जिस गठबंधन के सहारे भाजपा ने 2014 में प्रचंड बहुमत हासिल किया था, अब उसकी गांठें खुलती नजर आ रही हैं। आंध्र प्रदेश में तेलुगु देशम पार्टी के नेता चंद्रबाबू नायडू और बिहार में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक समता पार्टी के प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा के अलग होने के बाद अब उत्तर प्रदेश में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के प्रमुख ओमप्रकाश राजभर भी राज्य सरकार में कैबिनेट मंत्री की कुर्सी की परवाह किए बगैर भाजपा की नीति और नीयत दोनों पर सवाल उठा रहे हैं। अयोध्या में राम मंदिर के सवाल पर पहले भी वे भाजपा की नीतियों का खुलकर विरोध करते रहे हैं। वे ओबीसी के उप वर्गीकरण के पक्ष में हैं। इन सब सवालों पर ओमप्रकाश राजभर ने फारवर्ड प्रेस से विस्तृत बातचीत की। प्रस्तुत है संपादित अंश :
फारवर्ड प्रेस (एफपी) : हाल में हिंदी पट्टी राज्यों में हुई भाजपा की हार की प्रमुख वजह?
ओमप्रकाश राजभर (ओ.रा.) : देखिए, वजहें तो बहुत गिनाई जा सकती हैं, क्योंकि यहां सत्ता में थी भाजपा। लेकिन हमें लगता है कि एससी/एसटी एक्ट में सुप्रीम कोर्ट के फैसले में हस्तक्षेप करना सबसे बड़ी भूल रही और इसका खामियाजा इन राज्यों में हार के रूप में भाजपा को देखना पड़ा। अकेले मध्य प्रदेश में पांच लाख से अधिक लोगों ने विरोधस्वरूप नोटा का बटन दबाया और इससे माना जा रहा है कि कम से कम 20-22 विधानसभा सीटों पर भाजपा को नुकसान पहुंचा है। कमोबेश यही हाल अन्य राज्यों राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी रहा।

एफपी : इसे थोड़ा विस्तार से बताएं।
ओ.रा. : सबसे पहले सुप्रीम कोर्ट के फैसले में हस्तक्षेप पर ही बात करते हैं। फैसले में क्या था और किस बात पर आपत्ति व्यक्त की जा रही थी, इस पर गौर करने की जरूरत है। दलितों की प्रमुख नेता सुश्री मायावती ने भी यही बात कही थी, जो सुप्रीम कोर्ट की तरफ से कहा जा रहा था कि जांच के बाद ही दर्ज हो एफआईआर। अपने कार्यकाल में मायावती जी ने सीओ स्तर से जांच के बाद एफआईआर दर्ज करने को हरी झंडी दी थी। अब सवाल यह उठता है कि दलित नेता ने यह फैसला तभी तो लिया होगा, जब उन्हें इसमें खामियां नजर आई होंगी। सामान्य बात बता दूं कि जो इस तरह के मामलों में होता चला आ रहा है, वह यह है कि किसी परिवार के बच्चे से अगर कुछ हुआ तो उस परिवार के पूरे कुनबे का नाम एफआईआर में दर्ज करा दिया जाता है। भले ही घटना के वक्त परिवार के सदस्य वहां हों या न हों। दिल्ली में रह रहे रिलेटिव्स तक के नाम दे दिए जाते हैं, ताकि परिवार वाले परेशान होते रहें। इस तरह के मामलों को देखकर ही जांच के बाद एफआईआर दर्ज करने की बात की गई थी।
एफपी : अन्य पिछड़ी जाति (ओबीसी) के उप वर्गीकरण पर आपका क्या कहना है?
ओ.रा. : बिलकुल उप वर्गीकरण होना ही चाहिए। पिछले साल 2017 में ही सामाजिक न्याय समिति गठित कर 27 प्रतिशत आरक्षण को तीन कैटेगरी- पिछड़ा, अति पिछड़ा व सर्वाधिक पिछड़ा में बांटने की बात की गई थी, लेकिन जब इस दिशा में कोई खास काम नहीं हुआ तो दबाव बनाया गया। दबाव बनाने का रिजल्ट यह रहा कि अति पिछड़ा न्याय समिति गठित कर उसे रिपोर्ट सौंपने के निर्देश दिए।
ओ.रा. : पिछड़ी जातियों में उप वर्गीकरण इसलिए जरूरी है कि 27 प्रतिशत आरक्षण का लाभ पिछड़ी जातियों की कम आबादी की उपजाति के लोग उठा ले जा रहे हैं, जबकि इसकी बड़ी आबादी इससे वंचित रह जा रही है। मिसाल के तौर पर पिछड़ी जातियों में पटेल, सोनार, यादव, जाट आदि अपनी आबादी के अनुपात से 39.5 फीसदी अधिक आरक्षण का लाभ ले रहे हैं। कमोबेश यही हाल अनुसूचित जाति के साथ भी है। यहां जाटव, दुसाध, चमार जाति के लोग आरक्षण का 90 फीसदी हिस्सा ले लेते हैं; जबकि मुसहर, वाल्मीकि, कुजरा, धोबी आदि उपजाति के लोग आज भी वहीं खड़े हैं, उनकी स्थिति में रत्तीभर बदलाव नहीं आया है। इन्हीं सब बातों को देखते हुए ओबीसी में उप वर्गीकरण किए जाने की वे लोग मांग कर रहे हैं, ताकि आबादी के हिसाब से जातियों, उपजातियों को आरक्षण का लाभ मिल सके।
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एफपी : इससे क्या कोई राजनीतिक फायदा भी मिलेगा?
ओ.रा. : ओबीसी के उप वर्गीकरण से सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि इससे सबका साथ, सबका विकास होगा। अगर उप वर्गीकरण के तहत आरक्षण की व्यवस्था नहीं की गई, तो ओबीसी की बड़ी आबादी के गुस्से का सामना करना पड़ सकता है। सर्वे में माना गया है कि पिछड़ी जाति की बड़ी आबादी का 28 साल में कुछ खास बदलाव नहीं आ पाया है। राजनीतिक रूप से बात करें, तो केवल उत्तर प्रदेश में अति पिछड़ा और सर्वाधिक पिछड़ा के 38 प्रतिशत वोट हैं और आगामी लोकसभा चुनाव में यह वोट बैंक उस पार्टी की नैया पार लगा सकता है, जो उप वर्गीकरण को हरी झंडी दिलाएगी।
एफपी : अखिलेश यादव ने 17 ओबीसी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का प्रस्ताव किया था, उसी में से एक राजभर जाति भी थी। इस पर आपका क्या कहना है?
ओ.रा. : सिर्फ वोट हासिल करने के लिए इस तरह का प्रस्ताव तैयार किया गया था, क्योंकि उन्हें पता था कि जब यह मामला कमीशन के समक्ष जाएगा, तो खुद-ब-खुद निरस्त हो जाएगा। सभी को पता है कि जो जातियां छुआछूत में आती थीं, उन्हें अनुसूचित जाति में रखा गया था। ऐसे में इस प्रस्ताव का क्या कोई मतलब रह जाता है? बोलना है तो ओबीसी के उप वर्गीकरण पर बोलें। इस पर अखिलेश, मुलायम व मायावती तीनों चुप हैं। इस चुप्पी का मतलब साफ है कि ये लोग उप वर्गीकरण के पक्ष में नहीं हैं।
एफपी : अच्छा, अब मायावती के बारे में भी बात हो जाए। आप उनके पुराने सहयोगी रहे हैं, करीब से जानते हैं। क्या उनका जनाधार कम हो रहा है?
ओ.रा. : जनाधार कम हो रहा है या नहीं, यह पता करना आप मीडिया वालों का काम है। मेरा तो केवल यह कहना है कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में चाहे वह अखिलेश हों, मुलायम हों या फिर मायावती, इन सबों ने अपनी जाति को ही बढ़ाने का काम किया है। यह बात जनता समझ चुकी है और इन दोनों-तीनों की मौजूदा स्थिति के लिए यह एक प्रमुख कारण है।
एफपी : हाल के दिनों में आपकी पार्टी और भाजपा के बीच उठापटक की स्थिति बनी है। इसमें कहां तक सच्चाई है?
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भाजपा रखेगी तो रहेंगे, नहीं रखेगी तो नहीं रहेंगे। दोनों स्थिति के लिए हैं तैयार
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मैं खिलाफ नहीं बोलता, सिर्फ सच कहता हूं। कोई इसे बागी कहे, तो क्या कहा जा सकता है
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आरक्षण से पिछड़े हो रहे लाभान्वित, अति पिछड़ा व सर्वाधिक पिछड़ा वर्ग को नहीं मिल पा रहा लाभ
एफपी : आपके इस तरह के बयान से भाजपा कई बार असहज हो गई है। क्या इससे गठजोड़ पर असर नहीं पड़ेगा?
ओ.रा. : देखिए, भाजपा रखेगी तो रहेंगे, नहीं रखेगी तो नहीं रहेंगे। वैसे भी हमने और हमारी पार्टी ने उत्तर प्रदेश की सभी 80 सीटों पर लोकसभा चुनाव को देखते हुए तैयारी शुरू कर दी है। गठबंधन रहता है, तो इसका फायदा गठबंधन को होगा; नहीं तो अपनी तैयारी तो सभी 80 सीटों पर चल ही रही है। हालांकि, यह भी बात बता दूं कि पिछला विधानसभा चुनाव हो या फिर निकाय चुनाव- सम्मानजनक ऑफर कभी नहीं मिला। विधानसभा चुनाव में हमारी पार्टी 22 सीटों की मांग कर रही थी, लेकिन हमें केवल 8 सीटें दी गईं, जिनमें से चार पर पार्टी ने जीत दर्ज की। हद तो तब हो गई, जब प्रदेश में निकाय चुनाव होना था। हमें व हमारी पार्टी को पूरी तरह से नजरअंदाज कर भाजपा अकेले निकाय चुनाव लड़ी।
एफपी : आपको भाजपा से गिले-शिकवे तो बहुत हैं। इसको किस तरह से देखा जाए?
ओ.रा. : देखिए, एक बात बता दूं। मैं उपेंद्र कुशवाहा की तरह नहीं हूं कि अपनी बातें पुरजोर तरीके से रखने की बजाय भाग खड़ा होऊं। सच बोलने से कोई रोक नहीं सकता और अभी मैं और मेरी पार्टी भाजपा का सहयोगी दल हैं। जब नहीं रहेंगे, तबकी बात अलग है। लेकिन, जब तक हूं, भाजपा के साथ हूं। फिर दोहराता हूं कि भाजपा रखेगी, तो रहेंगे; नहीं रखेगी, तो नहीं रहेंगे।
एफपी : कहा जाता है, अब तक राजभर की पार्टी कभी नहीं जीती। भाजपा से गठजोड़ हुआ, तो आठ सीटों में से चार सीटों पर जीती; खुद भी मंत्री बने।
ओ.रा. : बिलकुल सही फरमाया। लेकिन यह भी बता दूं कि सहयोगी दल के रूप में हमारी पार्टी के शामिल होने से पूर्वांचल की 125 सीटों पर हम सब जीतने में सफल रहे थे और इस बात को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह सार्वजनिक मंच से कई बार कह चुके हैं। इसलिए किसको कितना और क्या फायदा हुआ, इसका आकलन जिसे लगाना है, लगाता रहे।
एफपी : आपका दल भाजपा का सहयोगी दल है। अयोध्या में मंदिर-मस्जिद मसले पर आपका क्या कहना है?
ओ.रा. : मंदिर-मस्जिद मसला चूंकि न्यायालय में लंबित है, इसलिए कोर्ट के निर्णय का इंतजार किया जाना चाहिए। जल्दबाजी में कोई कदम नहीं उठाया जाना चाहिए।
एफपी : हनुमान को दलित कहना कहां तक उचित है?
ओ.रा. : भगवान को बांटना गलत है। हनुमान अगर दलित थे, तो भगवान शंकर क्या थे? विष्णु क्या थे? एफपी : बुलंदशहर की घटना पर आपका क्या कहना है?
ओ.रा. : योजनाबद्ध तरीके से बड़ी घटना को अंजाम देने की तैयारी थी। जिस तरह से बजरंग दल, विश्व हिंदू परिषद के लोगों ने गोमांस को ट्रैक्टर पर लादकर सड़क मार्ग पर फेंका था, वह बड़ा अपराध था। क्योंकि, इससे इलाके में आपसी सौहार्द के और बिगड़ने का खतरा उत्पन्न हो गया था। इस मामले में बजरंग दल व विहिप से जुड़े लोगों की गिरफ्तारी भी हुई थी।
(कॉपी संपादन : प्रेम/एफपी डेस्क)
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