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दलितों-आदिवासियों पर अत्याचार का आरोप पड़ा महंगा, बरी होने के बाद भी नहीं बन सके जज

मध्य प्रदेश में दलितों पर अत्याचार करने का आरोप दो आरोपियों को महंगा पड़ा। उन्हें निचली अदालतों ने बरी कर दिया था। वे जिला जज पद के लिए क्वालिफाई भी कर गए। परंतु हाईकोर्ट ने उन्हें साफ कहा कि बरी होने का मतलब चरित्रवान होना नहीं होता

दलितों-आदिवासियों पर अत्याचार करने वालों के लिए सबक। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने माना है कि दलितों और आदिवासियों पर अत्याचार के आरोपी यदि किसी भी वजह से अदालत में बरी हो जाते हैं तब भी वे इस कलंक से मुक्त नहीं हो सकते हैं कि उनके ऊपर दलितों का उत्पीड़न करने का आरोप था। इतना ही नहीं हाईकोर्ट ने इसी के आधार पर दो ऐसे पूर्व आरोपितों की जज के रूप में नियुक्ति पर राज्य सरकार द्वारा लगायी गयी रोक को जायज करार दिया।

बीते 11 दिसंबर 2018 को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट, जबलपुर डिवीजन बेंच ने दीप नारायण तिवारी और नंद कुमार साहू की याचिका पर अपना फैसला दिया था। मुख्य न्यायाधीश एस. के. सेठ और न्यायाधीश विजय कुमार शुक्ला की खंडपीठ ने उनकी इस अपील को खारिज कर दिया कि संबंधित आरोपों में वे पहले ही बरी हो चुके हैं, इसलिए उनकी नियुक्ति हो।

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

बताते चलें कि दीप नारायण तिवारी और नंद कुमार साहू ने जिला जज पद के लिए 2017 में हुई सीधी भर्ती परीक्षा में सफलता हासिल की थी। परंतु बाद में राज्य सरकार ने उनकी नियुक्ति रोक दी थी। इस संबंध में दोनों ने सूचना का अधिकार कानून के तहत जानकारी मांगी तब उन्हें जानकारी मिली कि उनके उपर एससी-एसटी एक्ट के तहत पूर्व में मामले दर्ज हैं और इसी के आधार पर उनकी नियुक्ति नहीं की जा रही है। राज्य सरकार के इस जवाब के आलोक में दोनों पूर्व आरोपितों ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी। याचिकाकर्ताओं ने अपने आवेदन में कहा था कि वर्ष 2017 के न्यायिक सेवा परीक्षा के लिए अंतिम चयन सूची में उनके नाम ज़िला जज (प्रवेश स्तर) के रूप में नियुक्ति के लिए शामिल किए गए हैं। पर उनके नाम सूची से हटा दिए गए और उनके चयन को निरस्त कर दिया गया। वहीं आवेदनकर्ताओं ने अपने अपील में कहा कि उनके ख़िलाफ़ ये मामले ख़त्म कर दिए गए हैं और इसलिए सूची से उनके नाम को हटाना ग़लत है।

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट द्वारा दिए गए फैसले की प्रति देखने के लिए क्लिक करें

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की अपील को ठुकराते हुए हाईकोर्ट जाँच समिति के निर्णय में दख़ल देने से इंकार कर दिया। समिति ने एक उम्मीदवार के जज बनने की उम्मीदवारी को उसके आपराधिक मामले में बरी किए जाने के बावजूद मानने से इंकार कर दिया था। इन उम्मीदवारों के ख़िलाफ़ दो आपराधिक मामले चल चुके हैं।

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हाईकोर्ट ने इस मामले में आशुतोष पवार बनाम मध्य प्रदेश सरकार व अन्य मामले का हवाला दिया जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि किसी आपराधिक मामले में बरी हो जाने का अर्थ यह नहीं है कि उम्मीदवार का चरित्र अच्छा है। इसके साथ ही कोर्ट ने याचिकाओं को ख़ारिज कर दिया और कहा कि उन्हें इस याचिका में कोई दम नहीं दिख रहा है।

(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)


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अशोक झा

लेखक अशोक झा पिछले 25 वर्षों से दिल्ली में पत्रकारिता कर रहे हैं। उन्होंने अपने कैरियर की शुरूआत हिंदी दैनिक राष्ट्रीय सहारा से की थी तथा वे सेंटर फॉर सोशल डेवलपमेंट, नई दिल्ली सहित कई सामाजिक संगठनों से भी जुड़े रहे हैं

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