समाचार पत्र इकोनॉमिक टाइम्स व अन्य वेब पोर्टलों पर 27 जुलाई 2018 को प्रकाशित एक खबर में कहा गया था कि “केंद्र सरकार अब एससी/एसटी एक्ट के तहत अप्राकृतिक यौन अत्याचार के पीड़ितों को भी मुआवजा देगी। पूर्व में अप्राकृतिक यौन अत्याचार को इस श्रेणी में शामिल ही नहीं किया गया था।” लेकिन केंद्रीय सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्री थावर चंद गहलोत ने अाज इस खबर का खंडन करते हुए कहा कि सरकार ने ऐसा कोई फैसला नहीं लिया है।

जबकि इकोनॉमिक टाइम्स में प्रकाशित खबर के अनुसार देश में दलितों और आदिवासियों के खिलाफ बढ़ती हिंसा को देखते हुए केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने अब कुछ ऐसी व्यवस्था की है जिसके द्वारा दलित और आदिवासी अब अपने खिलाफ अप्राकृतिक यौन अत्याचार की स्थिति में राज्य से मुआवजे की मांग कर सकते हैं। यह कदम महत्त्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि एससी/एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम को कमजोर किये जाने को लेकर एक पुनर्विचार याचिका सुप्रीम कोर्ट के विचाराधीन है।
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अभी तक की स्थिति यह है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के खिलाफ अत्याचारों और हिंसा को रोकने के लिए बने क़ानून में यौन हिंसा में सिर्फ बलात्कार और सामूहिक बलात्कार को ही शामिल किया गया है। सरकार ने अब इस अधिनियम के संशोधन के तहत एससी और एसटी के खिलाफ यौन हिंसा की परिभाषा को विस्तृत किया है। अब इससे “बलात्कार, अप्राकृतिक यौन अत्याचार और सामूहिक बलात्कार” बताया गया है।
अखबार में छपी खबर में केंद्रीय सामजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी को उद्धृत करते हुए कहा गया है कि “चूंकि अपराधों का विशेष रूप से उल्लेख नहीं किया गया था, इन अपराधों के पीड़ित दलित एससी/एसटी अधिनियम के तहत मुआवजे का दावा नहीं कर सकते थे। अब इस संशोधन के बाद इस समुदाय के गरीब से गरीब लोगों के लिए यह एक अतिरिक्त मदद की तरह होगी।”
इस संशोधन के माध्यम से एक और कदम उठाया गया है जो एसिड हमले के पीड़ितों को सुरक्षा प्रदान करने से जुड़ा है। अभी तक नियम के हिसाब से एसिड हमले को “स्वैच्छिक रूप से एसिड फेंकना या फेंकने की कोशिश करना” माना जाता था। इसमें कहीं से भी गंभीर असर का जिक्र नहीं था जिसे संशोधन के द्वारा अब ज्यादा स्पष्ट कर दिया गया है।
बहरहाल इस मामले में फारवर्ड प्रेस से बातचीत में विभागीय मंत्री थावरचंद गहलोत ने कहा, “एससी/एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम, 1995 के तहत सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्रालय द्वारा जो अपराध शामिल किये गये थे, उन अपराधों के मामलों में मुआवजा दिये जाने का प्रावधान है। इस मामले में हम कोई बदलाव नहीं करने जा रहे हैं।”
(लिप्यांतर : प्रेम बरेलवी, कॉपी-संपादन : अशोक झा)
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