विश्वविद्यालयों में अब संविदा के आधार पर शिक्षकों की बहाली शुरू कर दी गयी है। बीते 29 जून 2019 को असिस्टेंट प्रोफेसर के 29 पदों पर नियुक्ति हेतु लखनऊ विश्वविद्यालय ने संशोधित विज्ञापन जारी किया है। विज्ञापन के मुताबिक ये सभी नियुक्तियां संविदा के आधार पर की जाएंगी। विज्ञापन में साफ लिखा गया है कि जिन अभ्यर्थियों का नियोजन होगा उन्हें 22 हजार रुपए प्रति माह से लेकर अधिकतम 40 हजार रुपए तक (अलग-अलग विषयों के हिसाब से) मिलेंगे। इतना ही नहीं, विज्ञापन में भले ही यह लिखा गया है कि इन नियुक्तियों में आरक्षण का अनुपालन किया जाएगा, लेकिन विज्ञापित 29 पदों में से केवल 6 पद ओबीसी के लिए और केवल एक पद अनुसूचित जाति के अभ्यर्थी के लिए आरक्षित है। विश्वविद्यालय द्वारा जारी विज्ञापन यहां क्लिक कर देखें।
पूर्णकालिक शिक्षकों के समान मिले वेतन, लागू हो आरक्षण : डॉ. विनीत वर्मा
ठेके पर शिक्षको की भर्ती किए जाने के मसले पर लखनऊ विश्वविद्यालय के शिक्षक संगठन के महासचिव डॉ. विनीत वर्मा ने कहा कि ऐसा पहले से होता आया है। स्ववित्तपोषित कोर्सेस में रेगुलर भर्तियां नहीं होती हैं। क्योंकि इन कोर्सों की कोई मियाद नहीं होती है, जब तक इन कोर्स की डिमांड है तब तक चलेगा नहीं तो कोर्स बंद हो जाएगा, इसीलिए इन कोर्स में पूर्णकालिक भर्तियां नहीं होतीं। रेगुलर, फुल टाइम कोर्सेस में प्रशासन द्वारा पूर्णकालिक भर्तियां होती हैं। सेल्फ फाइनेंस कोर्स हमेशा चलते रहे हैं। आरक्षित वर्गों के साथ हकमारी के सवाल पर डॉ. विनीत वर्मा ने कहा कि बेशक़ संविदा भर्तियों में भी प्रॉपर रिजर्वेशन पॉलिसी लागू होनी चाहिए जो कि नहीं लागू हो रही है। हम इसका विरोध करते हैं और मांग करते हैं कि सरकार की जो रिजर्वेशन नीति है उसे लागू किया जाना चाहिए। हमारी यह भी मांग है कि जो वेतन पूर्णकालिक शिक्षकों मिलता है वही संविदा पर नियुक्त शिक्षकों को भी दी जाए।

आरक्षित वर्ग के युवाओं को रोकने की साजिश : प्रो. हंसराज सुमन
दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हंसराज सुमन संविदा के आधार पर प्रोफेसरों की बहाली को गलत मानते हैं। फारवर्ड प्रेस के साथ बातचीत में उन्होंने कहा कि देश भर के विभिन्न विश्वविद्यालयों/महाविद्यालयों में साढ़े सात लाख से अधिक पद रिक्त पड़े हैं। विश्वविद्यालयों को चाहिए था यह कि वे रिक्त पदों के आलोक में पूर्णकालिक नियुक्तियां करे। इससे आरक्षण का अनुपालन भी होता और युवाओं को नौकरी की सुरक्षा भी मिलती। चूंकि अब देश में बड़ी संख्या में दलित-बहुजन युवा उच्च शिक्षा में आगे आ रहे हैं, वे प्रोफेसर न बन सकें, इसके लिए संविदा के आधार पर नियुक्तियां की जा रही हैं। इसका विरोध किया जाना चाहिए। इसके चलते वर्तमान में उच्च शिक्षा के प्रति आरक्षित वर्गों के युवाओं में जो उत्साह है, उसमें कमी आयेगी।

गलत परंपरा की शुरूआत : प्रो. हैनी बाबू
दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. हैनी बाबू का कहना है कि संविदा के आधार पर नियुक्ति पूरी तरह गलत है। इस तरह की नियुक्तियों के कारण युवाओं के उत्साह में क्षरण तो आता ही है, शिक्षा की गुणवत्ता पर भी प्रतिकूल असर पड़ता है। यूजीसी को इस तरह की नियुक्तियों पर रोक लगाने के लिए दिशा-निर्देश जारी करना चाहिए।
(कॉपी संपादन : सिद्धर्थ)
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