मयनमार की यात्रा के बाद वहां से पश्चिम में भारत के उत्तर पूर्व इलाके की ओर आना एक तरह से उसी तस्वीर को एक और ‘एंगल’ से देखना है. लोग वही हैं, वही समस्याएँ, वही सवाल, सामाजिक-राजनीतिक स्तर पर वही दशकों पुरानी असम्पृक्तता और इससे आगे अब समाज के ध्रुवीकरण से पैदा होती वोट बैंक की वही अपार सम्भावनाएं!
कहा जाता है कि उत्तर पूर्व में भारत के आर्यों और मुसलमानों को छोड़कर शेष सभी बाशिंदे चीन से बर्मा होते हुए इस ओर आए थे. यह एक वंचित, असंतुष्ट और विषम समाज है, जिसमें ठीक समय पर बीज बोने और सुविधा के अनुसार राजनीतिक फसल काटने के अनेकानेक सुनहरे अवसर हैं। अंग्रेजों के ज़माने में ईसाई मिशनरियों ने शिक्षा और धर्म परिवर्तन के ज़रिए उग्र समुदायों को अपने वश में किया था। देश की आज़ादी के बाद इन समीकरणों में फिर एक बदलाव आया है और कई क्षेत्रों में ज़मीन के नीचे दबा गर्म लावा फिर से बाहर आने लगा है।
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