“हमारी जातियों के बारे में कहा जाता है कि कुछ लड़ने के लिए हैं, कुछ हथियार बनाने के लिए, कुछ भेड़ें चराने के लिए, कुछ ज़मीन पर हल चलाने के और कुछ बाग़-बग़ीचे लगाने के लिए। लेकिन सब बेतुक़ी बातें हैं, हर जाति के अपने सैनिक-सूरमा, चरवाहे, लुहार और बागवान हैं। हर किसी के अपने हीरो गायक और कुशल कारीगर हैं…। कुछ जातियों के लोगों के बारे में कहा जाता है कि वे चंचल स्वभाव के हैं, कुछ के बारे में कि वह बुद्दू-से हैं, कुछ के बारे में यह कि चोरटे (उठाईगीर, चोर) हैं, कुछ के बारे में कि धोखेबाज़ हैं। संभवता यह सब निंदा-चुगली हैं।” (मेरा दाग़िस्तान, रसूल हमज़ातोव)
सियासत की अलग जात वाले भी जाति के झगड़े में फंस गए
हरियाणा, दिल्ली और हिंदी-पंजाबी मिश्रित ज़ुबान में किसी श्रेणी या क़िस्म को जात कहा जाता है। मसलन, बहादुरी दिखाने वाले पुरुष को कहा जाता है– ‘इसे कहते हैं असल मर्द जात!’ आम आदमी पार्टी के नेता बेशक सियासत में इसी तरह की ‘ताकतवर’ जात के होंगे लेकिन उऩकी पार्टी तमाम राजनीतिक दलों में एक अलग जात की मानी जाए, इसमें शक़ पैदा करने की उनकी ही पार्टी ने गुंजाइश पैदा की है। दिल्ली में उनके संगठन और चुनावी रणनीति में जातिवाद किस तरह तारी रहता है, इसका एक पता तब लगा, जब केजरीवाल के दिल के बहुत क़रीबी रहे आशुतोष ने पार्टी के बाहर होने के 15 दिन के ही भीतर कह दिया कि उनको अपने नाम के साथ जाति लिखने के लिए विवश किया गया था। ज़ाहिर है, इस मायने में आम आदमी पार्टी दूसरे दलों की तरह ही जाति और बिरादरीवाद पर आकर टिक गई लगती है जबकि केजरीवाल की राजनीतिक छवि अमूमन साफ-सुथरी मानी जाती है।
लेकिन केजरीवाल से अलग हुए आशुतोष ने कहा कि सन् 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान अरविंद केजरीवाल ने उन पर अपने नाम के साथ अपना ‘उपनाम’ (जो आमतौर पर जाति को ही इंगित करता है) लगाने का दबाव बनाया था। आशुतोष पत्रकारिता छोड़कर अरविंद केजरीवाल के साथ गए थे। मीडिया में उनके इस कथन को अरविंद केजरीवाल पर हमले के तौर पर देखा गया तो जहां-तहां ख़बरें देखकर आशुतोष काफी ख़फ़ा हुए।
इस बारे में हमने दिल्ली में आम आदमी पार्टी के संयोजक और सरकार में मंत्री गोपाल राय से पूछा तो उन्होंने कहा, ‘किसी को भी अपना उपनाम कैसे रखना है, यह हर एक का जातीय (व्यक्तिगत) मामला है। पार्टी की राजनीतिक मामलों की समिति किसी भी तरह से अपने नेताओं या कार्यकर्ताओँ के नाम या उपनाम को लेकर विचार नहीं करती।‘
आशुतोष ने क्या ट्वीट किया
आशुतोष ने ट्वीट कर कहा कि वे आम आदमी पार्टी के विरोधी ब्रिगेड के सदस्य नहीं हैं। ‘टीवी हॉक्स ने मेरे ट्वीट को ग़लत मतलब निकाला। अब मैं आम आदमी पार्टी में नहीं हूं, ना ही पार्टी के अनुशासन से बंधा हूं। मैं अपने विचार व्यक्त करने के लिए स्वतंत्र हूं। मेरे शब्दों को ‘आप’ पर हमला कहना सही नहीं है। इसे मीडिया की आज़ादी का घालमेल ही कहेंगे। मुझे माफ़ करें। मैं ‘एंटी आप ब्रिगेड’ का सदस्य नहीं हूं।
In 23 years of my journalism, no one asked my caste, surname. Was known by my name. But as I was introduced to party workers as LOKSABHA candidate in 2014 my surname was promptly mentioned despite my protest. Later I was told – सर आप जीतोगे कैसे, आपकी जाति के यहाँ काफी वोट हैं ।
— ashutosh (@ashutosh83B) August 29, 2018
इससे पहले आशुतोष ने ट्वीट कर कहा था, ‘23 साल के मेरे पत्रकारिता कैरिअर में किसी ने मुझसे सरनेम नहीं पूछा। मैं अपने नाम से जाना जाता था। लेकिन, वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में जब पार्टी कार्यकर्ताओं से मेरा परिचय कराया गया तो आपत्ति के बावजूद मेरे सरनेम को प्रमुखता से बताया गया। बाद में मुझसे कहा गया: सर आप जीतोगे कैसे, आपकी जाति के यहां काफी वोट हैं।’ आम आदमी पार्टी ने 2014 के चुनाव में उन्हें चांदनी चौक से बतौर प्रत्याशी मैदान में उतारा था। उन्हें यह सब पार्टी की वोटबैंक और कास्ट की पॉलिटिक्स बताया गया।
इसके बाद आशुतोष ने बीजेपी को भी आड़े हाथों लिया और ट्वीट किया, “पता चला है कि मेरे ट्वीट पर बीजेपी प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रही है। अच्छी बात है। बीजेपी को गंगा मइया (गंगाजल हाथ में लेकर कसम खानी चाहिए की मानिंद…) में खड़ा होकर, गौ माता को छूकर कहना चाहिये कि वो जाति के आधार पर न तो टिकट देती है और न ही वोट मांगती है। असली ‘हिंदू‘ होंगे तो यह जरूर करेंगे।”
पता चला है कि बीजेपी मेरे ट्वीट पर प्रेसर कर रही है । अच्छा है । बीजेपी को गंगा मइयाँ में खड़ा खोकर कहना चाहिये/ गौ माता को छू कर कहना चाहिये कि वो जाति के आधार पर न तो टिकट देती है और न ही वोट माँगती है । असली “हिंदू” होंगे तो ये ज़रूर कहेंगे ।
— ashutosh (@ashutosh83B) August 29, 2018
यह वाक़ई में एक तर्कसंगत और सामयिक ट्वीट है जिसे एक पत्रकार रहा शख़्स ही सटीक तरीके से व्यक्त कर सकता था। ख़ैर, बताते चलें कि निजी कारणों का हवाला देते हुए इसी साल 15 अगस्त को आशुतोष ने पार्टी से इस्तीफ़ा दे दिया था।
विरोधियों के सुर
भोजपुरी गायक और बिग बॉस नाम के टीवी सीरियल से प्रसिद्धि पाकर बीजेपी में गए मनोज तिवारी (वह पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भी हैं) ने कहा कि आम आदमी पार्टी कभी दिल्ली में सिखों, कभी मुसलमानों तो कभी ईसाइयों की धार्मिक भावनाओं को भड़काने का खेल खेलती रही है। दिल्ली में ईसाई चर्चों की बेअदबी, पंजाब में गुरु ग्रंथ साहिब का अपमान और बवाना उपचुनाव में मुस्लिम ध्रुवीकरण की अपील करने में आप नेताओं की भूमिका सामने आती रही है। उन्होंने कहा केजरीवाल अब दलदल में धंसते नजर आ रहे हैं। उनमें वैकल्पिक राजनीति की उम्मीद देख रहे लोगों का विश्वास डगमगाने लगा है। तकरीबन तीन साल बाद केजरीवाल की नायक वाली छवि काफी धूमिल हो चुकी है।
जातिवाद की हवा
लेकिन देखा जाए तो विरोधियों को आम आदमी पार्टी ने खुद मौका दिया है। इसमें असली किस्सा शुरू हुआ जब आशुतोष के ट्वीट से 24 घंटे पहले पूर्वी दिल्ली क्षेत्र की आम आदमी पार्टी नेता आतिशी मर्लेना ने अपने नाम के आखिरी हिस्से (मर्लेना) को हटा दिया। कहा गया कि पार्टी ने उनसे ऐसा करने को कहा है, क्योंकि उनके नाम में मार्लेना शब्द होने से उनके ईसाई होने का भान होता है। इस पर विवाद खड़ा होने के बाद पार्टी ने इन आरोपों को खारिज करते हुए सफाई दी कि आतिशी को किसी ने भी नाम के अंतिम हिस्से को हटाने के लिए नहीं कहा है। वह हमेशा से आतिशी रही हैं और उनका उपनाम ‘सिंह’ रहा है। मर्लेना बाद में रखा गया नाम है।
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आतिशी ने एक समय रूसी क्रांति के नायकों (कार्ल) मार्क्स और (वाल्दीमीर) लेनिन के नाम और काम से प्रभावित होकर दोनों को मिलाकर मर्लेना उपनाम बनाया था, लेकिन जाति की सियासत में क्रांतिकारी नाम किसी काम कब आए हैं?
केजरीवाल की जाति राजनीति
दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल हरियाणा की बनिया जाति से हैं। उनके प्रमुख सहयोगी और उपमुख्यमंत्री मनीष सिसौसिया राजपूत हैं। गोपाल राय भूमिहार ब्राह्मण हैं। कैलाश गहलौत और राजेंद्र पाल गौतम दिल्ली कैबिनेट में दलित पिछड़ों के चेहरे हैं। इमरान हुसैन और सत्येंद्र जैन के पास भी प्रमुख पद हैं। सोमनाथ भारती बिहार के एससी समुदाय से हैं। लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या राज्यसभा के लिए जिन दो ‘गुप्ताओं’ को केजरीवाल ने लिया था, वह हरियाणा को साधने की कोशिश थी? वह खुद हरियाणा से हैं और उन्होंने खुलेआम कहा था कि बीजेपी के पास एक मोदी है, मेरे पास दो गुप्ता हैं। कहा जाता है कि नवीन जयहिंद को जब हरियाणा का सर्वेसर्वा बनाया गया तो केजरीवाल ने कहा ‘पंडित’ नवीन जयहिंद आम आदमी पार्टी को एक नई ऊंचाई पर ले जाएंगे और आम आदमी पार्टी के वही सीएम चेहरा भी हैं। जाहिर है, बनिया-बामण का यों अलग-अलग उल्लेख कर केजरीवाल ने जाति का कार्ड खेला ?
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हालांकि दिल्ली के विधानसभा में जीते प्रत्याशियों को देखें तो वहां केजरीवाल ने कोई जाति कार्ड नहीं खेला था क्योंकि तब उनका लोगों के साथ मिलकर किए गए संघर्ष की ही काफी थे। दिल्ली के विधायकों की जातिवार स्थिति देखते हैं।
‘आप’ विधायकों की सामाजिक पृष्ठभूमि
(यह आधिकारिक जाति संबंधी सूची नहीं है, बल्कि उपनाम से उजागर होने वाली सामान्य धारणाओं या स्रोतों से मिली जानकारियों पर आधारित है। ‘वैश्य ’ आदि के मामलों में सिर्फ सामाजिक समूह का पता लग सका है। कई जातियों के मामले में संवैधानिक श्रेणी- एससी अथवा ओबीसी का पता भी हम नहीं लगा पाए हैं)
नाम | विधान सभा क्षेत्र | सामाजिक पृष्ठभूमि |
---|---|---|
विशेष रवि | करोल बाग | अनुसूचित जाति |
हजारी लाल चौहान | पटेल नगर | खटिक, अनुसूचित जाति |
शिव चरण गोयल | मोती नगर | वैश्य |
सुरेंद्र सिंह | दिल्ली कैंट | जाट |
विजेंदर गर्ग विजय | राजेंद्र नगर | वैश्य |
मदन लाल | कस्तूरबा नगर | गुज्जर |
प्रमिला | आरके पुरम | जाट |
सौरभ भारद्वाज | ग्रेटर कैलाश | ब्राह्मण |
पवन कुमार शर्मा | आदर्श नगर | ब्राह्मण |
बन्दना कुमारी | शालीमार बाग | अनुसूचित जाति |
सत्येंद्र जैन | शकुर बस्ती | वैश्य |
जितेंद्र सिंह तोमर | त्रिनगर | जाट |
राजेश गुप्ता | वजीरपुर | बनिया |
अखिलेश त्रिपाठी | मॉडल टाउन | ब्राह्मण |
सोम दत्त शर्मा | सदर बाजार | ब्राह्मण |
अलका लांबा | चांदनी चौक | पंजाबी ओबीसी |
असिम अहमद खान | मटिया महल | मुस्लिम |
इमरान हुसैन | बल्लीमारान | मुस्लिम |
कर्नल देवेंद्र सहरावत | बिजवासन | जाट |
भावना गौड़ | पालम | ब्राह्मण |
नरेश यादव | महरौली | अहीर |
केएस तनवर | छतरपुर | गुर्जर |
प्रकाश झारवाल | देवली | अनुसूचित जाति |
अजय दत्त | आंबेडकरनगर | अनुसूचित जाति |
दिनेश मोहनिया | संगम विहार | ठाकुर |
अवतार सिंह | कालकाजी | सिख |
सही राम | तुगलकाबाद | गुर्जर |
नारायण दत्त शर्मा | बदरपुर | ब्राह्मण |
गिरीश सोनी | मादीपुर | अनुसूचित जाति |
जर्नल सिंह | राजौरी गार्डन | सिख-खलासा समर्थक |
जगदीप सिंह | हरि नगर | सिख खत्री |
जरनैल सिंह | तिलक नगर | सिख खत्री |
राजेश ऋषि | जनकपुरी | अन्य पिछडा वर्ग |
महिंदर यादव | विकासपुरी | अहीर |
नरेश बालियान | उत्तम नगर | जाट |
आदर्श शास्त्री | द्वारका | कायस्थ |
गुलाब सिंह | मटियाला | अहीर |
कैलाश गहलोत | नजफगढ़ | जाट |
प्रवीण कुमार | जंगपुरा | अनुसूचित जाति |
अमानतुल्ला खान | ओखला | मुस्लिम |
राजू ढिंगन | त्रिलोकपुरी | अनुसूचित जाति |
मनोज कुमार | कोंडली | अनुसूचित जाति |
मनीष सिसोदिया | पटपड़गंज | राजपूत |
नितिन त्यागी | लक्ष्मी नगर | ब्राह्मण |
एसके बग्गा | कृष्ण नगर | पंजाबी |
अनिल कुमार बाजपेयी | गांधी नगर | ब्राह्मण |
राम निवास गोयल | शाहदरा | वैश्य |
संजीव झा | बुराड़ी | ब्राह्मण |
पंकज पुष्कर | तिमारपुर | ब्राह्मण |
राजेंद्र पाल गौतम | सीमापुरी | अनुसूचित जाति |
सरिता सिंह | रोहतस नगर | अनुसूचित जाति |
मोहम्मद इस्हरक | सीलमपुर | मुस्लिम |
श्रीदत्त शर्मा | घोंडा | ब्राह्मण |
फतेह सिंह | गोकलपुर | अनुसूचित जाति |
कपिल मिश्रा | करावल नगर | ब्राह्मण |
शरद कुमार | नरेला | अनुसूचित जाति |
अजेश यादव | बादली | अहीर |
मोहिंदर गोयल | रिठाला | वैश्य |
वेद प्रकाश | बवाना | अनुसूचित जाति |
सुखवीर सिंह | मुंडका | जाट |
रितुराज गोविंद | किरारी | ब्राह्मण |
संदीप कुमार | सुलतानपुर माजरा | अनुसूचित जाति |
रघुविंदर शोकेन | नांगलोई जट | जाट |
राखी बिड़लान | मंगोलपुरी | अनुसूचित जाति |
जाति भी एक फैक्टर है, लेकिन एकमात्र नहीं
आम आदमी पार्टी के विधायकों की सूची यह बताने के लिए काफी है कि दिल्ली में केजरीवाल और उनके साथी लोगों के बीच अपनी पार्टी बनाने से पहले जिस तरह से जनसंघर्षों के साथ थे, उसी तरह रहें तो उनको जाति का ना तो कार्ड खेलने की दरकार है और ना ही उस पर किसी तरह सफाई देने की। आने वाले चुनावों में उनके दोनों हाथों में लड्डू होंगे अगर वह इस सच्चाई को समझने को तैयार हों। आखिर, धर्म और जाति की राजनीति से खुद को दूर रखने का दावा करने वाली सबसे नई सियासी जमात आम आदमी पार्टी ही है जो लोकप्रिय हुई और जो जनमानस को पढ़ सकी थी।
चुनावी-गणित के जोड़-भाग करने वाले जानकारों के मुताबिक 2013 से पहले दिल्ली में पंजाबी खत्री और वैश्य समुदाय का समर्थन बीजेपी को मिलता था जबकि ओबीसी और दलितों में कांग्रेस की पकड़ मज़बूत थी। लेकिन 2013 में दिल्ली की राजनीति में आम आदमी पार्टी ने आते ही पुराने जातीय समीकरणों को बदल डाला। सेंटर फॉर साइंस एंड डेवेलपिंग सोसाइटीज़ (सीएसडीएस) का आकलन है कि दिल्ली के वोटरों में ब्राह्मण वोट 12 प्रतिशत, जाट वोट 7-8 प्रतिशत, पंजाबी खत्री वोट 7 प्रतिशत, राजपूत 7 प्रतिशत, वैश्य समाज 6 प्रतिशत, जबकि दलित वोट 14 प्रतिशत हैं। राजनीतिक विश्लेषक संजय कुमार कहते हैं कि इन जातीय समुदायों का वोट चुनावों के वोटिंग पैटर्न को प्रभावित करता रहा है। उनका मानना था कि चुनावों से पहले जातीय समुदायों के रुख में बदलाव दिखेगा और हुआ भी वही। जात बिरादरी से ऊपर उठकर केजरीवाल का काफिला सबका सूपड़ा करके आगे बढ़ गया।
बहरहाल, एक पते की बात केजरीवाल के पुराने साथी भी करते रहे हैं जो आम आदमी पार्टी के नए हालात में बहुत मौजूं है। “यह सच है कि वोट पर जाति का असर पड़ता है। आप मतदाता हों या उम्मीदवार, मतदान पर आपके समुदाय का असर पड़ता है। कभी-कभार जाति के आधार पर ध्रुवीकरण इतना तीखा होता है मानो जाति के सिवाय और कुछ नहीं है। लेकिन आंकड़े बताते हैं कि जाति वोट पर असर डालने वाले कारकों में से एक है। एकमात्र क़तई नहीं है। उम्मीदवार या पार्टी विशेष के पक्ष में कभी जाति का ध्रुवीकरण होता है लेकिन आमतौर पर कोई भी एक जाति किसी एक दल या उम्मीदवार के पक्ष में 40-50 प्रतिशत से ऊपर वोट नहीं डालती। कभी-कभार ही किसी एक जाति का 60-70 प्रतिशत वोट एक पार्टी को मिलता है। हक़ीक़त यह है कि उत्तर प्रदेश और बिहार का जातीय ध्रुवीकरण भारतीय लोकतंत्र में एक अपवाद है उसका सामान्य नियम कतई नहीं है। हक़ीक़त ये है कि एक औसत मतदाता को या तो अपनी जाति का कोई उम्मीदवार मिलता ही नहीं है या अपनी जाति के एक से ज़्यादा उम्मीदवार मिलते हैं। ज़ाहिर है कि उसे जाति के अलावा किसी और चीज़ के बारे में तो सोचना ही पड़ता है।” (चुनाव के मिथक- योगेंद्र यादव)
कॉपी-संपादन : सिद्धार्थ/रंजन/राजन
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