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बौद्ध धर्मावलंबियों का हो अपना पर्सनल लॉ, तमिल सांसद ने की केंद्र सरकार से मांग

तमिलनाडु से सांसद डॉ. थोल थिरुमावलवन ने अपने पत्र में यह उल्लेखित किया है कि एक पृथक पर्सनल लॉ बौद्ध धर्मावलंबियों के इस अधिकार को सुनिश्चित करेगा कि उनके विवाह संबंधी संस्कार अदालतों में वैध हों। पढ़ें, यह खबर

भारत में बौद्ध धर्मावालंबियों का पर्सनल लॉ नहीं है। इसके कारण उन्हें विवाह और उत्तराधिकार के मामले में हिंदू पर्सनल लॉ के प्रावधानों का पालन करना पड़ता है। इसे देखते हुए तमिलनाडु से लोकसभा के सांसद व विदुथलाई चिरुथइगल काची (वीसीके) पार्टी के अध्यक्ष डॉ. थोल थिरुमावलवन ने गत 24 जुलाई, 2024 को केंद्रीय विधि व न्याय राज्यमंत्री अर्जुन राम मेघवाल को पत्र लिखकर बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए पृथक पर्सनल लॉ के प्रावधान के लिए पहल करने की मांग की है।

अपने पत्र में डॉ. थोल थिरुमावलवन ने लिखा है कि यह वैश्विक सिद्धांत है कि हर समुदाय के पास उसके अपने पर्सनल लॉ का विशेषाधिकार होता है। लेकिन हमारे देश में मूल बौद्ध धर्मावलंबी और डॉ. आंबेडकर की प्रेरणा से बौद्ध धर्म स्वीकार करनेवाले बौद्ध धर्मावलंबियों के पास अपना विवाह व उत्तराधिकार संबंधी कानूनी प्रावधान नहीं हैं। ऐसा इसलिए है कि संविधान के अनुच्छेद 25 (धार्मिक स्वतंत्रता व पेशा का अधिकार) के दूसरे उपबंध में बौद्ध धर्मावलंबियों को हिंदू के रूप में चिह्नित किया गया है, जिसके कारण उनके ऊपर हिंदू पर्सनल लॉ के प्रावधान लागू होते हैं। अनुच्छेद में वर्णित है कि हिंदू शब्द का अभिप्राय सिक्ख और जैन धर्म से भी है, लेकिन उनके लिए विवाह संबंधी एक पृथक कानूनी प्रावधान (आनंद विवाह अधिनियम) हैं। इसी तरह ईसाई और इस्लाम धर्मावलंबियों के लिए भी विवाह संबंधी पृथक कानूनी प्रावधान हैं।

वीसीके के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. थोल थिरुमावलवन व उनके द्वारा लिखित पत्र

उन्होंने यह उल्लेखित किया है कि एक पृथक पर्सनल लॉ बौद्ध धर्मावलंबियों के इस अधिकार को सुनिश्चित करेगा कि उनके विवाह संबंधी संस्कार अदालतों में वैध हों। महाराष्ट्र में ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जिनमें बौद्ध धर्म के तरीके से की गई शादियों को हिंदू विवाह अधिनियम के तहत अवैध माना गया है।

इसका कारण बताते हुए डॉ. थोल थिरुमावलवन ने अपने पत्र में लिखा है कि तकनीकी रूप से हिंदू विवाह अधिनियम किसी भी शादी को तभी वैध मानता है जब उसमें शतपदी का संस्कार शामिल होता है, जिसमें पवित्र अग्नि के सामने सात फेरे लिये जाते हैं। लेकिन यह संस्कार केवल वैदिक संस्कार है जो केवल हिंदुओं पर लागू होता है। जबकि बौद्ध धर्मावलंबी व नवबौद्ध, दोनों को इसकी आवश्यकता पड़ती है कि शादी के समय लड़का और लड़की बौद्ध धर्म से जुड़े प्रार्थनाओं व शपथ को बुद्ध व डॉ. आंबेडकर की तस्वीर के समक्ष दुहाराएं। इसके बाद उन्हें हिंदू विवाह अधिनियम के तहत स्थानीय सरकारी पंजीकरण अधिकारी से अपनी शादी पंजीकृत करानी पड़ती है।

अपने पत्र में डॉ. थिरुमावलवन ने लिखा है कि इसके पहले वर्ष 2000 में भारत सरकार द्वारा गठित जस्टिस एम.एन. वेंकटचलैय्या आयोग ने अपनी रिपोर्ट में अनुशंसा की थी कि संविधान के अनुच्छेद 25 (2)(ब) में आवश्यक संशोधन कर बौद्ध धर्म को अलग धर्म का दर्जा मिले और बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए पृथक पर्सनल लॉ होना चाहिए। उन्होंने अपने पत्र के माध्यम से भारत सरकार से इसे लागू करने की मांग की है।

(संपादन : राजन/नवल/अनिल)


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