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मोदी की सियासी अनैतिकता और पाकिस्तान की नैतिक जीत!

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमारे देश में हुकूमत कर रहा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ जिसे सरदार वल्लभ भाई पटेल ने 1948 में प्रतिबंधित कर दियाा था, उसके नुमाइंदे और हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पुलवामा आतंकी हमले के बाद देश में युद्धोन्माद भड़का रहे हैं

पाकिस्तानी हुकूमत ने इंडियन एयर फोर्स के विंग कमांडर अभिनंदन को रिहा कर न केवल जेनेवा समझौते का सम्मान किया बल्कि जिस संवेदनशीलता के साथ उसने भारत को जवाब दिया है, वह बदल रहे पाकिस्तान का प्रमाण है। निश्चित तौर पर इसका श्रेय वहां के प्रधानमंत्री इमरान खान को जाता है जिन्होंने बिना आवेश में आए अभी तक भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुनावी सनक का जवाब दिया है।

दरअसल इस पूरे मामले में पाकिस्तान ने न केवल नैतिक तौर पर यह जंग जीता है बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी उसका कद बढ़ा है। खासकर अभिनंदन का पाकिस्तानी सीमा में जाने और उसकी गिरफ्तारी से पाकिस्तान ने पूरे विश्व को एक ऐसा सबूत पेश कर दिया जिसने अंतरराष्ट्रीय फोरमों में भारत की साख को प्रभावित किया है। वहीं भारत अभी तक ऐसे कोई सबूत नहीं पेश कर सका है जिससे यह साबित हो सके कि जैश-ए-मोहम्मद द्वारा पुलवामा में किए गए आतंकी हमले में पाकिस्तान की भूमिका रही। हालांकि यह सभी जानते हैं कि आईएसआई समर्थित जैश-ए-मोहम्मद को पालने-पोसने वाला पाकिस्तान ही है। यहां तक कि कांधार विमान अपहरण कांड के बावजूद भारत आजतक पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय फोरमों में बेनकाब नहीं कर सका है।

पाकिस्तानी मीडिया द्वारा जारी वहां के सैनिकों की गिरफ्त में भारतीय वायु सेना के विंग कमांडर अभिनंदन

खैर, भारतीय मीडिया जो कि इस समय नरेंद्र मोदी का भोंपू बन चुके हैं, वे बदल रहे पाकिस्तान के बदले इसे उसकी पराजय साबित कर रहे हैं। दैनिक जागरण ने तो मुख्य पृष्ठ पर यह खबर प्रकाशित किया है जिसका शीर्षक है “झुका पाकिस्तान”। अन्य अखबारों में कमोबेश ऐसी ही खबरें प्रकाशित हुई हैं।


 खैर, यह तो साफ है कि इस पूरे प्रकरण ने नरेंद्र मोदी की हेकड़ी निकाल दी है। वह मोदी जो कथित सर्जिकल स्ट्राइक-2 के बाद यह कह रहे थे कि देश उनके सुरक्षित हाथों में है, कल बदले-बदले नजर आए। उनमें यह बदलाव इस वजह से आया क्योंकि पाकिस्तान ने भारतीय वायु सेना के तीन जहाजों को मार गिराया। बाद में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री और वहां की सेना ने संवेदनशीलता दिखाते हुए न केवल अभिनंदन के साथ मानवीय व्यवहार किया बल्कि उसे रिहा भी कर दिया।

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, पाकिस्तान में कैद भारतीय वायु सेना के विंग कमांडर अभिनंदन और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान

दूसरी ओर, यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमारे देश में हुकूमत कर रहा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ जिसे सरदार वल्लभ भाई पटेल ने 1948 में प्रतिबंधित कर दियाा था, उसके नुमाइंदे और हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पुलवामा आतंकी हमले के बाद देश में युद्धोन्माद भड़का रहे हैं। हालांकि हम सभी भारतवासी यह समझते हैं कि ऐसा कर वे देश को उन मुद्दों से भटकाने की कोशिशें कर रहे हैं, जिनसे हम सभी भारतवासी जुझ रहे हैं। जाहिर तौर पर इन मुद्दों में बेरोगजगारी और मंहगाई तो शामिल हैं ही, साथ ही बहुसंख्यक आबादी के खिलाफ सरकार की नीतियां मसलन संविधान को दरकिनार कर सवर्णों को आरक्षण देना, विभागवार आरक्षण और 10 लाख से अधिक आदिवासियों को उनके जमीन से बेदखल किया जाना भी शामिल हैं।

बहरहाल, कहने की आवश्यकता नहीं कि हम भारत के लोग अपने देश से बहुत प्यार करते हैं। हमें हमारी सेना पर गर्व है और उम्मीद करते हैं कि हमारे देश की हुकूमत भी दोनों मुल्कों के बीच अमन-चैन बना रहे, इस दिशा में पहल करेगी। चूंकि हम भारतवासी हैं, इसलिए अपने देश की हुकूमत से यह अनुरोध तो कर ही सकते हैं कि वह पाकिस्तान पर इतना दबाव बनाए कि वह खुद ही अपनी धरती का इस्तेमाल आतंकवादियों को न करने दे। ऐसे में कश्मीर का सवाल सामने आएगा जो दोनों देशों के बीच बातचीत से सुलझ सकता है। बस एक ईमानदार प्रयास की जरूरत है।

एक पंक्ति दोनों देशों की हुकूमतों के लिए –

आसमां में सुराख क्यों नहीं हो सकता,

एक पत्थर तो दिल से उछालो यारों।

(उपरोक्त लेख में व्यक्त विचार निजी हैं। यह फारवर्ड प्रेस संपादक मंडल की सहमति को अनिवार्य रूप से व्यक्त नहीं करता है)

(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)


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मनीषा बांगर

डॉ. मनीषा बांगर पेशे से चिकित्सक और पीपुल पार्टी ऑफ इंडिया-डी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं। वे हैदराबाद के डेक्कन इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज में गेस्ट्रोएंटेरोलोजी व हेपेटोलोजी की एसोसिएट प्रोफेसर हैं। पिछले एक दशक में उन्हें भारत और विदेश में अनेक विश्वविद्यालयों व मानवाधिकार और फुले-आंबेडकरवादी संगठनों व संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा लैंगिक समानता, स्वास्थ्य व शिक्षा से लेकर जाति व फुले, पेरियार और आंबेडकर जैसे विषयों पर अपने विचार रखने के लिए आमंत्रित किया जाता रहा है।

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