मध्य प्रदेश में जय आदिवासी युवा शक्ति जयस ने छात्र संघ के चुनाव में पहली बार उतरते ही आरएसएस का सूपड़ा साफ कर दिया। एबीवीपी की इस करारी हार से आरएसएस-भाजपा के नेता काफी चिंतित हैं। जयस समर्थित आदिवासी छात्र संघ की इस जीत का प्रभाव 2018 में होने वाले मध्य प्रदेश विधान सभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव में भी देखने को मिल सकता है।
आदिवासी युवाओं में आई जागरूकता से भाजपा और आरएसएस के नेताओं को भय सताने लगा है। मध्य प्रदेश के भील आदिवासी बहुल क्षेत्र धार, अलीराजपुर, कुक्षी, महू, खरगाेन, बड़वानी, झाबुआ, थांदला, मनावर, बदनावर, निवाली, गंधवानी और धरमपुरी में छात्र संघ चुनाव में जयस ने बड़ी जीत हासिल की है।
जयस समर्थित आदिवासी छात्र संघ की यह जीत इस लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि जयस ने इस क्षेत्र में आरएसएस के वर्चस्व को लगातार चुनौती देता रहा है और आदिवासी छात्र संघ की एकतरफा जीत ने आरएसएस समर्थित छात्र संघ एबीवीपी के वर्चस्व को ध्वस्त कर दिया है।

आरएसएस समर्थित एबीवीपी की यह हार इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि हाल ही में जेएनयू, दिल्ली विश्वविद्यालय, इलाहाबाद विश्वविद्यालय और हैदराबाद विश्वविद्यालय में हुए छात्र संघ चुनावों में उसे हार मिली है।
आदिवासी बहुल क्षेत्रों में जयस की यह जीत बहुत मायने रखती है। भील बहुल मालवा-निमाड़ की काली मिट्टी वाले इस क्षेत्र के कॉलेजों में पहले एबीवीपी का कब्जा हुआ करता था जबकि इन कॉलेजों में आदिवासी छात्रों की निर्णायक संख्या होती थी।
जयस ने इसी वर्ष अपना अभियान चलाया और पहली ही बार में ही उसने ऐतिहासिक जीत हासिल की। आदिवासी छात्र संगठन की यह जीत मध्य प्रदेश के अन्य आदिवासी बहुल गोंडवाना क्षेत्र में भी देखने को मिली, जहां मंडला और सिवनी में भी गोंडवाना स्टूडेंट यूनियन ने एबीवीपी को करारी मात दी है।
जयस की स्थापना को लगभग छह साल हो चुके हैं। इसकी बुनियाद डा. हीरा लाल अलावा ने रखी थी। इसका मकसद आदिवासी समाज के लोगों को एकजुट करना और उनके हितों की रक्षा के लिए उन्हें गोलबंद करना है। वर्तमान में जयस देश के लगभग एक दर्जन राज्यों में फैला है, और इससे जुड़े सदस्यों की संख्या लगभग दस लाख से अधिक हो चुकी है।
आदिवासी छात्र संघ की यह ऐतिहासिक जीत आदिवासियों के आंदोलन के लिए महत्वपूर्ण मानी जा रही है। खासकर जल-जंगल-जमीन की दावेदारी को लेकर आहूत – मिशन 2018 का आंदोलन, जिसके तहत एक करोड़ आदिवासियों द्वारा दिल्ली में संसद घेराव आंदोलन को नयी गति मिलेगी। आने वाले समय में इसका असर लोकसभा और विधानसभा चुनावों पर दिखना लाजमी है।
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