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राजद के बहाने यादवों को अलग-थलग करने की साजिश?

बिहार में दलितों के विरुद्ध हिंसा थम नहीं रही। गत दिनों राघोपुर दियारा में दबंग यादवों ने दलितों के 20 घर जला दिए। पुलिस मौजूदगी में हुए इस अग्निकांड पर त्वरित कार्रवाई की बजाय सरकार इसे राजद बनाम दलित या यादव बनाम दलित रंग दे रही है। अनिल गुप्ता की रिपोर्ट :

बिहार के राघोपुर दियारा में दलितों के घर जलाने की घटना पर सेंकी जा रही राजनीतिक रोटी

बिहार की राजधानी पटना से लगती गंगा नदी का दियारा क्षेत्र राघोपुर राजद प्रमुख लालू प्रसाद और अब उनके बेटे पूर्व उपमुख्यमंत्री व विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव के विधानसभा क्षेत्र के रूप में जाना जाता है। यादव बहुल यह क्षेत्र वैशाली जिले में पड़ता है। नदी के बीच के दियारा क्षेत्र की कठिनाइयों से लड़ते हुए जीने वाले यहां के लोग स्वाभाविक रूप से संघर्षशील समझे जाते हैं।

दलितों के जले हुए घर

समाचारों के अनुसार सोमवार 28 मई को राघोपुर पुलिस थाना से चार किलोमीटर पश्चिम मलिकपुर पंचायत में कबीर चौक के पास स्थित दलितों के 20 घर-दुकान स्थानीय दबंग यादवों द्वारा जला दिए गए। इस घटना पर राज्य सरकार की तुरन्त प्रतिक्रिया आई कि यह घटना राजद नेता तेजस्वी यादव से जुड़े राघोपुर के यादवों की दबंगई का परिणाम है।

तुरन्त ही मुख्यमंत्री और जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार के निर्देश पर, हाल ही काँग्रेस से जदयू में आए, दलित नेता एमएलसी अशोक चौधरी को घटनास्थल पर भेजा गया। पटना लौटकर अशोक चौधरी ने प्रेस वार्ता में इस घटना के पीछे यादवों और राजद की दलित विरोधी मानसिकता को जिम्मेवार ठहराया। इसके बाद बयानों और घटनास्थल के दौरों की होड़ लग गई। सत्ता पक्ष से जुड़े हर नेता के बयान का लब्बोलुआब यही रहा कि राज्य सरकार राजद की दलित विरोधी साजिशों को सफल नहीं होने देगी और अग्निकांड के दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार व विपक्ष के नेता तेजस्वी प्रसाद यादव

इस घटना से संबंधित तीन एफआईआर राघोपुर थाने में दर्ज हुई है। घटना वाले दिन 28 मई को घटनास्थल पर तैनात एएसआई सुधीर कुमार यादव की लिखित रिपोर्ट पर एफआईआर संख्या 40/18 दर्ज की गई है। सुधीर यादव की रिपोर्ट के अनुसार थाने में उसी दिन दोपहर 12.30 बजे सिकिल राय, पिता मुन्नीलाल राय ने सूचना दी कि खाता 46, खेसरा 239 की उनकी पुश्तैनी जमीन पर जिसपर विवाद है, रामेश्वर भगत ईंट का मकान बनवा रहे हैं, उन्हें रोका जाए। इसपर उन्हें पुलिस बल के साथ घटनास्थल भेजा गया। घटनास्थल पर जाकर इन्होंने जब निर्माण रोकने के लिए मना किया तो रामेश्वर भगत पिता स्व. दिलचंन भगत समेत 30-35 लोगों ने उनके साथ गाली-गलौच शुरू कर दी और ईंट-पत्थर से पुलिस बल पर जानलेवा हमला कर दिया। रिपोर्ट में एएसआई ने घटना में 18 लोगों को नामजद किया और 15 से ज्यादा अन्य लोगों के भी हमलावर होने की बात लिखी है। एएसआई ने पुलिस बल को मामूली चोट आने और पुलिस की गाड़ी को भी क्षतिग्रस्त करने की बात लिखी है।

अब जरा दूसरे और तीसरे एफआईआर पर आवें। यह दोनों एफआईआर यादवों और दलितों की अगले दिन यानी 29 मई की शिकायतों के आधार पर उसी दिन दर्ज की गईं। पहली एफआईआर संख्या 41/18 यादव परिवार की महिला सुमरन देवी, पति मोतीलाल राय की शिकायत पर दर्ज की गई है। इसमें आरोप है कि बिंदेश्वर पासवान पिता रामानंद पासवान व अन्य ने 28 मई को दोपहर दो बजे उनकी तीन दुकानों पर हमला करके उन्हें, उनके बेटे और भतीजे को घायल कर दिया और लूटपाट की। उनका हत्या का इरादा दिखता था।

इसी प्रकार, इसी दिन यानी 29 मई को एफआईआर संख्या 42/18 दलितों की शिकायत पर दर्ज हुई। शिकायतकर्ता रामानंद भगत पिता बुन्नीलाल भगत ने शिकायत की कि 28 मई को दोपहर लगभग तीन बजे लगभग 500 लोग हथियार और पेट्रोल लेकर मेरे दरवाजे पर आए, जातिसूचक गालियां दीं, मारपीट और लूटपाट की, हमारे घरों और दुकानों में आग लगा दी और देशी कट्टे से फायर करते हुए भाग गए। इस शिकायत में सिकिल राय पिता मुनिलाल राय समेत 15 लोगों को नामजद किया गया है और अन्य लगभग 500 लोग अज्ञात बताए गए हैं। इस घटना में पांच दलितों के गंभीर होने की शिकायत की गई है जिनके प्राथमिक उपचार के बाद बेहतर इलाज के लिए पटना के एनएमसीएच में भर्ती होने की जानकारी दी गई है और पुलिस से सभी घायलों के बयान लेने का निवेदन किया गया है।

बिहार के वैशाली जिले के राघोपुर इलाके में आगजनी का एक दृश्य

उपरोक्त तीनों एफआईआर सबसे पहले राघोपुर पुलिस को कठघरे में खड़ा करते हैं। क्या मामूली चोटग्रस्त पुलिस वालों की मेडिकल जांच कराई गई? क्या क्षतिग्रस्त पुलिस वाहन के नुकसान की कोई रिपोर्ट बनी? इनके अलावा, एएसआई की रिपोर्ट के अनुसार साढ़े 12 बजे आई शिकायत के बाद वे घटनास्थल पर गए तो यह समय दो से तीन बजे के बीच का ही रहा होगा। साथ ही, दलितों और यादवों की शिकायत के अनुसार अग्निकांड और लूटपाट का भी वही समय होना चाहिए। फिर एएसआई की शिकायत में दोनों में से किसी भी घटना का जिक्र क्यों नहीं है? सबसे आश्चर्य की बात है कि दलितों और यादवों की शिकायत में भी उनकी शिकायत के अलावा अन्य किसी घटना का कोई जिक्र नहीं है। जबकि वस्तुस्थिति यह है कि अग्निकांड और लूटपाट की घटनाएं होने के भौतिक सबूत दिखते हैं तथा घटना के समय में पुलिस टीम के घटनस्थल पर होने का भी समय बनता है।

इस घटना के आलोक में राजद और तेजस्वी पर हमलावर होते हुए सत्ता पक्ष के कई लोगों ने बेहिचक कहा है कि राघोपुर में हर पद पर यादवों को रखा गया है। मगर अब तो महागठबंधन की सरकार है नहीं और राजद तो सत्ता से बाहर मुख्य विपक्षी पार्टी है। फिर यह सोचने की बात है कि पुलिस-प्रशासन में अधिकारियों या अन्य कर्मियों की तैनाती सरकार और उसकी इकाइयों के काम है। इसमें विपक्षी पार्टी क्या कर सकती है? क्या इस तरह की बात इस बात का संकेत नहीं है कि सुशासन बाबू के राज में चीजें रामभरोसे चल रही हैं? पूरे मामले पर नज़र डालने से प्रथम दृष्टि में ही घटनास्थल पर गए एएसआई सुधीर कुमार यादव की गतिविधियां संदिग्ध लगती हैं। उसपर अबतक कोई कार्रवाई क्यों नहीं हुई?

इस बीच चौतरफा दवाब में पुलिस ने शनिवार को 11 लोगों को हिरासत में लिया, मगर थाने में उनसे बॉण्ड भरवाकर उन्हें जमानत दे दी गई। इसी दिन, दोपहर बाद तिरहुत रेंज के डीआईजी अनिल कुमार सिंह ने भी घटनास्थल का दौरा किया और सभी पक्षों से बात की। उन्हें जब लोगों के हिरासत में लिए जाने और फिर बॉण्ड भरवाकर छोड़ देने की जानकारी मिली तब उन्होंने सभी आरोपियों के बेल बॉण्ड कैंसिल कर दिए। अब फिर से सबकी गिरफ्तारी के लिए पुलिस छापेमारी कर रही है।

इस पूरे प्रकरण में राजद नेता तेजस्वी यादव का स्टैंड असामान्य है। जोकीहाट विधानसभा उपचुनाव में व्यस्त रहे तेजस्वी 31 मई को आए परिणाम में पार्टी की जीत की खुशी मनाने में लगे रहे। दूसरी ओर, राघोपुर को लेकर उनकी व उनकी पार्टी की जबरदस्त खिंचाई होती रही। बिहार के उपमुख्यमंत्री और बीजेपी नेता सुशील कुमार मोदी ने तो यहां तक कहा है कि इस पूरी घटना में शामिल दबंग आरजेडी से जुड़े हुए हैं और इन्हें आरजेडी नेता तेजस्वी यादव का संरक्षण प्राप्त है। इसी प्रकार, बिहार के कृषि मंत्री और भाजपा नेता प्रेम कुमार ने कहा है कि तेजस्वी यादव को पीड़ित लोगों के आंसू पोंछने के लिए जाना चाहिए था। सिर्फ महादलित पर राजनीति करने से काम नहीं चलेगा।

इस बीच जेडीयू प्रवक्ता अजय आलोक ने एक न्यूज चैनल से बातचीत में कहा कि यादवों के सशक्तिकरण का खामियाजा दलितों को भुगतना पड़ता है। अन्य जातियां भी इनसे भयभीत होती हैं। अजय आलोक का बयान कुछ और भी संकेत कर रही है। इस बयान में केवल राघोपुर की घटना के लिए राजद या तेजस्वी को जिम्मेवार बताने की बात नहीं हो रही, बल्कि ऐसी घटनाओं और राजद के विरोध के बहाने पूरी यादव जाति को अलग-थलग करने की बू भी आ रही है।

 

(कॉपी एडिटर : नवल)


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लेखक के बारे में

अनिल गुप्त

वरिष्ठ पत्रकार अनिल गुप्ता दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण और राजस्थान पत्रिका के विभिन्न संस्करणों में महत्वपूर्ण पदों पर रहे हैं। वे इन दिनों बिहार की राजधानी पटना में रहकर स्वतंत्र पत्रकारिता कर रहे हैं

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