पिछड़े वर्गों के लिए राष्ट्रीय आयोग के पूर्व अध्यक्ष व आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति वी. ईश्वरैया ने संविधान (103वां संशोधन) अधिनियम, 2019 को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। यह अधिनियम संसद के पिछले सत्र के अंतिम दिन लोकसभा और राज्य सभा से पास किया गया। और इसे अब राष्ट्रपति की अनुमति मिलने के बाद कुछ राज्यों ने लागू भी कर दिया है। इस संशोधन के माध्यम से संविधान में ‘आर्थिक रूप से पिछड़े’ नामक एक नया वर्ग बनाया गया है और इसके माध्यम से सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को उच्च शिक्षा संस्थानों और नौकरियों में 10% आरक्षण देने का प्रावधान किया गया है।
जस्टिस ईश्वरैया का कहना है कि आरक्षण का आधार आर्थिक नहीं हो सकता और यह नवीनतम संविधान संशोधन संविधान की मूल संरचना के ख़िलाफ़ है और इसलिए असंवैधानिक है।
इन तथ्यों के आधार पर जस्टिस ईश्वरैया ने दी है चुनौती
- “अनुच्छेद 16 (1) के तहत अन्य वर्ग के लोगों को आरक्षण दिया जा सकता है पर इसके तहत भी सिर्फ़ आर्थिक आधार पर आरक्षण नहीं दिया जा सकता।”
- खुली प्रतिस्पर्धा वाले रिक्तियों में से 10 प्रतिशत सीटों का आरक्षण आय/संपत्तियों के स्वामित्व के आधार पर देने का अर्थ यह होगा कि जो इन हद के बाहर हैं उनको यह सुविधा नहीं मिलेगी और संवैधानिक रूप से इसकी इजाज़त नहीं दी जा सकती। आर्थिक आधार पर किसी वर्ग के निर्धारण की इजाज़त नहीं है और ऐसा करना संविधान के अनुच्छेद 16 (1) का उल्लंघन होगा। और इस आधार पर इस संशोधन अधिनियम को निरस्त किया जाना चाहिए।
- संविधान की मौलिक संरचना को संसद में पारित किसी संशोधन अधिनियम से बदला नहीं जा सकता। संविधान सर्वोपरि है। केशवानंद भारती मामले में तीन जजों की सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा था कि संशोधन तो किया जा सकता है पर संविधान की मौलिक संरचना को नष्ट नहीं किया जा सकता।
- 10 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों का एक वर्ग बनाना संविधान की मूल संरचना के ख़िलाफ़ है।
आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश व पिछड़े वर्गों के लिए राष्ट्रीय आयोग के पूर्व अध्यक्ष जस्टिस वी. ईश्वरैया
- गुजरात सरकार ने 4 अगस्त 2016 को ऐसा ही एक अध्यादेश जारी किया था जिसको सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है और यह सुप्रीम कोर्ट के विचाराधीन है।
- 124वें संविधान संशोधन द्वारा ‘आर्थिक रूप से पिछड़े’ नामक जो एक नया वर्ग बनाया गया है उसका ज़िक्र ना तो संविधान की प्रस्तावना में है, ना मौलिक अधिकारों में इसका ज़िक्र है और ना ही राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों में। संविधान की प्रस्तावना में सामाजिक न्याय की बात कही गई है और जो इससे वंचित हैं उनको आम लोगों के समक्ष लाने के लिए उनके लिए आरक्षण की बात कही गई है। आर्थिक न्याय में इस तरह के आरक्षण की बात नहीं की गई है।
- कमज़ोर वर्गों में सिर्फ़ एससी, एसटी और ओबीसी आते हैं। सिर्फ़ इन्हीं वर्गों के लोगों को हर तरह के सामाजिक अन्याय और शोषण से बचाए जाने की ज़रूरत है।
- आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग एक संविधान के अनुच्छेद 15(1) और 16(1) के तहत ‘आर्थिक रूप से पिछड़े’ यह शब्द ही मिथ्या और भ्रम पैदा करने वाला है।
- अधिनियम में अनुच्छेद 46 की शर्तों को पूरा करने के लिए जिन उद्देश्यों और कारणों को गिनाया गया है, वे शरारतपूर्ण, संदिग्ध, और ग़लत हैं और ये सामाजिक व शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों के हितों को हानि पहुँचाने वाले हैं।
- संविधान में आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों की कोई परिभाषा नहीं दी गई है जैसी परिभाषा सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े लोगों की परिभाषा अनुछेद 340, 341, 342 और 366 (25) में दी गई है।
- आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों के लिए किसी भी तरह के आयोग नहीं बनाए गए हैं जैसा कि पिछड़ा वर्ग, एससी और एसटी के लिए किया गया है।
- यद्यपि सरकार ने सामाजिक-आर्थिक आधार पर 2011 में जनगणना की गई पर इसे प्रकाशित नहीं किया गया है और इसलिए आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग की क्या हालत है इसके बारे में कुछ भी ज्ञात नहीं है।
- आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को 10 प्रतिशत आरक्षण में मज़दूरी करने वालों, कृषि मज़दूरों, ऑटो चालकों, टैक्सी ड्राइवरों, कुलियों, खोमचावालों आदि को लाभ नहीं मिलने का अंदेशा है क्योंकि ये आर्थिक रूप से कमज़ोर अन्य वर्ग के लोगों से प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकते जिनकी आय 8 लाख रुपए तक है, 5 एकड़ कृषि योग्य ज़मीन है और शहरी क्षेत्र में 1000 वर्ग फूट और ग्रामीण क्षेत्र में 200 गज़ में बना घर है।
- आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों को किसी भी तरह का सामाजिक अन्याय, शोषण, छुआछूत और अत्याचार नहीं झेलना पड़ा है।
बहरहाल, इन तर्कों के आधार पर जस्टिस वी. ईश्वरैया ने सुप्रीम कोर्ट में सवर्ण आरक्षण को चुनौती दी है कि संविधान (103वां संशोधन) अधिनियम, 2019 द्वारा संविधान के अनुच्छेद 15 में उपबन्ध 6 और 16 में उपबन्ध 6 को जोड़ना संविधान की प्रस्तावना और इसकी मूल संरचना के ख़िलाफ़ है।
(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)
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Y shi m Political Stant hai or aisa krna Constitution ke against hai,Jo Pm shab me Sawran kr vot bank ke liy Kiya hai..
But y galat hai or Hume apni Aawaj Utani chahiy
Thanks
Galat logo ko sarkar banaya desh ka naya yup layegi Lekin gaddari kar rahe hai