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कानूनी भेदभाव की बेड़ियां तोड़ती स्त्री

विचित्र विडंबना है कि आज भी घोषित-अघोषित रूप से भारतीय समाज और गैर-सरकारी क्षेत्र में अविवाहित लड़कियों को ही प्राथमिकता दी जाती है और विवाहित स्त्रियों को नौकरी के लिए ‘अयोग्य’ समझा जाता है

न्याय क्षेत्रे-अन्याय क्षेत्रे

“स्त्री को अपने संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए, कानूनी हथियार उठाने ही होंगे।”

सुश्री सी.बी. मुथम्मा (1924-2009) पहली महिला थीं, जो भारतीय विदेश सेवा के लिए चुनी गई थीं। पहली महिला राजनयिक (राजदूत) थीं। नौ साल की थीं, जब उनके पिता का देहांत हुआ। वह लैंगिक अधिकारों की रक्षा के लिए, जीवन भर लड़ती रहीं। उनकी एक बहुचर्चित पुस्तक है ‘स्ले बाई सिस्टम’।

मुथम्मा अक्सर बेहद आहत और अपमानित महसूस करतीं। आज़ादी के 32 साल और संविधान लागू होने के 29 साल बाद भी भारतीय विदेश सेवा तक में, विवाहित महिला पद के लिए अयोग्य मानी जाती है और महिला सदस्य को विवाह करने से पूर्व, सरकार से लिखित अनुमति लेना अनिवार्य है। क्यों? क्योंकि वह स्त्री है, आधी दुनिया की गुलाम नागरिक!

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लेखक के बारे में

अरविंद जैन

अरविंद जैन (जन्म- 7 दिसंबर 1953) सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता हैं। भारतीय समाज और कानून में स्त्री की स्थिति संबंधित लेखन के लिए जाने-जाते हैं। ‘औरत होने की सज़ा’, ‘उत्तराधिकार बनाम पुत्राधिकार’, ‘न्यायक्षेत्रे अन्यायक्षेत्रे’, ‘यौन हिंसा और न्याय की भाषा’ तथा ‘औरत : अस्तित्व और अस्मिता’ शीर्षक से महिलाओं की कानूनी स्थिति पर विचारपरक पुस्तकें। ‘लापता लड़की’ कहानी-संग्रह। बाल-अपराध न्याय अधिनियम के लिए भारत सरकार द्वारा गठित विशेषज्ञ समिति के सदस्य। हिंदी अकादमी, दिल्ली द्वारा वर्ष 1999-2000 के लिए 'साहित्यकार सम्मान’; कथेतर साहित्य के लिए वर्ष 2001 का राष्ट्रीय शमशेर सम्मान

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