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संविदा पर शिक्षकों के नियोजन के पक्षधर बुद्धिजीवियों के तर्क

संविदा के आधार पर उच्च शिक्षा संस्थानों में शिक्षकों की बहाली का जहां एक ओर विरोध हो रहा है, वहीं कुछ बुद्धिजीवी इसके पक्ष में भी खड़े हैं। पक्षधर बुद्धिजीवियों का क्या है, तर्क 

ठेके पर प्रोफेसरों की बहाली के सवाल पर बुद्धिजीवी दो खेमों में बंटते दिख रहे हैं। एक खेमा यह मानता है कि इस तरह के नियोजन से युवाओं को नुकसान होगा। उन्हें आर्थिक नुकसान तो होंगे ही, शिक्षा की गुणवत्ता पर भी असर पड़ेगा। इसके अलावा वे इसके कारण आरक्षण आधारित प्रतिनिधित्व नहीं मिलने की बात भी कहते हैं। वहीं दूसरे खेमे के बुद्धिजीवी संविदा आधारित नियोजन के पक्ष में हैं।

दरअसल, फारवर्ड प्रेस द्वारा 7 जुलाई 2019 को ‘लखनऊ विश्वविद्यालय में ठेके पर प्रोफेसर, बुद्धिजीवियों ने जताया विरोध’ शीर्षक समाचार प्रकाशित की गयी। लेख में वर्णित विषय के सवाल पर ऐसे बुद्धिजीवी भी सामने आए हैं जो संविदा आधारित नियोजन को अनुचित नहीं मानते हैं।

रिक्त पदों पर नियुक्ति के लिए प्रदर्शन करते दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ के सदस्य

मसलन जामिया मिलिया इस्लामिया में हिंदी की विभागाध्यक्ष हेमलता माहिश्वर ने फारवर्ड प्रेस को बताया कि यह पहला अवसर नहीं है जब संविदा पर बहाली की जा रही है। पहले भी इस तरह नियुक्तियां होती थीं। सामान्य तौर पर जब शिक्षक छुट्टी पर चले जाते हैं या फिर सेवानिव‍ृत्त हो जाते हैं और लंबे समय तक पूर्णकालिक बहाली नहीं होती है तब संविदा के आधार पर शिक्षक बहाल किए जाते हैं।

हेमलता माहिश्वर, विभागाध्यक्ष, हिंदी, जामिया मिलिया इस्लामिया

यह पूछने पर कि संविदा के आधार पर नियोजन में पारिश्रमिक की राशि कम होने से शिक्षकों में असंतोष नहीं होगा, हेमलता माहिश्वर ने कहा कि उन्हें असंतोष नहीं पालना चाहिए। अब तो स्थिति बहुत बदली है और मानदेय की राशि भी बढ़ाई गई है। पहले तो लोग बीस-पच्चीस हजार रुपए प्रतिमाह पर काम करते थे। लखनऊ विश्वविद्यालय द्वारा जारी विज्ञापन के संबंध में उन्होंने कहा कि यदि यह विज्ञापन नये पदों के सृजन के बाद जारी किया गया है तब इसकी आलोचना होनी चाहिए।  

अरूण कुमार, प्रोफेसर, दिल्ली विश्वविद्यालय

संविदा के आधार पर शिक्षकों की बहाली के फैसले को दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अरूण कुमार हालांकि गलत मानते हैं। लेकिन उनका कहना है कि नरेंद्र मोदी सरकार ने संविदा आधारित बहाली के लिए भी विज्ञापन निकालकर महत्वपूर्ण पहल किया है। पहले उच्च शिक्षा में अराजकता का माहौल होता था। मनमाने ढंग से शिक्षक संविदा के आधार पर रखे जाते थे। भ्रष्टाचार के कई मामले भी तब सामने आते थे। अरूण कुमार बताते हैं कि उच्च शिक्षा में गुणवत्ता बनाए रखने के लिए अराजकता को समाप्त किया जाना जरूरी है। इसलिए संविदा के आधार पर बहाली हेतु भी विज्ञापन जारी किया जाना इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।

यह भी पढ़ें – डीयू में शिक्षक बहाली : 79 ओबीसी, 41 एससी और 24 एसटी के पद आरक्षित

(फारवर्ड प्रेस उच्च शिक्षा जगत से संबंधित खबरें प्रकाशित करता रहा है। हाल के दिनों में कई विश्वविद्यालयों द्वारा नियुक्तियों हेतु विज्ञापन निकाले गए हैं। इन विज्ञापनों में आरक्षण और रोस्टर से जुड़े सवालों को भी हम  उठाते रहे हैं; ताकि उच्च शिक्षा के क्षेत्र में दलित-बहुजनों समुचित हिस्सेदारी हो सके। आप भी हमारी इस मुहिम का हिस्सा बन सकते हैं। नियोजन संबंधी सूचनाओं, खामियों के संबंध में हमें editor@forwardmagazine.in पर ईमेल करें। आप हमें 7004975366 पर फोन करके भी सूचना दे सकते हैं)

(कॉपी संपादन : सिद्धार्थ)


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नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

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