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मीडिया ने चलाई थी गलत खबर, सवर्ण आरक्षण के पक्ष में है वाईएफई

गरीब सवर्णों के आरक्षण संबंधी विधेयक को चुनौती देने वाले सवर्ण संगठन यूथ फॉर इक्वलिटी ने साफ कर दिया है कि वह इसका विरोध नहीं करता है। उनका कहना है कि निजी शैक्षणिक संस्थानाें में आरक्षण का प्रावधान करना गलत है और इसे खत्म करने के लिए संगठन द्वारा याचिका दायर की गयी है

 द्विज युवआों के संगठन यूथ फॉर इक्वलटी ने आरक्षण को लेकर उनके हवाले से मीडिया में चली खबर को गलत करार देते हुए कहा है कि वह आर्थिक आधार पर आरक्षण दिए जाने के फैसले का समर्थन करते हैं, ना कि विरोध। संगठन का कहना है गरीब सवर्णों के लिए आरक्षण दलित-ओबीसी-आदिवासियों के लिए आरक्षित 50 फीसदी के अंदर होना चाहिए। गौरतलब है कि यह संगठन ओबीसी कोटे को खत्म करने तथा आर्थिक आधार पर सभी तबकों को आरक्षण देने की मांग करता रहा है।

स्वयंसेवी संस्था यूथ फॉर इक्वेलिटी के प्रमुख कौशल कांत मिश्रा ने फॉरवर्ड प्रेस से खास बातचीत में कहा कि “हमलोग आर्थिक आधार पर आरक्षण दिए जाने के फैसले के समर्थन में हैं जबकि मीडिया में इस तरह से खबर चली कि उससे लगा कि हमलोग विरोध में हैं। आर्थिक आधार पर आरक्षण दिए जाने की मांग को लेकर ही तो हमलोग संघर्ष कर रहे हैं और अब जब पहली बार आर्थिक आधार पर आरक्षण दिए जाने का फैसला किया गया है तो हम उसे अपनी सफलता मानने की बजाय कैसे विरोध कर सकते हैं।”

गौरतलब है कि फारवर्ड प्रेस ने भी विभिन्न मीडिया संस्थानों के हवाले से इस आशय की खबर प्रकाशित की थी कि यूथ फॉर इक्वलिटी ने सवर्ण आरक्षण के विरोध में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। शुक्रवार को इस खबर की पुष्टि के लिए फारवर्ड प्रेस संवाददाता ने जब यूथ फॉर इक्वलिटी के प्रमुख कौशल कांत मिश्रा से संपर्क किया तो उन्होंने बताया कि सभी मीडिया संस्थानों ने गलत खबर चलाई है। उन्होंने कहा कि इसे लेकर वे कल (शनिवार, 12 जनवरी 2019) प्रेस कांफ्रेंस कर दुनिया को सच्चाई बताएंगे।

यूथ फॉर इक्वेलिटी के प्रमुख कौशल कांत मिश्रा

उन्होंने कहा कि “दरअसल इस पूरे मामले में कंफ्यूजन इंदिरा साहनी बनाम भारत सरकार के मामले में पहले दिए फैसले को हमारे पेटीशन से जोड़कर देख लिया गया और यही वजह है कि हमारे संगठन के हवाले से फैसले पर प्रश्नचिन्ह लगाते हुए मीडिया के जरिए कई सवाल उठाए गए कि आर्थिक कारण आरक्षण का मौलिक आधार नहीं हो सकता। यह संसद द्वारा पारित विधेयक संविधान की मूल अवधारणा के खिलाफ है और आर्थिक आधार केवल सामान्य वर्ग के लिए नहीं किया जा सकता है। यह बिल्कुल गलत है और साफ-साफ शब्दों में बता दूं तो यूथ फॉर इक्वलटी जातिगत आधार की बजाय आर्थिक आधार पर आरक्षण के पक्ष में है इसलिए केंद्र सरकार के दस फीसदी गरीब सवर्ण को आरक्षण दिए जाने के फैसले के समर्थन में है और इसका तहे दिल से स्वागत करता है।”

यह भी पढ़ें : सवर्णों को आरक्षण यानी एससी, एसटी और ओबीसी के अधिकारों पर कुठारातघात : जस्टिस ईश्वरैय्या

कौशल कांत मिश्रा ने कहा कि “सरकार के इस फैसले पर जरूर उनकी आपत्ति है कि उनकी तरफ से अदालत द्वारा तय आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से बढ़ाकर 60 फीसदी कर दी गई है जबकि इसे 50 फीसदी में ही बांधकर रखना चाहिए। यानी गरीब सवर्णों को भी 50 फीसदी सीमा के अंदर ही आरक्षण देना चाहिए।”

उन्होंने  दावा किया कि “जातिगत आधार को खत्म कर आर्थिक आधार पर आरक्षण देकर ऐसा करना बिल्कुल संभव है और इससे अदालत की अवमानना का भी खतरा नहीं रहेगा। साथ ही वास्तविक जरूरतमंद लोगों को आरक्षण का लाभ मिलना भी शुरू हो जाएगा। हमें जूडिशियरी से उम्मीद है कि वह हमारे इस तर्क पर जरूर गौर करेगी कि आरक्षण जाति की बजाय आर्थिक आधार पर ही दिया जाए ताकि हर किसी को समानता का आधार मिल सके।”

उन्होंने कहा कि “यूथ फॉर इक्वलिटी गरीब सवर्णों को दस फीसदी आरक्षण देने संबंधी 124वें संविधान संशोधन विधेयक के उस बिन्दू का पुरजोर विरोध करता है जिसमें कहा गया है कि शिक्षा के प्राइवेट इंस्टीट्यूशन में भी यह आरक्षण लागू होगा। यह बिल्कुल गलत है और इससे प्रतिभावान छात्रों के पलायन का खतरा बढ़ जाएगा। अभी एजूकेशन के नाम पर जितने प्रतिभावान छात्र विदेश जाते हैं, उसमें काफी बढ़ोतरी हो जाएगी और भी देश में प्रतिभावान छात्रों का टोटा हो जाएगा। इसलिए प्राइवेट इंस्टीट्यूशन में शिक्षा के लिए आरक्षण लागू किए जाने के फैसले का उनका संगठन पुरजोर विरोध करता है। बांग्लादेश, मलेशिया ने भी पहले इस तरह की गलती की थी लेकिन जब इसका नकारात्मक परिणाम आना शुरू हुआ तो गलती में सुधार किया और प्राइवेट शिक्षण संस्थानों में आरक्षण खत्म कर दिया। हमें जूडिशियरी से इस पर भी सकारात्मक फैसले आने की उम्मीद है।”

यूथ फॉर इक्वलिटी के इस खुलासे से यह स्पष्ट  है कि द्विज युवाओं का यह संगठन अपने ओबीसी  विरोधी रूख पर कायम है। आर्थिक आधार पर आरक्षण की उसकी मांग गरीब सवर्णों के हित से अधिक ओबीसी का कोटा कम करने को लेकर थी। वह चाहता था कि ओबीसी के 27 फीसदी आरक्षण में से 10 फीसदी कथित तौर पर गरीब सवर्णों के लिए आरक्षित कर दिया जाए। अब जब सरकार ने सामान्य कोटा को कम कर 10 फीसदी सीटें गरीब सवर्णों के लिए आरक्षित की हैं, तो उसे इस बात का खतरा महसूस हो रहा है कि इससे कही ओबीसी कोटे को आबादी के आधार बढाने का रास्ता न खुल जाए।

(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)


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कुमार समीर

कुमार समीर वरिष्ठ पत्रकार हैं। उन्होंने राष्ट्रीय सहारा समेत विभिन्न समाचार पत्रों में काम किया है तथा हिंदी दैनिक 'नेशनल दुनिया' के दिल्ली संस्करण के स्थानीय संपादक रहे हैं

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