पब्लिक सेक्टर में सरकारी क्षेत्र के पदों/वर्गों के समकक्ष पदों/वर्गों की पहचान पब्लिक सेक्टर में नहीं कर पायी है। नतीजे के तौर पर ऐसा होगा कि जिन्होंने बैंक, बीमा, बीएसएनएल आदि जैसे किसी भी पब्लिक सेक्टर में चपरासी/ ड्राईवर/ सहायक/ क्लर्क के रूप में नौकरी की शुरुआत की, उनके बच्चों को ओबीसी आरक्षण का लाभ नहीं मिल पायेगा, क्योंकि उनकी सलाना आमदनी छह लाख पर कर चुकी है। उदाहरण के लिए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया में सेवानिवृत्त होने वाले एक चपरासी की सैलरी सलाना 07 लाख होती है। इस सन्दर्भ में कार्मिक विभाग का कहना है कि पब्लिक सेक्टर के ऐसे कर्मचारियों को व्यापारी/प्राइवेट सेक्टर कर्मचारी की तरह समझा जाएगा, जब कि सरकारी कर्मचारियों के साथ ऐसा नहीं होता है। इस आधार पर 35 उम्मीदवारों, जो पब्लिक सेक्टर में कार्यरत कर्मचारियों के बेटे-बेटियां हैं, को सर्विस/कैडर आवंटित नहीं किया गया है। समाचार के अंतिम पैरा में खुलासा किया गया है कि कार्मिक विभाग 1993 (केन्द्र सरकार की नौकरियों में ओबीसी आरक्षण कार्मिक विभाग के आदेश दिनांक 08 सितम्बर, 1993 के बाद से लागू है ) के बाद से नौकरियों में आये वैसे सभी ओबीसी उम्मीदवारों के चयन की समीक्षा करेगा जिनके माता-पिता पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग में कार्यरत थे।
इस समाचार और इसके निहितार्थ को समझने के लिए क्रीमी लेयर प्रावधानों को समझना होगा। इंदिरा साहनी/मंडल केस में सुप्रीम कोर्ट ने वैसे ओबीसी उम्मीदवारों को आरक्षण देने का फैसला दिया जिनके माता-पिता क्रीमी लेयर में नहीं आते हैं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आलोक में केन्द्र सरकार ने क्रीमी लेयर की पहचान के लिए एक ‘विशेषज्ञ समिति’ बनायी। विशेषज्ञ समिति की अनुशंसाओं के आधार पर केन्द्र सरकार के कार्मिक विभाग ने कार्यालय आदेश दिनांक 08 सितम्बर, 1993 लाया। इस आदेश में क्रीमी लेयर में आने वाले की पहचान की गयी है। क्रीमी लेयर में आने वालों के वर्गीकरण संख्या I में संवैधानिक पदों के धारक का नाम है, वर्गीकरण II में तीन श्रेणियां A (अखिल भारतीय/ राज्य सेवाओं के सीधी भर्ती से आने वाले ग्रूप A/क्लास वन अधिकारीगण), B (अखिल भारतीय/राज्य सेवाओं के सीधी भर्ती से आने वाले ग्रूप B / क्लास टू अधिकारीगण ) और C (पब्लिक सेक्टर में काम करने वाले कर्मचारी आदि ) हैं। वर्गीकरण II की श्रेणी A और B में उप श्रेणियां दी हुई है। श्रेणी II (A) में a, b, c, d तथा e कुल मिलाकर 05 उप श्रेणियां हैं। पुनः II (A) e की भी दो उप श्रेणियां II (A) e (a) तथा II (A) e (b) हैं। II (A) (a), (b) तथा (c) में वे क्रीमी लेयर में आते हैं, जिनके माता-पिता दोनों क्लास वन अधिकारी हैं, कोई एक क्लास वन अधिकारी हैं, माता-पिता दोनों क्लास वन अधिकारी हैं किन्तु किसी एक की मृत्यु हो चुकी है या स्थायी तौर पर शारीरिक तौर पर योग्य घोषित किये जाने के कारण नौकरी से बाहर हो चुके हैं। इसी से मिलते प्रावधान II (B) में लगाये गए हैं। सरकार ने उपरोक्त सरकारी आदेश में क्रीमी लेयर की आय सीमा रुपया एक लाख सलाना तय करके रखा है। किन्तु जिन वर्गीकरणों की चर्चा ऊपर की गयी है, उनमें सलाना आय के आधार पर नहीं बल्कि पदों के आधार पर क्रीमी लेयर का आधार तय किया गया है। किन्तु जब वर्गीकरण II (C) (पब्लिक सेक्टर में काम करने वाले कर्मचारी आदि ) आता है तो यह प्रावधान किया गया है कि “जो प्रावधान ऊपर A और B में किये गए हैं वे स्वतः ही पब्लिक सेक्टर, बैंक, बीमा कंपनियों, विश्वविद्यालयों आदि में समकक्ष या तुलनीय पदों के धारकों पर तथा निजी रोजगार में समकक्ष या तुलनीय पदों के धारकों पर लागू होगा। जब तक इन संस्थानों में समकक्ष या तुलनीय पदों की पहचान लंबित रहती है तब तक इन संस्थानों में कार्यरत ऑफिसर्स पर वर्गीकरण VI, जो नीचे दिया हुआ है, लागू होगा।” वर्गीकरण VI में वैसे लोग आते हैं जिनकी सलाना आय एक लाख रूपये से ज्यादा है। यह सरकारी आदेश 1993 में आया था। तब से आज तक लगभग 23 साल हो गये, किन्तु केन्द्र सरकार केन्द्र और राज्य सरकारों में विद्यमान पदों के समकक्ष या तुलनीय पदों की पहचान पब्लिक सेक्टर, बैंक, बीमा कंपनियों, विश्वविद्यालयों आदि तथा निजी क्षेत्र में नहीं कर पायी है। ऐसी स्थिति में सरकार अब कह रही है कि चूकि समकक्ष या तुलनीय पदों की पहचान पब्लिक सेक्टर में अभी तक नहीं हो पायी है, इसलिए इसमें कार्यरत कर्मचारियों के क्रीमी लेयर स्टेटस को जांचने के लिए सलाना आय का प्रावधान इस्तेमाल किया जाएगा। इतना ही नहीं सरकार यह भी कह रही है कि 1993 से अभी तक ओबीसी कोटे में नियुक्त ऐसे लोग, जिनके माता-पिता पब्लिक सेक्टर में कार्यरत थे ,उनकी नियुक्तियों की समीक्षा की जायेगी। सरकार अपनी विफलताओं का दंड ओबीसी तबके के निर्दोष सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों को देने जा रही है। जैसा कि समाचार में बताया गया है कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के चपरासी का वेतन आज के दिन सलाना सात लाख हो गया है, अतः ऐसे लोग भी क्रीमी लेयर में आ जायेंगे।
उपरोक्त सरकारी आदेश में प्रावधान किया गया है कि रूपये के अवमूल्यन को देखते हुए सरकार प्रत्येक तीन सालों पर, जरूरत पड़ने पर इससे भी कम समय में, क्रीमी लेयर के लिए सलाना आय की सीमा को बढ़ायेगी। किन्तु 08 सितम्बर, 1993 के बाद अगली वृद्धि साढ़े दस सालों के बाद 09.03.2004 को रुपया 2.5 लाख की गयी। इसके बाद वृद्धि साढ़े चार साल के बाद 14.10.2008 को रुपया 4.5 लाख की गयी। इसके बाद की वृद्धि 16.05.2013 को हुई जो वर्तमान में जारी है। यह रुपया छह लाख सलाना है। इस प्रकार अभी तक कम से कम सात वृद्धि सलाना आय में होनी चाहिए थी, किन्तु अभी तक मात्र तीन बार वृद्धि की गयी है। राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने 2015 में भारत सरकार को सुझाव दिया था कि क्रीमी लेयर के लिए सलाना आय की सीमा रुपया 06 लाख से बढ़ाकर रुपया साढ़े दस लाख किया जाए। किन्तु सरकार इस सुझाव पर बैठी हुई है और कोई निर्णय नहीं ले रही है। पिछली एवं वर्तमान सरकारों ने यदि समय पर आय सीमा में वृद्धि की होती तो पब्लिक सेक्टर के कर्मचारियों के बेटे-बेटियों पर आज जो नंगी तलवारें लटकायी जा रही हैं उसकी नौबत नहीं आती।ओबीसी ग्रूपों को मांग करनी चाहिए कि विगत 23 वर्षों में रूपये में हुए अवमूल्यन को ध्यान में रखते हुए ओबीसी क्रीमी लेयर की आय सीमा तय की जाय। किन्तु यह मांग तात्कालिक मांग होनी चाहिए। ओबीसी की मांग होनी चाहिए कि उसके आरक्षण की शर्तें वही हो, जो एससी एवं एसटी की हैं, तीनों के आरक्षण लागू करने में एकरूपता लायी जानी चाहिए। उम्र एवं परीक्षा शुल्क में जो छूट एससी-एसटी को प्राप्त है, वही ओबीसी को भी होनी चाहिए। जिस तरह एससी-एसटी के आरक्षण में क्रीमी लेयर लागू नहीं है उसी तरह ओबीसी आरक्षण में भी क्रीमी लेयर लागू नहीं होनी चाहिए। क्रीमी लेयर प्रावधान को दूर करने के लिए जो भी कानूनी-संवैधानिक उपाय आवश्यक हो किया जाना चाहिए।
संसद में चर्चा का विषय
लोकसभा में 25 जुलाई को राष्ट्रीय जनता दल और समाजवादी पार्टी के सांसदों ने चयनित ओबीसी अभ्यर्थियों के खिलाफ क्रीमी लेयर के इस्तेमाल का मुद्दा उठाया। उन्होंने ओबीसी के खिलाफ इसे साजिश बताया तो सरकार की ओर से जवाब दिया गया कि कोई नया परिवर्तन क्रीमी लेयर में नहीं किया गया है, बल्कि 2004 के नियम का ही अनुसरण किया जा रहा है। केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि चयनित ओबीसी अभ्यर्थियों से आय का सवाल इसलिए किया गया है कि आगे जाकर कोई इसे कोर्ट केस का मुद्दा न बनाये।