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मध्य प्रदेश : मासूम भाई और चाचा की हत्या पर सवाल उठानेवाली दलित किशोरी की संदिग्ध मौत पर सवाल

सागर जिले में हुए दलित उत्पीड़न की इस तरह की लोमहर्षक घटना के विरोध में जिस तरह सामाजिक गोलबंदी होनी चाहिए थी, वैसी देखने को नहीं मिली। यदि इसी तरह की घटना दिल्ली या बड़े शहरों में होती तब भी क्या सभी हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते? बता रहे हैं सतीश भारतीय

गत 12 जुलाई, 2024 को मध्य प्रदेश के एक नागरिक समूह द्वारा फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट सार्वजनिक की गई। यह रिपोर्ट सागर जिले के खुरई तहसील के अंतर्गत बरौदिया नौनागिर नामक एक गांव में एक ही दलित परिवार के तीन जनों की हत्या से जुड़ी है। मृतकों में मासूम नितिन अहिरवार ऊर्फ लालू अहिरवार, उसका चाचा राजेंद्र अहिरवार और अंजना अहिरवार शामिल हैं। हालांकि इनमें एक अंजना की मौत को स्थानीय पुलिस द्वारा दुर्घटना में हुई मौत बताया जा रहा है। अंजना की मौत इसलिए भी संदिग्ध है, क्योंकि उसकी मौत पुलिस की गाड़ी से गिरने के बाद सिर में लगी चोट के कारण हुई। एक ही परिवार के तीन जनों की मौत का यह मामला इसलिए भी सुर्खियों में रहा क्योंकि इस मामले में सूबे के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव तक पीड़ित परिवार से मिलकर न्याय का वादा कर चुके हैं। लेकिन वस्तुस्थिति यह है कि न्याय कोसों दूर है।

बताते चलें कि बरौदिया नौनागिर गांव की कुल आबादी लगभग 3500 है। इनमें अनुसूचित जाति के लोगों की आबादी करीब 23.11 प्रतिशत है। जातिवार बात करें तो इस गांव में अहिरवार, कोरी, पटेल, ठाकुर आदि जातियों और आदिवासी, मुस्लिम समुदाय के लोग रहते हैं। इस गांव में अधिकांश दलित-बहुजन खेती व मजदूरी पर आश्रित हैं।

पहले अंजना के साथ छेड़खानी, फिर उसके भाई नितिन अहिरवार की हत्या

पहले अंजना के मामले में संदिग्ध मौत पर निगाह डालते हैं। तारीख थी 24 अगस्त, 2023। उस दिन अंजना अहिरवार के तीन भाइयों में सबसे छोटे नितिन अहिरवार (प्राथमिकी में दर्ज उम्र 18 वर्ष) को बीच बाज़ार में पीट-पीट कर मार डाला गया। उसे बचाने आई उसकी मां और बहन अंजना को भी दबंगों ने पीटा। इस मारपीट में दबंगों ने नितिन की मां का हाथ तोड़ा और उनकी साड़ी खोलकर अर्द्धनग्न भी कर दिया। इतना ही नहीं, दबंगों ने पीड़ित परिवार के घर पर तोड़-फोड़ भी की।

नितिन अहिरवार की सरेआम हत्या और उसकी मां-बहन के साथ मार-पीट की इस घटना के पीछे एक और घटना है।

दरअसल, 26 जनवरी, 2019 को अंजना अहिरवार के साथ उसके ही गांव के आज़ाद ठाकुर, पुष्पेंद्र ठाकुर, छोटू रैकवार और विशाल ठाकुर ने मारपीट और छेड़छाड़ की थी। गांव के ठाकुर जाति के लोगों को ‘लंबरदार’ कहा जाता है, जिसका एक मतलब यह भी है कि वे बड़ी जोत के मालिक व रसूखदार हैं। इनके रसूख का ही परिणाम रहा कि अंजना की शिकायत पर आरोपियों के खिलाफ बड़ी मुश्किल से प्राथमिकी दर्ज हो पाई थी। इसमें भी पुलिस की भूमिका उसे कटघरे में खड़ा करती है। मसलन, उपरवर्णित फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट के अनुसार, अंजना के परिवार ने बताया कि एफ़आईआर में मारपीट (आईपीसी 294, 323, 506, 34) और अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की विभिन्न धाराओं का उल्लेख किया गया, लेकिन यौन हिंसा व छेड़छाड के बारे में उल्लेख नहीं किया गया। जबकि पीड़ित पक्ष ने छेड़छाड़ के बारे में भी शिकायत की थी।

मृतक नितिन अहिरवार, जिसकी उम्र पुलिस की प्राथमिकी में 18 साल बताई गई है

रिपोर्ट कहती है कि तब से ही गांव के ‘लंबरदार’ बार-बार पीड़ित परिवार को डरा-धमका कर राजीनामा करने का दबाव बना रहे थे। लेकिन, राजीनामा के लिए जब परिवार राजी नहीं हुआ, तब नितिन की हत्या कर दी गई।

फिर चाचा राजेंद्र अहिरवार की हत्या और अगले ही दिन अंजना की संदेहास्पद मौत

नितिन अहिरवार की हत्या का मामला अभी सुलझा भी नहीं था कि 9 महीने बाद 25 मई, 2024 को उसके चाचा राजेंद्र अहिरवार की भी हत्या की गई। राजेंद्र अहिरवार नितिन की हत्या के मामले में चश्मदीद गवाह थे। इसके अगले ही दिन 26 मई, 2024 को पुलिस की ‘निगहबानी’ में जब राजेंद्र अहिरवार का शव उसके परिजन वापस अपने गांव ले जा रहे थे तब अंजना अहिरवार की रास्ते में ही बेहद संदेहास्पद रूप से मौत हो गई। पुलिस के मुताबिक शव-वाहन से गिरने से अंजना की मौत हो गई।

मृतका अंजना अहिरवार व राजेंद्र अहिरवार की फोटो

जाहिर तौर पर यह घटना किसी को भी हैरत में डाल सकती है कि आखिर चलते शव-वाहन से गिरकर अंजना की मौत कैसे हो सकती है। एक ही परिवार के साथ हुई इन घटनाओं ने लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया और नागरिक समूह द्वारा फैक्ट फाइंडिंग टीम का गठन किया गया। इस टीम ने गत 21 जून, 2024 को मामले को समझने के लिए पीड़ित परिवार, पुलिस-प्रशासन के अधिकारी, मामले के जानकार पत्रकार, वकील और अन्य लोगों से चर्चा की। टीम में एडवोकेट मोहन दीक्षित, रोहित (स्वतंत्र पत्रकार), एडवोकेट अदित्या रावत, नीलु दाहिया (एका संस्था), सदफ खान (स्वतंत्र पत्रकार), माधुरी (पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीस), अंजली (अखिल भारतीय नारीवादी मंच) और नितिन (जागृत आदिवासी दलित संगठन) शामिल थे।

जांच दल की रिपोर्ट में सामने आए कई पहलू

जांच दल की रिपोर्ट में दलित के हत्याकांड के विभिन्न पहलू सामने आए। जैसे कि जांच दल की रिपोर्ट में बताया गया कि, अंजना अपने भाई नितिन की हत्या के मामले में न्याय पाने के लिए लड़ाई लड़ रही थी। नितिन की हत्या के मामले में अंजना की ओर से शिकायत दर्ज की गई थी। अंजना की शिकायत पर 25 अगस्त 2023 को रात 2 बजे खुरई ग्रामीण थाना में एफ़आईआर दर्ज की गई। एफ़आईआर में विक्रम ठाकुर, विजय ठाकुर, आज़ाद ठाकुर, कोमल ठाकुर, लालू खान, इस्लाम खान, गोलु सोनी, नफीस खान, वाहिद खान व अन्य 3-4 आरोपी अभिुयक्त बनाए गए। शव अंत्यपरीक्षण रिपोर्ट में बताया गया कि नितिन अहिरवार की लाश पर 29 गंभीर चोटें थीं।

नितिन की हत्या के बाद अगले ही दिन यानी 25 अगस्त, 2023 को पीड़ित परिवार ने घटना में मुख्य आरोपियों में अंकित सिंह ठाकुर का नाम जोड़ने का आवेदन कलेक्टर एवं पुलिस अधीक्षक को दिया था। लेकिन इस संबंध में जब कोई कार्रवाई नहीं हुई तब भी अंजना ने हार नहीं मानी। उसने 8 सितंबर, 2023, 21 अक्टूबर, 2023 और 26 फरवरी, 2024 को पुलिस से एफआईआर में अंकित सिंह ठाकुर का नाम जोड़ने व आरोपियों के रिशतेदारों द्वारा बार-बार राजीनामा करने के लिए दबाव बनाने हेतु धमकी देने और मामले की ठीक तरह से जांच नहीं किए जाने के बारे में भी मध्य प्रदेश के पुलिस महानिरीक्षक व सागर के पुलिस अधीक्षक को आवेदन देकर शिकायत की। बावजूद इसके उसकी शिकायतों पर कोई भी कार्रवाई नहीं की गई।

ठाकुर चिढ़ते थे, इसलिए मार डाला राजेंद्र अहिरवार को

वहीं 25 मई, 2024 को राजेंद्र की हत्या के मामले में पुलिस ने इसराइल खान, आशिक कुरैशी, टंटू कुरेशी, फहीम खान और बबलू खान को गिरफ्तार किया। जबकि राजेंद्र के परिवार ने 11 अन्य लंबरदारों के शामिल होने की शिकायत की थी, पर पुलिस बार-बार जांच चल रही है, का राग अलापती रही।

राजेंद्र की हत्या के मामले में उसके परिजनों ने फैक्ट फाइंडिंग टीम को बताया कि राजेंद्र किसी से डरता नहीं था और इसलिए ठाकुर उससे चिढ़ते थे। उनका मानना है कि ठाकुरों ने ही राजेंद्र को मरवाया है।

वहीं, सबसे बड़ा सवाल अंजना अहिरवार की मौत को लेकर है। पुलिस के मुताबिक, राजेंद्र को ले जा रहे शव-वाहन से कूदने के कारण अंजना की मौत हुई। जबकि शव-वाहन में राजेंद्र के माता-पिता, अंजना और ड्राइवर के अलावा पुलिस के लोग भी थे।

शव-वाहन से गिरकर हुई अंजना की मौत, पुलिस का बयान

अंजना की मौत के बारे में राजेंद्र के माता-पिता कहते हैं कि, “सागर से राजेंद्र का शव लेकर जब हम शव-वाहन से आ रहे थे, पुलिस ने हमें पानी दिया, जिसको पीकर हम सो गए थे। पुलिस ने हमें उठाया और कहा कि अंजना गिर गई है। हमने देखा कि अंजना करीब 20-30 फीट दूर सड़क पर गिरी हुई थी। जब पुलिस वाले उसे वापस गाड़ी में लाए तब वह बेहोश थी। इसके बाद पुलिस की दूसरी गाड़ी वहां पहुंची, जिसमें पुलिस ने अंजना के साथ राजेंद्र की मां को बैठाया था।”

अंजना की मां व उसका भाई विष्णु अहिरवार

अंजना के परिजनों का कहना है कि, “अंजना की मृत्यु कोई दुर्घटना नहीं, बल्कि हत्या है। राजेंद्र के परिवार ने भी कई बार हमसे कहा कि ठाकुरों ने ही अंजना को मरवाया है। अंजना को जो भी जानते थे, सभी का यही कहना है कि यह विश्वास करना मुश्किल है कि अंजना अपनी मर्जी से गाड़ी से कूदी होगी। गलती से गिर जाना भी अविश्वसनीय है।”

अंजना के शव की अंत्यपरीक्षण रिपोर्ट में अंजना के सिर में एक फ्रैक्चर होना बताया गया है। इसके अलावा उसे हाथ और घुटनों में चोटें आईं। रिपोर्ट के मुताबिक अंजना की मौत सिर में आई चोट के कारण हुई।

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव भी पहुंचे पीड़ित परिजनों के पास

खैर, इस मामले में राजनेताओं ने भी हस्तक्षेप किया है। मसलन, कांग्रेस नेता जीतू पटवारी पीड़ित परिवार से मिले और कहा कि, “हत्या के बाद हत्या हो रही है और एक बेटी की संदिग्ध मौत हुई है। उन्होंने कहा कि अगर सरकार नहीं मानी तो सीबीआई जांच के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे।”

अंजना की मौत के बाद मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव भी पीड़ित के गांव पहुंचे। उन्होंने घटना पर दुख जताते हुए कहा कि “यह पूरा मामला आपसी विवाद से जुड़ा है।” उन्होंने गांव में ऐसी घटना बार-बार होने की बात सामने आने पर पुलिस चौकी खोलने और ऐसी घटना दोबारा न हो, इसके लिए पुलिस प्रशासन को निर्देशित किया।

इस घटना पर भीम आर्मी के द्वारा विरोध मार्च निकाला गया और सांसद चंद्रशेखर भी पीड़ित परिजनों से मिलने पहुंचे।

भाजपा के स्थानीय विधायक के बोल

वहीं, खुरई के भाजपा विधायक व पूर्व मंत्री भूपेंद्र सिंह ने अंजना की मौत के लिए उसके परिजनों को ही कसूरवार करार दिया और उन्हें अपराधी प्रवृत्ति का बताते हुए कहा कि “अंजना अहिरवार के मृतक रिश्तेदार की आपराधिक पृष्ठभूमि रही है… पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक गांव में मृतक राजेंद्र अहिरवार का आतंक था। राजेंद्र अहिरवार इमरान खान के इशारे पर अपराध में लिप्त रहा है।” आगे उन्होंने कहा कि “कांग्रेस हमेशा लाश पर राजनीति करती है। बरौदिया नौनागिर के मामले का जो सरगना है, वह इमरान खान है। इमरान ही मृतक के परिवार से ये सारे अपराध करवाता था। इमरान पर 302 जैसे मामले दर्ज हैं। यहां के लोग उसके आंतक से परेशान हैं। इमरान मृतक परिवार का उपयोग करता था।”

उन्होंने यह भी कहा कि इस मामले का पूरा सीडीआर निकाला जाए ताकि जिन्होंने उस बच्ची को उकसाया, उनके खिलाफ आपराधिक मुकदमा दर्ज किया जाय। इसके बाद उन्होंने कहा कि “85 साल की उम्र तक के लोग जेल में हैं। क्या वह घटना करेंगे? राजेंद्र अहिरवार की हत्या के समय अंकित वहां था ही नहीं। पुलिस ने मामले में निष्पक्ष कार्रवाई की है।”

जांच दल ने माना, घटनाओं की मुख्य वजह सामाजिक वर्चस्ववाद

बहरहाल, फैक्ट फाइंडिंग टीम जांच दल ने निष्कर्ष के तौर पर अपनी रिपोर्ट में कहा है कि बरौदिया नौनागिर के ठाकुरों के परिवार पीढ़ियों से ‘लंबरदार’ रहे हैं। गांव में सबसे ज़्यादा ज़मीन उन्हीं के पास है और उनका ही दबदबा है। पंचायत भी उन्हीं के पास है। इनके खिलाफ कोई जाता नहीं है। ठाकुर लंबरदारों की पारंपरिक दबंगई से बेचैन इन दलित युवाओं में रोष और बगावत की भावना और इससे उत्पन्न ठाकुरों की चिढ़, तनाव और हिंसा इस घटना का मुख्य कारण रही है।

फैक्ट फाइंडिंग टीम की जांच रिपोर्ट

वहीं, स्थानीय मीडिया में खबरें प्रकाशित होने के कारण पुलिस ने कार्रवाई करते हुए नितिन की हत्या के आरोप में लंबरदारों सहित 13 व्यक्तियों को गिरफ्तार किया है। लेकिन अंजना द्वारा नितिन की हत्या में भाजपा नेता अंकित सिंह ठाकुर का शामिल होना बताया गया। इसके बावजूद अंकित को आरोपी क्यों नहीं बनाया गया? धमकी और राजीनामा के लिए दबाव के संबंध में अंजना द्वारा बार-बार की गई शिकायतों पर कार्रवाई क्यों नहीं की गई? बाद में प्राप्त सीसीटीवी फूटेज का संज्ञान क्यों नहीं लिया गया? रात 12:16 को हुई नितिन की मौत के दो घंटे बाद दर्ज एफ़आईआर में पुलिस ने हत्या की धारा (धारा 302, भा.द.स.) क्यों नहीं लगाई? और यह धारा बहुत बाद में ही क्यों जोड़ी गई? फैक्ट फाइंडिंग टीम के मुताबिक उन्हें इन सवालों का कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिल पाया।

अंजना की संदिग्ध मौत पर जांच दल ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि “अंजना की मौत की परिस्थितियां साजिश की ओर इशारा करती हैं। अंजना पढ़ी-लिखी थी, और इन सभी अत्याचार के मामलों में न्याय मांगने में उसकी ही सबसे महत्वपूर्ण भूमिका थी। परिवार के तरफ से प्रशासन और राजनेताओं के साथ वही संवाद करती थी। महज 15 वर्ष की उम्र में ही अपने पर हुई हिंसा के मामले में रसूखदारों पर एफ़आईआर दर्ज करवा पाई थी और इस मामलें में समझौता करने से इनकार करती रही। अंजना अपने भाई नितिन की हत्या के मामले में फरियादी और एक मुख्य गवाह थी। साथ ही, चाचा राजेंद्र अहिरवार की हत्या के मामले में भी मुख्य गवाह थी, क्योंकि उसी को चाचा ने फोन पर अपने पर हो रहे हमला की सूचना दी थी। अंजना पर लगातार राजीनामा और गवाही बदलने का दबाव बनाया जा रहा था और इस संबंध में उन्होंने कई लिखित शिकायतें भी की थी। अंजना ने हाई कोर्ट में नितिन के हत्या के आरोपियों की जमानत अर्जी पर भी आपत्ति की याचिका लगाई थी, जिससे अभियुक्तों की जमानत खारिज हो गई।

नितिन की हत्या के बाद अंजना ने अपनी जान पर खतरा होने की भी शिकायत प्रशासन से की थी। इसी के बाद पुलिस ने परिवार की सुरक्षा के लिए एक गार्ड और घर के सामने सीसीटीवी कैमरा लगाया था। अंजना की मौत के दस दिन पहले ही पुलिस सुरक्षा वापस ले ली गई और सीसीटीवी कैमरे भी बंद हो गए थे। परिवार का कहना है कि “अंजना को किसी साजिश के तहत ही ठाकुरों ने मरवाया है। इस मामलें में विस्तृत और निष्पक्ष जांच की सख्त जरूरत है, जिसके लिए स्थानीय पुलिस सक्षम और विश्वसनीय नहीं दिखाई दे रही है।”

खैर, फैक्ट फाइंडिंग टीम की रिपोर्ट इस पूरे मामले में गभीर संकेत देती है। इस मामले में पुलिस की कार्यशैली पर भी सवाल उठता है। लेकिन दलित उत्पीड़न की इस तरह की लोमहर्षक घटना के विरोध में जिस तरह सामाजिक गोलबंदी होनी चाहिए थी, वैसी देखने को नहीं मिली। यदि इसी तरह की घटना दिल्ली या बड़े शहरों में होती तब भी क्या सभी हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते?

(संपादन : राजन/नवल/अनिल)


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लेखक के बारे में

सतीश भारतीय

मध्य प्रदेश के सागर जिला के निवासी सतीश भारतीय स्वतंत्र युवा पत्रकार हैं

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