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गोरखपुर विश्वविद्यालय में हो रही दलित-बहुजनों की हकमारी

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर विश्वविद्यालय में आरक्षित सीटों पर सामान्य कोटे के अभ्यर्थियेां की नियुक्तियों को लेकर पिछड़ा वर्ग कल्याण परिषद आवाज उठाता रहा है। इसके बारे में फारवर्ड प्रेस ने परिषद के अध्यक्ष प्रो. चंद्रभूषण गुप्ता अंकुर से बातचीत की। पढ़ें संपादित अंश :

प्रो. चंद्रभूषण गुप्ता अंकुर पिछड़ा वर्ग कल्याण परिषद के अध्यक्ष हैं। उनका संगठन गोरखपुर विश्वविद्यालय में बहुजनों के अधिकारों के लिए आवाज उठाता रहा है। इसी साल विश्वविद्यालय में हुई नियुिक्तयों में आरक्षण के प्रावधानों का उल्लंघन किये जाने के विरोध में प्रो. अंकुर के नेतृत्व में एक आंदोलन किया गया। विश्वविद्यालय प्रशासन इस आंदोलन को दबाने का भरसक प्रयास कर रहा है। हालांकि प्रो. अंकुर मानते हैं कि विश्वविद्यालय प्रशासन की मनमर्जी नहीं चलने दी जाएगी। उनका संगठन निर्भीक होकर सवाल उठाता रहेगा। फारवर्ड प्रेस उनसे बातचीत की।

आपके संगठन ने विश्वविद्यालय आरक्षित सीटों पर नियुक्तियों में धांधली के खिलाफ संघर्ष शुरू किया था। आज यह संघर्ष किस स्थिति में है?

बहुजन विरोधी मानसिकता वाले लोग किस तरह आरक्षण के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। इसका एक उदाहरण गोरखपुर विश्वविद्यालय में आरक्षित सीटों पर हुई नियुक्तियां है। सामान्य कोटे के कई अभ्यर्थियों को आरक्षित कोटे के तहत नौकरी की रेवड़ियां बांटी गई और जब इस पर सवाल उठाए गए तो जवाब देने के बजाय चुप रहने को कहा गया।

तो क्या आप और आपका संगठन चुप बैठ गया?

बिल्कुल नहीं। हम और हमारे सहयोगी लगातार इसको लेकर संघर्ष कर रहे हैं और  विश्वविद्यालय में हुई नियुक्तियों के सिलसिले में सूचना का अधिकार कानून के प्रावधानों के तहत जवाब मांग रहे हैं। लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन गैरजिम्मेदाराना रवैया अपनाए हुए है। ज्यादातर मामलों में कहा जाता है कि कुलपति के निर्देशानुसार गोपनीयता को ध्यान में रखकर जवाब देना संभव नहीं है। हमलोग इसको लेकर अगली रणनीति पर काम कर रहे हैं। हम उनके आरक्षण विरोधी क्रियाकलापों के खिलाफ आवाज उठाते रहें। उनके इस तरह के रवैए के विरोध में ही पिछड़ा वर्ग कल्याण परिषद जैसे संगठन बनाने की जरूरत पड़ी और हम लोग गंभीरता से अधिकार की लड़ाई लड़ने के लिए कृतसंकल्पित हैं।

प्रो. चंद्रभूषण गुप्ता अंकुर, अध्यक्ष, पिछड़ा वर्ग कल्याण परिषद

पिछड़ा वर्ग कल्याण परिषद के गठन के बारे में विस्तार से बताएं?

देखिए, 2016 तक हमलोग विश्वविद्यालय के एससी/एसटी इम्प्लाइज एसोसिएशन के तहत ही बहुजनों से जुड़े सवाल उठाते थे। लेकिन इसमें परेशानी यह हो गई कि यह रजिस्टर्ड बॉडी होने के कारण ओबीसी समुदाय के कर्मचारी व शिक्षक इसमें शामिल नहीं हो सकते थे। यानी सक्रिय सदस्य नहीं हो सकते थे। इसके बाद से ही अन्य पिछड़े वर्ग (ओबीसी) के लिए अलग से संगठन बनाने के बारे में सोचा जाने लगा। साल 2017 आते-आते पिछड़ा वर्ग कल्याण परिषद के नाम से अलग से एक संगठन का गठन कर लिया गया।

ओबीसी वर्ग का अपना संगठन हो, इस ख्याल के पीछे कोई खास वजह रही?

बिल्कुल। साल 2016 का ही मामला है। विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग में वरिष्ठता के आधार पर विभागाध्यक्ष की नियुक्ति होनी थी। वरिष्ठता सूची में प्रो मुकुंद शरण के बाद मेरा खुद का नम्बर था और तीसरे नम्बर पर प्रो निधि चतुर्वेदी थीं, लेकिन विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति ने हस्तक्षेप कर निधि चतुर्वेदी को विभागाध्यक्ष की जिम्मेदारी देने के आदेश दे दिए। बता दूं कि निधि चतुर्वेदी ने अपने पति प्रो हिमांशु चतुर्वेदी से ही चार्ज लिया क्योंकि वही उस समय विभागाध्यक्ष थे। इसके विरोध में जब हमलोगों ने तत्कालीन कुलपति प्रो अशोक कुमार से बात की तो उनका जवाब था कि एक ही दिन अगर आरक्षित व अनारक्षित सीटों पर नियुक्तियां होती हैं तो अनारक्षित वर्ग से आया व्यक्ति ही सीनियर माना जाएगा। यूपीएससी के नियम का हवाला देकर कुलपति ने अपना स्टैंड क्लियर कर दिया लेकिन जब उनसे कहा गया कि यूनिवर्सिटी के नियम अलग हैं और उसके मुताबिक एक ही दिन विभिन्न विभागों में अगर कई नियुक्तियां होती हैं तो जन्मदिन के हिसाब से सीनियरिटी तय होती है। लेकिन हमारी बातों व तर्को को तवज्जोह नहीं दी गई। विश्वविद्यालय के इस फैसले के बाद ही ओबीसी के लिए अलग संगठन बनाने के बारे में सोचने को मजबूर होना पड़ा।

यह भी पढ़ें : गोरखपुर विश्वविद्यालय : नियुक्ति में अनियमितता पर सवाल उठाने वाले ओबीसी शिक्षकों पर कार्रवाई

संगठन की बात से इतर एक सवाल विश्वविद्यालय के एकेडमिक माहौल पर। एक शिक्षक के तौर पर आप कैसा महसूस करते हैं?

यह कहने में हमें कोई गुरेज नहीं कि सरकार से वित्तपोषित विश्वविद्यालय व उसके तहत आने वाले कॉलेजों में ज्यादातर कमजोर वर्ग के मेधावी छात्र होते हैं क्योंकि पैसे वाले धनाढ्य परिवार वालों के बच्चे प्राइवेट नामचीन इंस्टीट्यूशन में दाखिला लेने को तवज्जो देते हैं। हम सब इस बात से वाकिफ हैं और इन बातों का ध्यान रखते हुए विश्वविद्यालय के माहौल सहित उसके रिजल्ट को बेहतर करने की कोशिश रहती है। बेहतर शिक्षण प्रदान करने की हम सबों की कोशिश रहती है ताकि हमारे छात्र वैश्विक प्रतिस्पर्धा में टिके रह सकें।
(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)


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लेखक के बारे में

कुमार समीर

कुमार समीर वरिष्ठ पत्रकार हैं। उन्होंने राष्ट्रीय सहारा समेत विभिन्न समाचार पत्रों में काम किया है तथा हिंदी दैनिक 'नेशनल दुनिया' के दिल्ली संस्करण के स्थानीय संपादक रहे हैं

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