केंद्र में सत्तासीन नरेंद्र मोदी सरकार पर कारपोरेट जगत मेहरबान है। यह मेहरबानी नोटबंदी लागू होने के बाद और अधिक बढ़ी है। पिछले चार वित्तीय वर्षों में कारपोरेट जगत ने कुल 627 करोड़ 64 लाख रुपए राजनीतिक दलों को दान में दिया। इसमें नोटबंदी के बाद यानी वित्तीय वर्ष 2016-17 में कुल 325 करोड़ 27 लाख रुपए शामिल हैं। साथ ही यह तथ्य भी कि इस 325 करोड़ 27 लाख रुपए में से 277 करोड़ 22 लाख रुपए सीधे-सीधे भाजपा को दान में दिये गये हैं। जबकि शेष करीब 35 करोड़ 5 लाख रुपए तीन राजनीतिक दलों को प्राप्त हुए हैं। इसमें कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और शिरोमणि अकाली दल शामिल हैं। एडीआर यानी एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म्स के मुताबिक नोटबंदी के बाद कारपोरेट जगत का विश्वास भाजपा में बढ़ा है। हालांकि इससे पहले भी सत्तासीन होने के बाद भाजपा कारपोरेट जगत की कृपा पाने में सबसे आगे थी। मसलन पिछले चार वित्तीय वर्ष में विभिन्न राजनीतिक दलों को दान में मिले 627 करोड़ रुपए में भाजपा को सबसे अधिक 488 करोड़ रुपए हासिल हुए।

राजनीतिक दलों को ऐसे भी मदद करती हैं कारपोरेट कंपनियां
विभिन्न राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे को लेकर सवाल पहले भी उठाये जाते रहे हैं। इसे पारदर्शी बनाने के लिए भारत सरकार ने एक नियम बनाया। इसकी अधिसूचना 31 जनवरी 2013 को वित्त मंत्रालय द्वारा जारी किया गया। इस अधिसूचना के मुताबिक कोई भी कारपोरेट कंपनी अब सीधे-सीधे किसी भी राजनीतिक दल को चंदा नहीं दे सकती है। इसके लिए इलेक्टोरल ट्रस्ट बनाने का प्रावधान रखा गया है। इन ट्रस्टों का निबंधन कंपनी के तौर पर किया जाता है। इन ट्रस्टों की अहम जिम्मेवारी कारपोरेट जगत से चंदा लेना और फिर उसे राजनीतिक दलों को देना है। इसके अलावा उसे हर लेन-देन की जानकारी अपने वार्षिक प्रतिवेदन में चुनाव आयोग को देनी होती है।
भाजपा को चंदा देने वाली कंपनियों की सूची
एडीआर के मुताबिक इस वित्तीय वर्ष में सबसे अधिक चंदा पाने वाली इलेक्टोरल ट्रस्ट प्रुडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट है, जिसके निदेशक मुकुल गोयल हैं। पहले यह ट्रस्ट सत्या इलेक्टोरल ट्रस्ट के नाम से जानी जाती थी। इस ट्रस्ट को चंदा देने के बहाने भाजपा को चंदा देने वालों की सूची कंपनियों में डीएलएफ लिमिटेड 28 करोड़ रुपए, यूपीएल लिमिटेड 25 करोड़ रुपए, जेएसएम एनर्जी लिमिटेड 25 करोड़ रुपए000, पीरामल इंटरप्राइजेज 21 करोड़ रुपए, सुरेश ए कोटेक(कोटेक महिन्द्रा) 18.5 करोड़ रुपए, भारती एयरटेल 17 करोड़ रुपए, डीएलएफ साइबरसिटी डेवलपर्स लिमिटेड 15 करोड़ रुपए, एस्सार 15 करोड़ रुपए , अल्ट्राटेक 13 करोड़ और ग्रासिम इंडस्ट्रीज 13 करोड़ रुपए शामिल है।
नोटबंदी से कारपोरेट को लगा झटका, लेकिन मोदी सबसे अधिक विश्वासपात्र
प्रख्यात पत्रिका समयांतर के संपादक पंकज बिष्ट के अनुसार नोटबंदी से भारतीय अर्थव्यवस्था पर कुठाराघात हुआ। इसकी जद में कारपोरेट कंपनियां भी आयीं। परंतु कारपोरेट जगत नरेंद्र मोदी को अभी भी अपना विश्वासपात्र और हितरक्षक मानता है। वजह यह है कि मोदी सरकार ने कारपोरेट जगत के हितों की रक्षा की जनता के अधिकारों में कटौती कर की है,। इसलिए नोटबंदी के बावजूद यदि कारपोरेट जगत भाजपा को सबसे अधिक चंदा दे रहे हैं तो यह कोई आश्चर्यजनक बात नहीं है।
कारपोरेट जगत के चंदे से चल रही हैं पार्टियां
एडीआर के प्रमुख सेवानिवृत्त मेजर जनरल अनिल वर्मा ने फारवर्ड प्रेस को दूरभाष पर बताया कि आज के दौर में सभी राजनीतिक पार्टियां(अधिकांश प्रादेशिक पार्टियों को छोड़कर) कारपोरेट जगत के पैसे से चलती हैं। जब कोई पार्टी सत्ता में आती है तो कारपोरेट जगत उस पर मेहरबान हो जाता है। कई अवसरों पर यह भी देखा गया है कि चुनाव के मौके पर कंपनियों की दरियादिली और भी बढ़ जाती है। अब यह सही है या गलत, यह तय जनता ही करे। एडीआर के जरिए हम लोकतंत्र को पारदर्शी बनाने का प्रयास कर रहे हैं।
फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्त बहुजन मुद्दों की पुस्तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्य, सस्कृति व सामाजिक-राजनीति की व्यापक समस्याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +919968527911, ईमेल : info@forwardmagazine.in
फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें :