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पूर्वोत्तर वृतांत : नागाओं के सबसे पुराने गांव खोनोमा में

खोनोमा का एक ज्वलंत इतिहास भी है और नागाओं की लिखित और मौखिक परम्पराओं में इसका विशेष स्थान है। क्रिश्चियनिटी के प्रभाव में खोनोम के अधिकाँश निवासी अब पढ़ लिख गए हैं। लेकिन आम कश्मीरियों की तरह नागाओं के मन की थाह पाना ज़रा मुश्किल है

मयनमार की यात्रा के बाद वहां से पश्चिम में भारत के उत्तर पूर्व इलाके की ओर आना एक तरह से उसी तस्वीर को एक और ‘एंगल’ से देखना है. लोग वही हैं, वही समस्याएँ, वही सवाल, सामाजिक-राजनीतिक स्तर पर वही दशकों पुरानी असम्पृक्तता और इससे आगे अब समाज के ध्रुवीकरण से पैदा होती वोट बैंक की वही अपार सम्भावनाएं!

कहा जाता है कि उत्तर पूर्व में भारत के आर्यों और मुसलमानों को छोड़कर शेष सभी बाशिंदे चीन से बर्मा होते हुए इस ओर आए थे. यह एक वंचित, असंतुष्ट और विषम समाज है, जिसमें ठीक समय पर बीज बोने और सुविधा के अनुसार राजनीतिक फसल काटने के अनेकानेक सुनहरे अवसर हैं। अंग्रेजों के ज़माने में ईसाई मिशनरियों ने शिक्षा और धर्म परिवर्तन के ज़रिए उग्र समुदायों को अपने वश में किया था। देश की आज़ादी के बाद इन समीकरणों में फिर एक बदलाव आया है और कई क्षेत्रों में ज़मीन के नीचे दबा गर्म लावा फिर से बाहर आने लगा है।

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लेखक के बारे में

जितेन्द्र भाटिया

जितेन्द्र भाटिया (जन्म : 1946) केमिकल इंजीनियरिंग में पी-एच.डी. हिंदी के चर्चित लेखक हैं। उनकी कृतियों में समय सीमांत, प्रत्यक्षदर्शी (उपन्यास); रक्तजीवी, शहादतनामा, सिद्धार्थ का लौटना (कहानी-संग्रह); जंगल में खुलने वाली खिड़की (नाटक); रास्ते बंद हैं (नाट्य रूपांतर, प्रकाश्य); सोचो साथ क्या जाएगा (विश्व साहित्य संचयन); विज्ञान, संस्कृति एवं टेक्नोलॉजी (प्रकाश्य) शामिल हैं।

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