केंद्र सरकार में शामिल राष्ट्रीय लोक समता पार्टी उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायाल में जजों की नियुक्ति में आरक्षण को लेकर नया अभियान शुरू कर रही है। नाम दिया है- ‘हल्ला बोल, दरवाजा खोल’। इस अभियान के संयोजक पार्टी के वरिष्ठ नेता रामबिहारी सिंह हैं। उन्होंने इस अभियान के संबंध में बताया कि उच्च न्यायापालिकाओं में न्यायाधीशों की नियुक्ति कॉलेजियम के माध्यम से होती है। देश के करीब 250 परिवारों के सदस्य ही सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में जज नियुक्त होते रहे हैं। जबकि आम लोगों के लिए उच्च न्यायालयों का दरवाजा बंद है। इसी दरवाजे को खुलवाने के लिए ही पार्टी ‘हल्ला बोल, दरवाजा खोल’ अभियान की शुरुआत कर रही है। 20 मई को पार्टी नई दिल्ली के कंस्टीट्यूशनल क्लब में इसी मुद्दे पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन कर रही है, जबकि 5 जून को पटना के श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल में सेमिनार का आयोजन करेगी। इसमें देश भर के सामाजिक व राजनीति कार्यकर्ता के साथ संविधान के विशेषज्ञ हिस्सा लेंगे। फारवर्ड प्रेस ने रामबिहारी सिंह से विशेष बातचीत की। प्रस्तुत है बातचीत का संपादित अंश :

आप कह रहे हैं उच्च न्यायपालिका में कुछ खास परिवारों का अाधिपत्य है। तो क्या यह कुछ खास परिवार जो हैं, उनकी कोई जाति भी है? आपको क्या लगता है?
ऐसा तो नहीं मैं कह सकता। लेकिन, कुछ खास परिवार हैं, जिनका आधिपत्य है। हमारा मानना है कि जिन लोगों का आधिपत्य है, उनके खिलाफ एक सहज रूप से जो दरवाजा बंद है, अपॉइंटमेंट का, उसको खोलना चाहिए। इसके लिए एक आवाज बनाने की जरूरत है। राष्ट्रीय लोक समता पार्टी ने निर्णय लिया है कि हम यह दरवाजा जो बंद है, उसको खोलने के लिए आवाज देंगे।
आपको क्या लगता है कि यह दरवाजा जो बंद है, इससे कौन नहीं जा पा रहा है। ओबीसी के लोग नहीं जा पा रहे हैं? दलित नहीं जा पा रहे हैं? आदिवासी नहीं जा पा रहे हैं? या सब नहीं जा पा रहे हैं?
सब नहीं जा पा रहे हैं।
मतलब, आपका जो आंदोलन है, वह ओबीसी, दलितों और आदिवासियों के लिए नहीं, सबके लिए है?
नहीं, नहीं। जब राष्ट्रीय न्यायिक सेवा की बहाली होगी, तो उसमें अवसर सबको मिलेगा। अभी तो स्थिति यह है कि वो चाहे ब्राह्मण हों, चाहे ठाकुर हों, चाहे वो दलित हों, चाहे वो पिछड़े हों, किसी के लिए ऑप्शन ही नहीं है। दरवाजा ही नहीं खुला है। बंद है। उन परिवारों के बाहर किसी जज से नियुक्ति होती ही नहीं है।
पहले भी यह मुद्दा उठाया जाता रहा है कि न्यायपालिका में जो वंचित तबका है, दलित है,ओबीसी है, आदिवासी है, पसमांदा मुसलमान है, सबको आरक्षण मिलना चाहिए। इसको लेकर आपकी राय क्या है?
देखिए! अभी जब दरवाजा ही बंद है, तो दरवाजा खुलेगा तब न किसी की बात होगी।
तो दरवाजा खुलेगा कैसे? इसका मतलब क्या है? जजों की नियुक्ति कॉलेजियम से न हो, तो कैसे हो?
राष्ट्रीय न्यायिक सेवा की बहाली की जाए।
मतलब एक कमीशन बने?
(बीच में ही…) नहीं! नहीं!! नहीं!!! कमीशन आयोग की मैं बात नहीं करता हूँ। मैं न्यायिक सेवा की बात कर रहा हूँ कि न्यायिक सेवा की बहाली हो। और न्यायिक सेवा जिससे चाहेगा, उससे बहाली करा लेगा अपना, यूपीएससी से कराएगा या जुडिशल सर्विस कमीशन बनाकर कराए, करा लेगा।

हाल के दिनों में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पर सवाल उठे। यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट के जजों ने सवाल उठाया। इसको लेकर आपकी पार्टी क्या सोचती है?
सुप्रीम कोर्ट में जो महाअभियोग का मामला उठा है, लाया गया है। उस मामले में कोई दम नहीं था। उसका कोई मीनिंग (मतलब) ही नहीं है। उसमें हमारी पार्टी की क्या राय होगी।
क्या आपने अपनी पार्टी के इस अभियान में अन्य दलों को भी शामिल होने का न्योता दिया है?
अभी हमने किसी को न्योता नहीं दिया है। हमने आंदोलन शुरू करने का निर्णय लिया है। 20 मई को दिल्ली में कांस्टीट्यूशन क्लब के स्पीकर हॉल में हमारा पहला सेमिनार होगा या आंदोलन की शुरुआत होगी। 5 जून को पटना के कृष्ण मेमोरियल हॉल में होना है। तो इस प्रकार हमने देश के लिए यह निर्णय लिया है कि जितने राज्य हैं उनकी राजधानियों में हम कार्यक्रम करेंगे। हम सेमिनार आयोजित करने का काम करेंगे। यह एक ऐसा मामला है कि इस मामले पर कोई राजनीतिक दल बोलने के लिए तैयार अभी फिलहाल तैयार नहीं है। तो इस हालत में हम न्योता नहीं देंगे, हम पहले चलेंगे।
भाजपा और लोजपा को भी नहीं?
नहीं! नहीं!! खुद चलेंगे। शामिल होने का जिनका निर्णय होगा, उनको रोकेंगे नहीं। लेकिन हम ख़ुद चलेंगे। हमने किसी को निमंत्रण नहीं दिया है। यह काम तो सारे राजनीतिक दलों का है। और लोकसभा में भी यह मामला उठा और जो ज्यूडिशियरी है, उसने इस बात को नहीं माना…!
अच्छा! मान लीजिए कि आप का जो अभियान है उसको आरजेडी समर्थन करे तो क्या यह समर्थन स्वीकार करेंगे? पहले भी आरजेडी ने आपके अभियान को अपना समर्थन दिया है।
नहीं, हमारी जो समझदारी है। अभी इस सवाल पर हम लोगों ने कोई सोचा नहीं है, कि वामपंथी दल हमारे साथ आएँ, आरजेडी आएँ या मांझी की पार्टी आए। हम तो चाहेंगे कि एनडीए पहले खुलकर के मैदान में आवे।
आपके अभियान की रूपरेखा क्या है? कैसे करेंगे? क्या उपेंद्र कुशवाहा जी या आपकी पार्टी भारत के राष्ट्रपति को पत्र लिखेंगे? ताकि इसमें बदलाव हो। लोगों को कैसे जोड़ेंगे?
अभी फिलहाल हमारा कार्यक्रम है कि पूरे देश के राज्यों में सेमिनार आयोजित करने का। अब उसके बाद हम सेकेंड राउंड में सोचेंगे कि आंदोलन को आगे किस रूप में लेकर चलना है। कोई ब्लू प्रिंट हमने नहीं बनाया है। लेकिन हमारा मानना है कि अब देश हित के लिए आवश्यक है। इसलिए इस पर आगे बढ़ना चाहिए। हम इस पर आगे की बढ़ने की कार्यवाही भी कर रहे हैं।
राम बिहारी बाबू एक अंतिम सवाल। आप बहुत पुराने नेता हैं। मैं आपको व्यक्तिगत रूप से जानता हूँ। न्यायिक सेवा के गठन की यह मांग तो संपूर्ण क्रांति आंदोलन के एजेंडे में भी शामिल था। आखिर किन कारणों से यह पूरा न हाे सका और आपकी पार्टी को आज आंदोलन करना पड़ रहा है?
देखिए, संपूर्ण क्रांति की जो पीढ़ी थी, यह उसकी जवाबदेही थी। लेकिन उन लोगों ने नहीं उठाया तो इसका अर्थ यह नहीं है कि हम नहीं करेंगे।
इससे पहले भी लालू प्रसाद जी और रामविलास पासवान जी आदि ने इस सवाल को उठाया था कि न्यायिक सेवा का गठन हो और वहाँ पर आरक्षण मिले। आप तो सिर्फ कह रहे हैं कि न्यायिक सेवा का गठन हो।
देखिए, यह लोग जो कुछ किए, किसी की आलोचना करना मेरा काम नहीं है। जिसको जितना संभव हुआ उन्होंने कहा, बोला। लेकिन, किया कुछ नहीं इस सवाल पर। हम सिर्फ बोल नहीं रहे हैं। हम आगे बढ़कर के एक्शन में आ रहे हैं।

बिहार में इससे पहले शिक्षा को लेकर आपकी पार्टी ने कथित आंदोलन चलाया। क्या उपलब्धि रही? खासकर तब जबकि एक दिन पहले ही राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने बिहार की शिक्षा पर सवाल उठाया और आपकी पार्टी के नेता व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने भी उनका समर्थन किया।
बहुत बड़ी उपलब्धि है। देखिए, आज की तारीख में बिहार का जन-जन जो है, शिक्षा के सवाल पर जो हमने आंदोलन खड़ा किया है। उसके चलते कई क्षेत्रों में लोगों के अंदर जागरूकता आई है, शिक्षा के सवाल पर। तो राजनीतिक दल का काम जो है, सिर्फ परिणाम देखना नहीं है। राजनीतिक दल का काम…! हमने एक जन जागरण का काम किया। और पूरे बिहार में आंधी की तरह फैला शिक्षा का सवाल। सरकार को कई मामले में अपने निर्णय लेने पड़े हैं बिहार की सरकार को। हम उसी तरीके से न्यायपालिका के सवाल को उठा रहे हैं। सिर्फ बयान में ही नहीं उठा रहे हैं, बल्कि आगे बढ़कर के काम कर रहे हैं।
(लिप्यांतर : प्रेम बरेलवी)
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