प्रवीण कुमार झा की पुस्तक ‘कुली लाइन्स’ पर जेएनयू में होगी चर्चा
गिरमिटियों के इतिहास से संबंधित पुस्तक ‘कुली लाइन्स’ पर चर्चा और व्याख्यान को लेकर जेएनयू में एक एक अगस्त को विशेष कार्यक्रम आयोजित किया गया है। कार्यक्रम में जो प्रमुख हस्तियां पुस्तक पर चर्चा और व्याख्यान पेश करेंगे उनमें किताब के लेखक डा. प्रवीण झा के अलावा, जेएनयू के प्रोफेसर मनींद्र नाथ ठाकुर, प्रोफेसर देवेंद्र चौबे और वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव शामिल हैं।
हिंदी में इतिहासोन्मुख कोई भी गद्य अगर वह अ-कहानी है, उसकी तरफ हमेशा उत्सुकता से देखा जाता है। जाहिर है, आलेख या निबंध के आज के नीरस गद्य के बीच यह पुस्तक इसलिए भी उत्सुकता के साथ देखी (और पढ़ी) जा रही है। लेखक का दावा है कि कई देशों के भ्रमण के बाद उन्होंने तथ्यों को पिरोया गया है कि कैसे अपनी धरती से लोगों का लोप होता गया। इस रूप में गिरमिटिया मजदूरों के प्रवासी, विस्थापित होने का सिलसिला उतनी ही पीड़ादायक और किसी को हैरान कर देने वाला है जितना कि किसी काल्पनिक कहानी में होता है!
पुस्तक के प्रकाशक वाणी प्रकाशन ने पुस्तक का सिंहावलोकन इस तरह दिया है- “कुली लाइन्स हिन्द महासागर के रियूनियन द्वीप की ओर 1826 ई. में मज़दूरों से भरा जहाज़ बढ़ रहा था। यह शुरुआत थी भारत की। जड़ों से लाखों भारतीयों को अलग करने की। क्या एक विशाल साम्राज्य के लालच और हिन्दुस्तानी बिदेसियों के संघर्ष की यह गाथा भूला दी जायेगी? एक सामन्तवादी भारत से अनजान द्वीपों पर गये ये अंगुठा-छाप लोग आख़िर किस तरह जी पायेंगे? उनकी पीढ़ियों से। हिन्दुस्तानियत ख़त्म तो नहीं हो जायेगी? लेखक आर्काइव्स, भिन्न भाषाओं में लिखे रिपोर्ताज़ और गिरमिट वंशजों से यह तफ़्तीश करने निकलते हैं। उन्हें षड्यन्त्र और यातनाओं के मध्य खड़ा होता एक ऐसा भारत नज़र आने लगता है, जिसमें मुख्य भूमि की वर्तमान समस्याओं के कई सूत्र हैं। मॉरीशस से कनाडा तक की फ़ाइलों में ऐसे कई राज़ दबे हैं, जो ब्रिटिश सरकार पर ग़ैर-अदालती सवाल उठाते हैं। और इस ज़िम्मेदारी का अहसास भी कि दक्षिण अमेरिका के एक गाँव में भी वही भोजन पकता है, जो भारत के बस्ती के एक गाँव में। ‘ग्रेट इंडियन डायस्पोरा’ आख़िर एक परिवार है, यह स्मरण रहे। इस किताब की यही कोशिश है।”

‘कुली लाइन्स’ पर एक पाठक की राय इस तरह है: “यह ऐतिहासिक कृति है जिसमें उन लाखों भारतीयों के दर्दनाक, वीभत्स तथा अमानवीय जीवन की सच्चाइयों को लेखक प्रवीण कुमार झा ने पाठकों के सामने रखने का प्रयास किया है। पुस्तक से ही पता चलता है कि उन्हें इसके लिए कई देशों की यात्राएं और अथक परिश्रम करना पड़ा। पुस्तक को पाठक पढ़ना शुरू करता है तो फिर उसमें पूरी तरह खो जाता है तथा पूरी किताब पढ़कर ही दम लेता है। कई भारतीयों के साथ डेढ़-दो सौ वर्षों पूर्व विदेशी तत्कालीन ब्रिटिश उपनिवेशों में घटी घटनाओं की दास्तान पढ़कर पाठक भावुक हुए बिना नहीं रह सकता। अठारहवीं और उन्नीसवीं सदी में भारत से लाखों लोगों को भेड़-बकरियों से भी बदतर हाल में जिस प्रकार जहाजों में भरकर अफ्रीका, यूरोप तथा अमेरिका से कनाडा तक ले जाया गया, वह दुनिया के इतिहास का स्याह पक्ष है जिसे लगभग भुला दिया गया है। तत्कालीन दस्तावेज़ों, रिपोर्टों और कई जहाजियों की जीवित पीढ़ियों के लोगों से मिली जानकारी के आधार पर डॉ. झा ने ‘कुली लाइन्स’ के द्वारा विदेशों में पहुँचे भारतीयों का इतिहास दुनिया के लोगों खासकर भारतीयों के सामने लाने का भागीरथ प्रयास किया है। पुस्तक में इस पर विस्तार से साक्ष्य प्रस्तुत किए हैं कि किस प्रकार अनपढ़, गरीबी के शिकार और भोले लोगों को अंग्रेजों के दलालों ने बहला-फुसलाकर भारत की धरती से सैकड़ों मील दूर बंधुआ मजदूर बनने को मजबूर किया।”

“यह इतिहास था, संस्कृति का पुनर्निर्माण और परिस्थिति से पलायन का…। शोषण की कहानी थी यह या भारत एक खोज पता नहीं। पर इतने दिनों मैं इसी में डूबी रही और लगता रहा जैसे भले ही रूप बदल गए हों पर परिस्थितियां आज भी वही हैं…स्त्री हो, गरीब हो बच्चा हो या हारा हुआ इंसान चपेट में आ ही जाता है और अगर फिर वह चाह ले तो कहानियां फिर भी बनती हैं सुनहरे कलम वाली…।” पुस्तक के बारे में ये वाक्य एक साहित्य प्रेमी के हैं जो लेखक ने अपने सोशल मीडिया पेज पर शेयर किए हैं।
प्रवीण कुमार झा के लेख हिन्दुस्तान, प्रभात ख़बर, द कैपिटल पोस्ट, प्रजातन्त्र, ‘सदानीरा और मुख्य मीडिया पोर्टलों पर प्रकाशित होते रहे हैं। उन्होंने व्यंग्य और यात्रा संस्मरण भी लिखे हैं। वह नॉर्वे (यूरोप) में विशेषज्ञ चिकित्सक हैं।
कुल मिलाकर देखा जाए तो आज के समय में कुछ लेखक जो अपने गद्य से चमत्कारी प्रभाव डालते हैं, उनके बारे में पाठकों की उपरोक्त राय के अलावा जानकारों के भी विचार जरूर जान लेनी चाहिए। बेशक, जेएनयू में होने वाली चर्चा में इन विचारों को जाना जा सकेगा। कार्यक्रम यहां के सभा कक्ष 212, भाषा संस्थान-1 में दोपहर दो बजे शुरू होगा और शाम साढ़े पांच बजे तक चलेगा।
कथाकारों की नजर से समझें प्रेमचंद को
लेकिन उपरोक्त एक अगस्त से पहले यानी बुधवार 31 जुलाई को होने वाले अहम एक कार्यक्रम को लेकर सूचना साझा करते हैं जो महान कहानीकार प्रेमचंद को समझेने की कोशिश से जुड़ी है। दिल्ली विश्वविद्यालय के दक्षिण दिल्ली के मोतीबाग स्थित कैंपस में होने वाले इस कार्यक्रम में आज के कथाकारों की नजर से प्रेमचंद्र को समझ सकेंगे। कार्यक्रम के विशिष्ठ अतिथि प्रेमपाल शर्मा हैं। उनके अलावा कार्यक्रम में सुमित्रा महरोल, प्रवीण कुमार, उमाशंकर चौधरी और श्रीधरम शामिल होंगे। आज की हिंदी कहानी में ये सभी नाम अक्सर सुने जाते हैं।
कार्यक्रम दोपहर दो बजे शुरू होगा। डीयू का दक्षिण कैंपस मोती बाग के दक्षिण में है जो बेनिता जुआरेज मार्ग पर है। सबसे नजदीकी मैट्रो स्टेशन दुर्गाबाई देशमुख साउथ कैंपस मेट्रो स्टेशन के नाम से जाना जाता है। कार्यक्रम की अतिरिक्त जानकारी के लिए 9716668206 या 8802131711 फोन नंबरों पर संपर्क किया जा सकता है।
जयपुर में ‘गांधी-नेहरू संवाद’ 9 अगस्त को
जवाहर कला केंद्र जयपुर ने दुर्गा प्रसाद अग्रवाल के समन्वय में 9 अगस्त को गांधी- उनका जीवन और समय विषय को लेकर जयपुर में परिचर्चा और विचार गोष्ठी का आयोजन किया है। पुरुषोत्तम अग्रवाल, डॉ. आलोक श्रीवास्तव इसमें मुख्य वक्ता के तौर पर शामिल होंगे। सुबह साढ़े दस बजे से एक घंटे तक महात्मा गाँधी और उन पर असत्य के प्रयोग विषय पर चर्चा होगी। इस पर डॉ. आलोक के विचार सुने जाएंगे और कुछ ही देर बाद इसमें लोगों के साथ गांधी को लेकर सवाल जवाब का सिलसिला चलेगा।
दूसरे सत्र के वक्ता पुरुषोत्तम अग्रवाल हैं जो गांधी जी पर किए जा रहे असत्य के प्रयोग पर केंद्रित हैं। इस चर्चा के मुख्य विषय को सुनते ही कोई भी भारतीय और खासकर किताब और विचार से ताल्लुक रखने वाले पाठक समझ सकते हैं मूल रूप से कि किस तरह से गांधी के विचारों के साथ मौजूदा दौर में छलावा किया जा रहा है। जो जयपुर में रहते हैं या जो भी लोग 9 अगस्त को जयपुर में हैं तो उनको कार्यक्रम में 10 बजे पहुंच जाना होगा ताकि वो शामिल होने वालों में अपना पंजीयन करा सकें। ज्यादा जानकारी के लिए पूछताछ जयपुर कला केंद्र के फोन नंबर 0141-2706503 पर संपर्क किया जा सकता है।
(कॉपी संपादन : नवल)
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