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जनता से धोखा है काला धन से कथित युद्ध

भारत की लगभग सभी सरकारों ने काले धन को सफेद करने के कई रास्ते खोले, जिनमें डीटीएए, पार्टीसिपेटरी नोट्स और विदेशी संस्थागत निवेश शामिल हैं। मोदी सरकार ने ला फर्म ‘मोसैक फोंसेका’ में काला धन जमा करने वालों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की

सन 2014 के आम चुनाव के अपने अभियान के दौरान, नरेन्द्र मोदी ने यह घोषणा कि विदेशी बैंकों में देश का लगभग 20 लाख करोड़ रूपए का काला धन जमा है। उन्होंने कहा कि वे इस धन को वापिस भारत लाएंगे और सभी भारतीयों में इसे बांट देंगे। इससे प्रत्येक भारतीय को 15 लाख रूपए मिलेंगे।

मोदी चुनाव जीत गए और मई 2014 में उन्होंने देश के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली। इसके लगभग एक साल बाद, 26 मई, 2015 को काला धन (अघोषित विदेशी आय और संपत्ति) तथा कर अधिरोपण कानून लागू किया गया।

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भोपाल में भारत मुक्ति मोर्चा के छठे राष्ट्रीय अधिवेशन में बोलते हुए टी. थमराईकन्नन

सितंबर 2015 में नरेन्द्र मोदी ने घोषणा की कि 638 भारतीयों का लगभग रूपए 6,500 करोड़ का काला धन, जो अंतररार्ष्ट्रीय बैंकों में जमा था, पर भारत सरकार को 45 प्रतिशत कर चुका दिया गया है और शेष रूपए 3,700 करोड़ ‘काले’ से ‘सफेद’ बन गया है।

तमिलनाडु के एक आर्थिक विश्लेषक अरूण कुमार दवे का कहना है कि इस दावे में कोई दम नहीं है कि विदेशों में जमा 80 लाख करोड़ रूपए काला धन है। उनके अनुसार, इतनी भारी राशि बिना कोई सबूत छोड़े विदेशों में भेजना असंभव है। उन्होंने यह भी कहा कि पिछले दो दशकों में विदेशों में जमा काले धन का बड़ा हिस्सा अलग-अलग चैनलों से भारत वापिस आ गया है।

दोस्तों, अगर काला धन पहले ही भारत वापिस आ चुका है तो नरेन्द्र मोदी की यह घोषणा कि वे काले धन को भारत वापिस लाएंगे, अपने आप में एक बहुत बड़ा धोखा है।

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गत 8 नवंबर, 2016 को मोदी ने यह घोषणा की कि रूपए 500 और रूपए 1000 के नोट अर्द्धरात्रि से पूरे देश में अमान्य हो जाएंगे। उन्होंने यह भी कहा कि रूपए 500 और रूपए 2000 के नए नोट छापे जाएंगे। भाजपा और उसके समर्थकों ने कहा कि यह काले धन और भ्रष्टाचार पर ‘सर्जिकल स्ट्राईक’ है। दरअसल यह घोषणा एक बहुत बड़ा धोखा है। आइए देखें कैसेः

दोहरे कराधान से बचाव की संधि-डीटीएए

सन 1965 से भारत ने कई देशों के साथ दोहरे कराधान से बचाव की संधि (डीटीएए) पर हस्ताक्षर करने शुरू किए। सबसे पहले भारत और आस्ट्रिया के बीच ‘‘आय पर कर के संदर्भ में दोहरे कराधान से बचाव’’ की संधि पर हस्ताक्षर किए गए (अधिसूचना क्रमांक जीएसआर 588, दिनांक 5.4.1965)। सन 1990 तक भारत, मिस्र, मलेशिया और मारिशस के साथ इस तरह की संधियों पर हस्ताक्षर कर चुका था। वर्तमान में भारत की 85 देशों के साथ दोहरे कराधान से बचाव की संधियां प्रभावशील हैं।

ये संधियां किसी भी बहुराष्ट्रीय कंपनी या किसी नकली बहुराष्ट्रीय कंपनी को भी, भारत में बिना आय पर कर चुकाए अपना पंजीकरण कराने और व्यवसाय चलाने की अनुमति देता है, अगर उस कंपनी का इन 85 में से किसी भी देश में कार्यालय और बैंक खाता हो। इस तरह से अपना व्यवसाय चलाने के इच्छुक लोगों के लिए पनामा में स्थित एक कंपनी, जिसका नाम मोज़ाक फोंसेका है, मध्यस्थ की भूमिका निभाती है। गत 4 अप्रैल, 2016 को इंटरनेशनल कन्सोर्शियम ऑफ़ इन्वेस्टीगेटिव जर्नलिस्ट्स ने मोज़ाक फोंसेका द्वारा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किए जा रहे इस भ्रष्टाचार का खुलासा किया।

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पानामा स्थिति कंपनी मोसैक फोंसेका, जो कालेधन को सफ़ेद बनाने के लिए कुख्यात है

अगर कोई भारतीय अपना काला धन मोज़ाक फोंसेका को सौंप दे तो वह कंपनी, उन 85 देशों, जिनके साथ भारत ने डीटीएए पर हस्ताक्षर किए हैं, में से किसी में भी झूठा पंजीकरण करवाकर इस काले धन को भारत में निवेशित कर सकता है। यह धन भारत आने पर काले से सफेद हो जाता है। मोसैक फोंसेका ने इस तरह की धोखाधड़ी 1977 से लेकर 2015 के बीच दर्जनों बार की।

डीटीएए और मोज़ाक फोंसेका के ज़रिए कई लाख करोड़ रूपए का काला धन कानूनी ढंग से सफेद बन गया और उसके मालिकों तक पहुंच गया।

पार्टीसिपेटरी नोट्स और विदेशी संस्थागत निवेश

भारतीय प्रतिभूमि और विनिमय बोर्ड (सेबी), भारत सरकार की वैधानिक संस्था है, जो भारत में स्टाक मार्केट का विनियमन करती है। सन 1992 में सेबी ने अपने कानूनों में परिवर्तन कर विदेशी नागरिको को भारत के स्टाक मार्केट में सीधे निवेश करने और उससे लाभ अर्जित करने की अनुमति दे दी। पार्टीसिपेटरी नोट्स और विदेशी संस्थागत निवेश (एफआईआई) के ज़रिए स्टाक मार्केट में धन निवेश करने वालों के लिए यह आवश्यक नहीं है कि वे निवेश करने वाले व्यक्ति या कंपनी का नाम अथवा उसका पता उजागर करें। सन 1992 से भारतीय स्टाक मार्केट में पार्टीसिपेटरी नोट्स और एफआईआई के ज़रिए काले धन का स्टाक मार्केट में निवेश शुरू हो गया। यह काले धन को सफेद करने का एक नया तरीका था। भारत में एफआईआई की ऊपरी सीमा 48 प्रतिशत है और पार्टीसिपेटरी नोट्स और एफआईआई के जरिए भारत में काले धन का निवेश अबाध रूप से जारी है।

इस तरह सन 1965 से लेकर भारत की सभी सरकारों ने काले धन को सफेद बनाने के दरवाजे एक के बाद एक खोल दिए। सन 1991 के बाद से इस प्रक्रिया ने और तेज़ी पकड़ी और मोदी सरकार में यह अपने चरम पर पहुंच गई। इसलिए यह कहना कि विदेशों में जमा 80 लाख करोड़ रूपए का काला धन देश में वापिस लाया जाएगा और इससे प्रत्येक भारतीय को 15 लाख रूपए प्राप्त होंगे, एक बहुत बड़े धोखे से कम नहीं है।

काले धनपति ब्राह्मण, काले धन के मोचक

अप्रैल 2010 में भारतीय चिकित्सा परिषद के पूर्व अध्यक्ष और गुजराती ब्राह्मण डा. केतन देसाई को भ्रष्टाचार के आरोपों में गिरफ्तार किया गया। उनके पास से रूपए 1800 करोड़ और 1500 किलो सोना ज़ब्त किया गया। यह धन और संपत्ति अघोषित थी। सीबीआई की एक रिपोर्ट के अनुसार, देसाई से जब्त की गई धनराशि रूपए ढाई हजार करोड़ थी। उन्हें जेल भेज दिया गया। और उनका मेडिकल प्रैक्टिस का लायसेंस जब्त कर लिया गया था।

केतन देसाई को नवंबर 2013 में ज़मानत पर रिहा किया गया। इसके बाद वे गुजरात विश्वविद्यालय की सीनेट के सदस्य चुने गए। यह तब हुआ जब नरेन्द्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। सन 2014 में केतन देसाई की लड़की के अत्यंत खर्चीली और वैभवशाली विवाह समारोह के प्रमुख अतिथियों में से एक थे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह।

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. केतन देसाई

भाजपा की केन्द्र सरकार के वित्त मंत्री अरूण जेटली एक ओर कहते हैं कि वे उन लोगों को सज़ा दिलवाएंगे, जिनके नाम पनामा पेपर्स में हैं और फिर वे डा. केतन देसाई को अपनी लड़की की शादी में ससम्मान आमंत्रित करते हैं। अक्टूबर 2016 में डा. केतन देसाई को भाजपा की सहायता से वर्ल्ड मेडिकल एसोसिएशन का अध्यक्ष चुना गया। क्या फिर भी आपको लगता है कि भाजपा और उसका नेतृत्व भारत से काला धन मिटाएगा?

इंटरनेशनल कंसोर्शियम ऑफ़ इन्वेस्टिंगेटिंग जर्नलिस्ट्स द्वारा 4 अप्रैल, 2016 को प्रकाशित पनामा पेपर्स में जिन लोगों के नाम हैं, उनमें शामिल हैं, मोदी के निकटस्थ मित्र गौतम अदानी के भाई विनोद अदानी, इंडियाबुल्स समूह के संस्थापक समीर गेहलोत, डीएलएफ के अध्यक्ष कुशलपाल सिंह और फिल्म कलाकार अमिताभ बच्चन और ऐश्वर्या राय। इन परिस्थितियों में केवल मोदी ही काला धन रखने वाले कुबेरपतियों के खिलाफ कार्यवाही कर सकते हैं। परंतु वे ऐसा करना नहीं चाहते। वे केवल अपनी छवि एक ऐसे नेता के रूप में बनाना चाहते हैं जो कि भारत को काले धन से मुक्ति दिलवाएगा और इसलिए वे यह नाटकीय घोषणा करते हैं कि रूपए 500 और रूपए 1000 के नोट चलन से बाहर किए जा रहे हैं।

भारत की लगभग सभी सरकारों ने काले धन को सफेद धन में बदलने के कई रास्ते खोले, जिनमें डीटीएए पार्टीसिपेटरी नोट्स और विदेशी संस्थागत निवेश शामिल हैं। मोदी सरकार ने मोज़ाक फोंसेका के ज़िरए काला धन सफेद करने वालों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की। इससे स्पष्ट है कि मोदी और अमित शाह इन भ्रष्ट लोगों के संरक्षक हैं।

भारत के उद्योग जगत के शीर्ष पर बैठे हिन्दू धर्म-आधारित देशी व्यवसायी जैसे श्री श्री रविशंकर और बाबा रामदेव, बहुराष्ट्रीय कंपनियों के ब्राह्मण सीईओ और हिन्दू राजनीतिज्ञ और उनके गठबंधन के साथी भारत से कभी काला धन और भ्रष्टाचार समाप्त नहीं होने देंगे। वे केवल भारतीय अर्थव्यवस्था का शोषण करना चाहते हैं और उसका इस्तेमाल अपने काले धन को सफेद करने के लिए करना चाहते हैं। उनका यह काम बिना किसी रोकटोक के चलता रहे इसके लिए वे कुछ भी करेंगे।

(यह लेख टी थमराईकन्नन द्वारा भोपाल में 17 नवंबर, 2016 को आयोजित बामसेफ के भारत मुक्ति मोर्चा के छटवें राष्ट्रीय अधिवेशन में दिए गए भाषण के संपादित अंशों पर आधारित  है।)


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लेखक के बारे में

टी. थमराई कन्नन

पेरियादवादी सामाजिक कार्यकर्ता टी. थमराई कन्नन "कात्तारु : वैज्ञानिक संस्कृति का तमिल प्रकाशन" की संपादकीय-व्‍यवस्‍थापकीय टीम के संयोजक हैं। उनकी संस्था 'कात्तारु' नाम से एक तमिल मासिक पत्रिका का प्रकाशन भी करता है।

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