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अपने बच्चे का मिजाज पहचानें

'अण्डरस्टेडिंग यूअर चाइल्ड्स टेम्परामेंट’ (अपने बच्चे के मिजाज को समझना) की लेखिका बेवर्ली लहाय लिखती हैं, 'बच्चे के उचित विकास और आगे बढऩे में उसकी मदद करने में उनके मिजाज की समझ माता-पिता के लिए बहुत सहायक होती है'

दस साल की नंदिता का दिल धक् रह गया। उसे अपनी आंखों पर भरोसा नहीं हो रहा था। उसके 7 वर्षीय भाई रोहित को बतौर सजा उसके अध्यापक किंडरगार्टन सेक्शन से लगभग घसीटते हुए ला रहे थे। नंदिता को घोर शर्मिंदगी महसूस हुई। उसका मन हुआ कि वह तुरंत वहां से भाग जाए। वह अपने स्कूल के प्राथमिक खंड की कप्तान थी-एक आदर्श विद्यार्थी। जब भी वह अपने भाई को स्कूल में सजा पाते देखती तो अत्यंत असहाय महसूस करती। उसे यह समझ नहीं आता था कि वह क्या करे। उसका भाई आराम से काम करने का आदी था और इसे उसकी जिद् या आलस्य समझा जाता था। सौभाग्य से उनके माता-पिता उनसे बहुत स्नेह तो करते ही थे वे समझदार भी थे। वे जानते थे कि रोहित चुप-चुप भले ही रहता हो परंतु वह कल्पनाशील और बुद्धि का धनी है। अंतत: रोहित बड़ा होकर एक सफ ल पेशेवर बना और पक्षी प्रेमी भी।

परंतु वे दोनों बचपन में एक दूसरे से इतने अलग क्यों थे? क्या कारण था कि नंदिता बहुत छोटी उम्र से ही अपनी योग्यता और क्षमता को दुनिया के सामने लाने में सक्षम थी जबकि रोहित बिगड़ैल बच्चा समझा जाता था। मेरी राय यह है कि नंदिता और रोहित के ‘मिजाज’ अलग-अलग थे और इस कारण उनका व्यवहार भी अलग था। अपनी पुस्तक ‘वाय वी एक्ट द वे वी डू’ (हम वह क्यों करते हैं, जो हम करते हैं) में डॉ. टिम लहाय लिखते हैं कि कम से कम एक-चौथाई मामलों में, माता-पिता और दादा-दादी व नाना-नानी से बच्चे जो आनुवांशिक गुण उत्तराधिकार में पाते हैं, वही उनके व्यवहार का निर्धारण करते हैं। इसलिए अपने बच्चे के निराले मिजाज को समझना हर माता-पिता का आवश्यक कर्तव्य है। आईए, हम देखें कि यूनानी दार्शनिक हिप्पोक्रेट्स जो कि चिकित्साशास्त्र के पितामह माने जाते हैं, ने मनुष्यों के मिजाज को किस तरह वर्गीकृत किया है और यह मिजाज किस तरह बच्चों के व्यवहार को प्रभावित करता है।

खुशमिजाज बच्चा

मैं बचपन से ही खुशमिजाज थी-एक आदर्श बालिका-ऊर्जा और आत्मविश्वास से भरपूर। मैं बड़ों को अपनी मनोहारी मुस्कान और अपनी हाजिरजवाबी से चमत्कृत कर दिया करती थी। बड़े लोग मुझसे बहुत प्रभावित रहते थे। डॉ. लहाय के अनुसार वयस्क, खुशमिजाज बच्चों को बहुत चाहते हैं और उन्हें यह विश्वास होता है कि वे बच्चे अपने जीवन में अवश्य सफ ल होंगे। अत: बचपन में तो मुझे खूब तारीफ  मिली परंतु जैसे-जैसे मैं बड़ी होती गई, मुझ पर अनुचित अपेक्षाओं का बोझ लदता चला गया जिसे सम्हाल पाना मेरे लिए असंभव था। मुझे विश्वास था कि मैं एक दिन प्रसिद्ध हृदय रोग विशेषज्ञ बनूंगी (जो कि मैं नहीं बनी) परंतु जब मैं बचपन में लिखे हुए अपने निबंध और कविताएं पढ़ती हूं तो मुझे यह एहसास होता है कि मैं केवल और केवल एक लेखक बनना चाहती थी। खुशमिजाज बच्चों के माता-पिता के बतौर हमें उनकी भावी महानता के बारे में जल्दबाजी में किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचना चाहिए। हमें कोशिश कर यह पता लगाना चाहिए कि हमारे बच्चे की वास्तविक क्षमता क्या है।

उदास बच्चा

उदास बच्चे चुपचाप रहते हैं। यद्यपि उनमें गजब की रचनात्मकता और बौद्धिक क्षमता होती है परंतु वे अपनी क्षमता को दुनिया को दिखाने की कतई जरूरत नहीं समझते। लुई टी हेण्डरसन अपनी पुस्तक ‘अनेदर वे ऑफ सीइंग’ (चीजों को देखने का दूसरा नजरिया) में अपने उदास शिशु की चर्चा करती हैं। वे लिखती हैं, ‘बहुत से शर्मीले और कल्पनाशील बच्चों की तरह उसने अपनी अलग छोटी-सी एक दुनिया बसा ली थी, जिसमें वह जब चाहे घुस जाता था और बाकी सब कुछ बाहर छोड़ देता था।’ मैंने यह पाया है कि कई उदास बच्चे सामान्य चीजें सीखने में काफी वक्त लगा देते हैं। वे भीड़ को बिलकुल पसंद नहीं करते और केवल ऐसे जाने-पहचाने चेहरों के बीच रहना चाहते हैं जिनसे वे प्यार करते हैं और जिन पर उन्हें विश्वास होता है। अक्सर स्कूल उन्हें पसंद नहीं होता और कोई भी ऐसी चीज या व्यक्ति जो उन्हें उनके सपनों की दुनिया से बाहर घसीटने की कोशिश करता है, उन्हें बिलकुल पसंद नहीं आता। वे आगे चलकर प्रतिभाशाली वयस्क बनते हैं परंतु उनका बचपन संघर्षों से भरा होता है। बच्चों और अभिभावकों के आपसी रिश्तों के मूल में है हर बच्चे को जानना-समझना।

उत्साही बच्चा

बच्चों के समूह में उत्साही बच्चे को पहचानने में आपको कभी देर नहीं लगेगी। उसमें जन्म से ही नेतृत्व क्षमता होती है। पूर्व बालचिकित्सक डॉ. जेम्स डाब्सन अपनी पुस्तक ‘द स्ट्रोंग विल्ड चाइल्ड’ (मजबूत इच्छाशक्ति वाला बच्चा) में कहते हैं कि उत्साही बच्चे, बच्चों के सामाजिक पदानुक्रम में सबसे ऊपर होते हैं। वे जिस काम में जुट जाते हैं उसे पूरा कर ही छोड़ते हैं। उनके हाथ-पैर खूब चलते हैं। वे अपनी थकी हुई मां को घर में इधर से उधर दौड़ाते रहते हैं। उनकी जबान कैंची की तरह चलती है और वे अपने साथियों और बड़ों दोनों को अपनी टिप्पणियों से आहत करने से बाज नहीं आते।

सुस्त बच्चा

सुस्त बच्चे को खुश करना आसान होता है और वह आपको बिलकुल भी परेशान नहीं करता। क्या कभी आपको यह देखकर आश्चर्य होता है कि लंबी यात्रा के दौरान जहां आपका बच्चा एक मिनट भी चुप नहीं रहता वहीं उसी उम्र का आपके मित्र का बच्चा पूरी यात्रा का बिना कुछ बोले मजा लेता है। हो सकता है कि आपके मित्र का बच्चा सुस्त हो। यद्यपि सुस्त बच्चे अपने बचपन में किसी को परेशान नहीं करते परंतु उनमें एक अजीब किस्म का जिद्दीपन भी होता है। जब वे अपनी जिद् पर उतर आते हैं तो उनके माता-पिता को उन्हें सम्हालना मुश्किल हो जाता है। वे अपने खिलौने से जुदा होना नहीं चाहते। उनके गुण सामने नहीं आ पाते और उन्हें अक्सर अपनी क्षमताओं का इस्तेमाल करने के लिए अभिप्रेरित करना होता है ताकि वे अपने आत्मविश्वास की कमी पर काबू पा सकें।

सभी माता-पिताओं के लिए इन चार मूल मिजाजों की समझ आवश्यक है क्योंकि सभी बच्चों में इनमें से कम से कम दो मिजाजों का संगम होता है। ‘अण्डरस्टेडिंग यूअर चाइल्ड्स टेम्परामेंट’ (अपने बच्चे के मिजाज को समझना) की लेखिका बेवर्ली लहाय लिखती हैं, ‘बच्चे के उचित विकास और आगे बढऩे में उसकी मदद करने में उनके मिजाज की समझ माता-पिता के लिए बहुत सहायक होती है। अभिभावकों के अपने बच्चों से अच्छे रिश्तों के लिए यह आवश्यक है कि वे अपने बच्चों को ठीक से समझें और पहचानें।’

मैं इसमें यह जोडऩा चाहूंगी कि माता-पिता के लिए यह आवश्यक है कि वे अपने बच्चों के मिजाज को समझें और उसके बाद उन्हें वैसे ही स्वीकार करें जैसे वे हैं। यह अच्छे अभिभावक बनने की ओर पहला कदम होगा। हमें अपने बच्चों की ताकत और उनकी कमजोरियों को जानना और स्वीकार करना चाहिए। तभी हम उनकी एक जिम्मेदार, स्थिरमति व आत्मविश्वासी वयस्क बनने में मदद कर सकते हैं।

 

(फारवर्ड प्रेस के जनवरी, 2014 अंक में प्रकाशित )


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लेखक के बारे में

दिव्या जकारिया

डॉ. दिव्या जकारिया लेखक और जीवन जीने की कला की प्रशिक्षक हैं। वे अपने पति और दो बच्चों के साथ बेंगलुरु में रहती हैं।

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