इस आलेख के साथ लगे पहले चार्ट पर एक नजर दौड़ाएं। वहां नेशनल लॉ कालेज में ओबीसी के सीट खाने में ऑल इंडिया और राज्य की सीटों पर नजर दौड़ाएं। जी हां, उसमें दोनों खानों में शून्य-शून्य हैं। यानी कोई सीट नहीं। ओबीसी के सीटों में तमाम खाली खाने एक की कहानी नहीं, दो दर्जन नेशनल लॉ कालेजों का तकरीबन यही आईना है। ये सभी बताने के लिए काफी हैं कि किस तरह से कानूनों को देश के उच्च शिक्षण संस्थानों ने ठेंगा बता दिया गया है। अपने-अपने विधि विधान हैं। विश्वविद्यालय का अपना एक्ट है, राज्यों का अपना एक्ट है। उनमें समानता नाम की कोई चीज है तो वो ये कि उनमें ओबीसी के लिए दरवाजे बंद हैं।

चार्ट 1 : ओबीसी के खाते में शून्य
बताते चलें कि नेशनल लॉ यूनिवर्सिटीज यूजीसी की गाइड लाइन्स से नहीं चलते हैं और आरक्षण के मामले में ज्यादातर स्टेट लॉ और अपने बनाए प्रावधानों से चलते हैं।
इस बारे में हमने मशहूर कानूनविद् और नलसार नेशनल लॉ कालेज के वीसी फैजान मुस्तफा से सवाल किया। हालांकि उनके विश्वविद्यालय में भी ओबीसी के लिए सीटें नहीं है। उनका कहना है कि असल दिक्कत ये है जहां एक्ट है ही नहीं वो किस बिना पर एडमिशन दें। दूसरा आप तेलंगाना का उदाहरण देखें तो वहां डोमेशाइल रिजर्वेशन है। बाहरी राज्यों के लोग चाहे तो वे ओबीसी हो अन्य, एक ही प्रोसेस से आएंगे। डोमेसाइल रिजर्वेशन खत्म कर दें, स्टेट एक्ट में रखे कोटा को खत्म कर दें तो हर यूनिवर्सिटी ओबीसी के लिए दरवाजे खोल देगी। लेकिन कई राज्यों में ओबीसी के लिए आरक्षण है मसलन बिहार और यूपी में।
जबकि जोधपुर नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के प्रशासनिक अधिकारी सुनील ने बताया कि उनके यहां प्रारंभ से ही दाखिलों में ओबीसी के लिए कोई प्रावधान नहीं है।
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वहीं छात्रों का कहना है कि देश के तमाम नेशनल लॉ कालेजों के तुगलकी मैनेजमेंट एक जैसी सोच के ग्रसित हैं क्योंकि वह आने वाले समय के लिए ऐसा कुछ नहीं चाहते कि पिछड़ों की ओर से भी कोई देश की सर्वोंच्च न्यायिक संस्था में जाए और दबे-कुचले और वंचित समाज की लिए लड़ सके। लॉ पढ़ने का इच्छुक ओबीसी कहां जाए, ये पूछने वाला कोई नहीं। कानून सिखाने वाला उच्च शिक्षा में सब कुछ ठीकठाक नहीं है। सामाजिक बराबरी और सामाजिक न्याय के खाली कनस्तर के ढोल ने शोर तो बहुत किया लेकिन हुआ कुछ नहीं।
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समस्तीपुर के राजीव कुमार ने हमें व्यथा भेजी है। वह लॉ पढ़ना चाहते थे लेकिन हताश हैं। उन्होंने कहा है कि प्रतिष्ठित नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी कानून तथा संविधान के बारे में पढ़ने का अच्छा हुनर देते हैं। यहां अव्वल दर्जे की रिसर्च कराई जाती है। वह कहते हैं, मंडल कमीशन के लागू होने के 25 साल बाद भी न्यायिक संवैधानिक और कानून के लिए प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों में ओबीसी छात्रों को दाखिलों में को आरक्षण नहीं मिल रहा है। जबकि 2006 और 2011 के भारत सरकार व विभिन्न राज्य सरकारों के सरकारी आदेशों के अनुसार केंद्र सरकार तथा विभिन्न राज्य सरकारों के द्वारा संचालित शैक्षणिक संस्थानों में ओबीसी को 27% आरक्षण लागू किया गया। लेकिन इस आरक्षण के लागू होने के बाद भी कानून और संविधान के क्षेत्र में देश के प्रतिष्ठित सरकारी नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी में ओबीसी आरक्षण का नहीं होना ओबीसी के खिलाफ बड़े षड़यंत्र की ओर इशारा करता है।

चार्ट संख्या 2 : विभिन्न विधि विश्वविद्यालयों का हाल
अगड़ों की शान हैं नेशनल लॉ यूनिवर्सिटीज
भोपाल नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के छात्र राजपाल सिंह ने कहा कि देश की लॉ यूनिवर्सिटीज की काफी प्रतिष्ठा है इसलिए हर वर्ग का छात्र यहां दाखिले की होड़ में रहता है। जाहिर है अगड़े बाजी मार ले जाते हैं। मध्यप्रदेश में 23 साल के युवक आराध्य ने क्लैट की परीक्षा दी और बेंगलुरू में चले गए। परीक्षा में उनको 9वां स्थान मिला और दिल्ली व एमपी में टॉप पर रहे। नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी बेंगलुरू से एलएलबी की। इस दौरान शोध के लिए उनको बुलावा आया। उन्होंने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में आधार की संवैधानिक वैधता पर शोध किया। साउथ कोरिया, मलेशिया, बुडापेस्ट, अमेरिका, पेरिस भी शोध के लिए गए। वहां ‘युद्ध और संविधान सहित नई तकनीकों का संविधान पर प्रभाव’ पर शोध किया। इन्होंने जस्टिस चंद्रचूड़, रवींद्र भट्ट, अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी, रामजेठमलानी के साथ काम किया। एलएलबी के आखिरी साल में ही उसे अचीवमेंट के चलते येल, ऑक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से स्कॉलरशिप के साथ पढ़ने के प्रस्ताव आए। येल यूनिवर्सिटी व इनलेक्स फाउंडेशन ने एलएलएम करने के लिए 65 लाख की फैलोशिप दी। यहां संवैधानिक विषयों पर शोध किया। इसमें देश की नीतियों के पीछे क्या संवैधानिक मुद्दे होते हैं, कैसे संविधान नीतियों को बदलता है पर शोध किया। अब येल यूनिवर्सिटी ने 30 लाख की फॉक्स इंटरनेशनल फैलोशिप दी है। आराध्य की चर्चा पूरा देश कर रहा है। हालांकि राजपाल का कहना है कि सफलता का यह उदाहरण विरल है।
ओबीसी के लिए रास्ते बंद
बहरहाल ये सपना एक अगड़े जाति के, संपन्न परिवार के छात्र ने देखा। पूरा हो रहा है, और भी पूरे होंगे। वह देश के अमीरों के लिए लड़ेगा। लेकिन समस्तीपुर का राजीव कुमार कैसे अपने सपने को पूरा कर सकता है। उनका दावा है कि 22 नेशनल लॉ यूनिवर्सिटीज में 9 में ओबीसी रिजर्वेशन को लागू नहीं किया गया है। चार अन्य नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी में यह पाया गया कि राज्य कोटा में तो आरक्षण है ओबीसी के लिए लेकिन ऑल इंडिया कोटा में कोई रिजर्वेशन ओबीसी के लिए नहीं है। जहां-जहां मंडलवादी राजनैतिक दलों की सरकार रही है वहां ओबीसी आरक्षण पूर्ण रुप से लागू है और जहां-जहां गैर मंडलवादी कांग्रेस भाजपा की सरकार रही है वहां ओबीसी आरक्षण के साथ बड़ा खिलवाड़ किया गया है।
लेकिन अपवाद के तौर पर राजीव बताते हैं कि चाणक्य नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी पटना तथा डॉ. राम मनोहर लोहिया नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी लखनऊ और कोच्चि नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी केरल इन जगहों पर ओबीसी को संवैधानिक तौर पर आरक्षण दिया जा रहा है। राजीव कहते हैं कि सवाल उठता है कि जब देश में पिछड़े वर्ग ओबीसी प्रधानमंत्री हैं और दलित राष्ट्रपति हैं तो भी ओबीसी को राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय में दाखिले में आरक्षण क्यों नहीं है।

राजीव कुमार, ओबीसी छात्र
वह कहते हैं, जब ओबीसी के छात्र सर्वश्रेष्ठ नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी में प्रवेश ही नहीं लेंगे और अच्छे वकील ही नहीं बनेगे तो हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक नहीं पहुंच सकते। हमारे लिए भविष्य में सामाजिक न्याय के लिए लड़ने का भी हथियार छीना जा रहा है।
मिसाल के तौर पर दिल्ली के नेशनल लॉ कालेज को देखते हैं। यहां कुल 80 सीटें हैं। ऑल इंडिया लॉ एंट्रेंस टेस्ट (एआईईएलटी) के माध्यम से योग्यता में 70 सीटें हैं जबकि विदेशी नागरिकों को (योग्यता के आधार पर) सीधे प्रवेश के लिए 10 सीटें रखी गई हैं। विदेशी राष्ट्रों को एआईईएलटी से छूट दी गई है। यहां अनुसूचित जाति के लिए 15%, अनुसूचित जनजाति के लिए 7.5% और विकलांग व्यक्तियों के लिए 3% के अलावा कश्मीरी प्रवासियों के लिए एक अतिरिक्त सीट का प्रावधान है। इस तरह के प्रावधान ज्यादातर विश्वविद्यालयों ने बनाए हैं लेकिन ओबीसी के लिए कोई प्रावधान नहीं किया गया है।

चार्ट संख्या 3 व 4 : आंकड़े बताते हैं ओबीसी का हाल
सुप्रीम कोर्ट के वकील पवन कुमार का कहना है कि आप ओबीसी श्रेणी किसी पर थोप तो नहीं सकते लेकिन राष्ट्र और संविधान की भावना के अनुरूप ओबीसी को दाखिला देना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील सत्य गौतम कहते हैं अगर किसी भी उच्च शिक्षण संस्थान में अन्याय है तो और ओबीसी के साथ ऐसा है तो उनके प्रतिनिधिमंडल को मानव संसाधान मंत्रालय को मिलना चाहिए ताकि भविष्य में रास्ता बन सके।
(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)
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the statement of the OBC student Rajiv kumar that in spite of the OBC Primer Minster and Dalit President in India still the reservation of OBC is not fulfilled. Mr Rajiv, first of all you should be known clearly Mr.Modi is not OBC AND President is not Dalit they are the byproduct of RSS. Any byproduct of RSS will never think of the OBC OR Dalits. they will work on the tune of the Owner and also mislead the dalits. So beware of all the stooges of the RSS. Try hard you will get your place, Our Savious and Saint taught us like that.